किसानों का दाना-दाना खरीदकर आर्थिक मुसीबत में फंसी सरकार

आर्थिक मुसीबत
  • गोदामों में रखे गेहूं का किराया ही सरकार को 1260 करोड़ चुकाना पड़ा

    भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम।
    प्रदेश को सात कृषि कर्मण अवार्ड दिलाने वाले किसानों के मोहफांस में फंसी सरकार के सामने विकराल आर्थिक मुसीबत आ गई है। कोरोना के कहर के चलते पहले से ही आर्थिक संकट झेल रही सरकार ने किसानों का दाना-दाना खरीदकर कर्ज और बढ़ा लिया है। आज प्रदेश सरकार पर बैकों का 68 हजार करोड़ का लोन हो गया है। 18 करोड़ रुपए रोज यानी हर महीने 540 करोड़ इसे चुकाने में ही जा रहे हैं। यही नहीं सरकार को अब हर माह एक या दो हजार करोड़ रूपए कर्ज लेने पड़ रहे हैं। यही नहीं उपार्जन कर गोदामों में रखे गेहूं का किराया ही सरकार को 1260 करोड़ रुपए चुकाना पड़ रहा है। दरअसल, प्रदेश सरकार ने लिमिट से ज्यादा गेहूं और धान की खरीदी कर ली है, लेकिन अब केन्द्र सरकार यह अनाज नहीं उठा रही है, जिससे प्रदेश सरकार पर बैकों से लोन लेना पड़ रहा है। वहीं कर्ज का ब्याज  चुकाना भारी पड़ रहा है। प्रदेश के अफसर इस समस्या से निजात पाने के लिए बार-बार दिल्ली के चक्कर लगा रहे हैं, पर अब तक इसका हल नहीं निकल पाया है। इधर कर्ज की राशि लगातार बढ़ती जा रही है। केन्द्र सरकार हर साल गेहूं समेत अन्य फसलों की खरीद के लिए लिमिट तय करती है, पर प्रदेश में किसान से दाना-दाना खरीदा जाता है। खरीद के बाद जब राज्य सरकार प्रतिपूर्ति की राशि मांगती है, तो केन्द्र यह कहकर पेंच फंसा देता है कि पहले पुराने खाते क्लीयर किए जाएं। बताया जाता है कि केन्द्र ने वर्ष 2012-13 से गेहूं और 2011-12 से धान के खाते क्लीयर नहीं किए हैं। लिहाजा, राशि लेने के लिए नागरिक आपूर्ति निगम के अफसर दिल्ली के चक्कर काट रहे हैं।
    ज्यादा खरीदी का खर्च राज्य सरकार को उठाना पड़ रहा
    प्रदेश के किसानों को खुशहाल बनाने के लिए सरकार केंद्र द्वारा तय की गई लिमिट से अधिक अनाज समर्थन मूल्य पर खरीदती है। इससे प्रदेश सरकार पर आर्थिक बोझ बढ़ जाता है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली से बंटने वाले गेहूं का खर्चा तो केन्द्र से मिल जाता है, पर ज्यादा की गई खरीदी का खर्च राज्य सरकार को उठाना पड़ रहा है। प्रदेश के गोदामों में दो साल से 70 लाख मीट्रिक टन गेहूं जमा है। इस सरप्लस गेहूं को उठाने के लिए केन्द्र सरकार से कहा गया है, पर केन्द्र इस गेहूं को उठाने में आनाकानी कर रहा है। किसानों से गेहूं और धान का उपार्जन करने के लिए केन्द्र सरकार निर्धारित राशि देती है। इसे प्रावधानिक लागत पत्र कहते हैं। बाकी का भुगतान- जैसे उपज समितियों, परिवहन और गोदामों का किराया आदि का भुगतान राज्य सरकार करती है। प्रदेश में हर साल सवा लाख मीट्रिक टन से अधिक गेहूं खरीदा जा रहा है। इसलिए सरकार को बैकों और अन्य निजी संस्थाओं से कर्ज लेना पड़ता है।
    मप्र में सबसे अधिक गेहूं का स्टॉक
    बताते हैं कि प्रदेश में इस समय देश में सबसे अधिक गेहूं का स्टॉक है और अगर अगले छह साल तक भी गेहूं की खरीदी न की जाए, तो भी पीडीएस के तहत बंटने वाले गेहूं में कमी नहीं आएगी। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि गेहूं उपार्जन के लिए सरकार एडवांस में राशि नहीं देती है, बल्कि जब पीडीएस का स्टॉक उठता है, तो उसकी सब्सिडी के तौर पर राशि दी जाती है। अगर एफसीआई माल खरीदकर उसे अन्य प्रदेशों में भेजता है, तो उसका पैसा भी मिलता है। सूत्रों की मानें तो यह स्थिति पिछले दस सालों में बनी है। राज्य सरकार के पास इस समय विभिन्न गोदामों में 180 लाख मीट्रिक टन गेहूं और धान है। केन्द्र अगर इस गेहूं को खरीद लेता है, तो इससे प्रदेश को 58 हजार करोड़ से अधिक की राशि मिल जाएगी। इसके अलावा, नान को भी विभिन्न मदों में केन्द्र से पांच हजार करोड़ रुपए लेने हैं। यह राशि मिल जाए, तो प्रदेश सरकार के पास महज पांच हजार करोड़ का ही कर्ज बचेगा।
    गोदामों का किराया भी पड़ रहा भारी
    सरकार द्वारा लिमिट से अधिक खरीदी का असर यह हो रहा है कि उपार्जन कर गोदामों में रखे गेहूं का किराया ही सरकार को 1260 करोड़ रुपए चुकाना पड़ रहा है। दरअसल, केन्द्र की ओर से राज्य को पीडीएस में वितरण के लिए खरीदी से लेकर वितरण तक साढ़े पांच महीने का खर्च मिलता है। यानी इस अवधि में गेहूं की खरीदी करें और उसे बंटवाएं। इसी तरह धान खरीदी के बाद उसकी मिलिंग कर चावल बनवाए। यदि इससे ज्यादा समय तक अनाज गोदाम में रखा रहता है, तो उसका किराया राज्य सरकार को देना पड़ता है। अभी दो साल से 70 हजार मीट्रिक टन से अधिक गेहूं गोदामों में रखा है, जिसमें से शुरूआती साढ़े पांच महीने का किराया साढ़े सात रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से केन्द्र से मिल गया है। साढ़े पांच महीने का 262 करोड़ का भुगतान केन्द्र सरकार ने कर दिया है, बाकी 998 करोड़ रुपए राज्य सरकार को देना पड़ रहा  है।

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