पृथ्वीपुर उपचुनाव: भाजपा के चुनावी चक्रव्यूह में उलझी कांग्रेस

पृथ्वीपुर उपचुनाव
  • हुआ कांटे का मुकाबला, कोई नहीं कर पा रहा जीत की भविष्यवाणीं

    भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम।
    बीते हफ्ते तक पृथ्वीपुर विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस बेहद मजबूत दिख रही थी, लेकिन अब भाजपा ने प्रचार का ऐसा चक्रव्यूह तैयार किया है कि कांग्रेस उसमें पूरी तरह से उलझी हुई नजर आना शुरू हो गई है। भाजपा के लिए यह सीट शुरू से ही बेहद कठिन मानी जा रही थी। यह बात अलग है कि भाजपा उपचुनाव वाली चारों सीटों पर ही पूरी ताकत लगा रही है और हर सीट के लिए अलग चुनावी रणनीति बनाकर मैदान में उतरी है। इन उपचुनावों को लिटमस टेस्ट के रुप में देखा जा रहा है, यही वजह है कि चारों सीटों पर कांग्रेस और भाजपा अपनी पूरी ताकत लगा रही है। खास बात यह है कि इन चारों सीटों के चुनाव परिणाम सरकार की स्थिरता के लिए अप्रभावी हैं , लेकिन फिर भी दोनों ही दल अपनी- अपनी जीत के सहारे अपनी पकड़ को साबित करने के प्रयास में हैं। अगर पृथ्वीपुर विधानसभा सीट की स्थिति देखें तो यह सीट कांग्रेस के पूर्व मंत्री बृजेन्द्र सिंह राठौर के निधन से रिक्त हुई है। इस सीट पर मुख्य मुकाबला कांग्रेस के नितेन्द्र सिंह राठौर और भाजपा के शिशुपाल यादव के बीच है। यह बात अलग है कि इस बार भी सपा ने इस सीट पर अपना प्रत्याशी उतारा है , लेकिन वह अब तक मुकाबले से बाहर ही बना हुआ है। बुंदेलखंड अंचल की यह वो सीट है , जिस पर अब तक स्व. बृजेंद्र सिंह राठौर का ही दबदबा रहा है। बीते आम विधानसभा चुनाव 2018 में बृजेंद्र सिंह राठौर ने ही जीत दर्ज की थी।
    वह अपने राजनीतिक करियर में पांच बार विधायक रहे और केवल दो ही बार चुनाव में पराजित हुए हैं। इस विधानसभा सीट के अस्तित्व में आने से पहले वे निवाड़ी विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ते रहे हैं।  पहला चुनाव हारने के बाद उन्हें दूसरी बार जब पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो वे निर्दलीय के रुप में 1993 में पहली बार निवाड़ी से विधायक बने, इसके बाद एक बार फिर वे 1998 में निर्दलीय रुप से जीते। इसके बाद उनकी कांग्रेस में वापसी हुई तो फिर 2003 में कांग्रेस के टिकट पर तीसरी बार लगातार विधायक बने। इसके बाद 2008 में निवाड़ी विधानसभा सीट का हिस्सा रहे पृथ्वीपुर को परिसीमन में नई सीट बना दिया गया। इसके बाद इस सीट पर तीन विधानसभा के चुनाव हुए , जिनमें से दो बार वे और एक बार भाजपाा की अनीता नायक ने जीत दर्ज की।
    सिम्पैथी ने दिलाई थी भाजपा को जीत
    खास बात यह है कि स्व राठौर की लगातार जीत में एक बार की हार की वजह भी मतदाताओं की भाजपा प्रत्याशी के प्रति सिम्पैथी रही थी। इसके पहले के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी अनीता नायक के पति और प्रदेश सरकार के तत्कालीन मंत्री सुनील नायक की मतदान के दिन हत्या कर दी गई थी। इसके बाद भाजपा ने कांग्रेस के इस गढ़ को तोड़ने के लिए उनकी पत्नी अनीता को प्रत्याशी बनाया था।
    यादव ,ब्राह्मण व कुशवाहा बाहुल्य
    इस सीट पर यादव, ब्राह्मण व कुशवाहा समाज का इस सीट पर दबदबा रहता है। इसकी वजह है इस समाज के मतों की बाहुल्यता होना। यही वजह है कि बीते चुनाव में सपा और अब भाजपा प्रत्याशी शिशुपाल यादव दूसरे स्थान पर रहे थे। इस चुनाव में कांग्रेस को 35.36 फीसदी, सपा को 30.22 फीसदी और बसपा को 20.26 फीसदी वोट मिले थे, जबकि भाजपा उम्मीदवार को 7.01 फीसदी वोट ही मिले थे। इस बार भाजपा द्वारा यादव प्रत्याशी दिए जाने की वजह से कांग्रेस प्रत्याशी की मुश्किलें बढ़ गई हैं। यही नहीं बसपा भी मैदान में नही है और सपा ने भी एक नए चेहरे को मैदान में उतारा है। इसके अलावा भाजपा ने भी इस बार इस सीट पर जीत तय करने के लिए पूरी ताकत लगा रखी है। स्व राठौर की जीत में भाजपा के एक धड़े का भी योगदान रता था। इस बार उसे दूर ही रखा गया है। इसकी वजह से इस सीट पर इस बार जीत किसकी होगी कोई बताने की स्थिति में नही है।
    यह हैं चुनावी मुद्दे
    इस क्षेत्र में  बेरोजगारी प्रमुख चुनावी मुद्दा है। इसकी वजह है इलाके में रोजगार के उपयुक्त साधन नहीं होना।  लोगों को मजबूरी में पलायन करना पड़ता है।  इसी तरह से दूसरा मुद्दा उच्च शिक्षा का है। इस इलाके में कोई कॉलेज नहीं है। इसकी वजह से छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए जिला मुख्यालय तक जाना पड़ता है। लगभग सही स्थिति  स्वास्थ्य सेवाओं की है। सरकारी अस्पतालों में चिकित्सक नही हैं।

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