सरकारी नौकरियों में ओबीसी आरक्षण का फैसला 20 को

ओबीसी आरक्षण
  • सरकार हाईकोर्ट में पेश करेगी भरी और रिक्त सीटों की स्थिति

    भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में इन दिनों ओबीसी आरक्षण का मामला गर्माया हुआ है। इस मामले को भुनाने के लिए कांग्रेस के साथ सत्तारूढ़ भाजपा भी जुटी हुई है। उधर, प्रदेश में ओबीसी को सरकारी नौकरियों में कितना आरक्षण मिलेगा, इसका फैसला 20 सितंबर को होगा।
    सरकार उस दिन ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण दिलवाने के लिए सरकारी विभागों में रिक्त सीटों का खाका प्रस्तुत करेगी। इसके लिए सामान्य प्रशासन विभाग के दिशा-निर्देश पर सभी विभागों ने अपने यहां भरे और खाली पदों की सूची तैयार करनी शुरू कर दी है।  मंत्रालयीन सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जबलपुर हाई कोर्ट में होने वाली अंतिम सुनवाई के मद्देनजर महाधिवक्ता कार्यालय ने सामान्य प्रशासन विभाग से सभी श्रेणियों में भरे और रिक्त पदों की जानकारी मांगी है। इसमें अनारक्षित, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए स्वीकृत, भरे और रिक्त पद की स्थिति विभागवार बतानी है। इस जानकारी को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा। इस संदर्भ में सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव डा. श्रीनिवास शर्मा ने अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव और सचिव को पत्र लिखकर अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के मामले में 20 सितंबर को होने वाली सुनवाई का हवाला देते हुए स्वीकृत, भरे और रिक्त पदों की जानकारी मांगी है।
    सरकार मौका नहीं चूकना चाहती
    प्रदेश में ओबीसी की जनसंख्या आधी से अधिक है। अत: इस वर्ग को साधने के लिए सभी पार्टियां पुरजोर कोशिश कर रही हैं। भाजपा और प्रदेश सरकार ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण दिलाने की हर कोशिश में जुटी हुई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान स्वयं मामले की निगरानी कर रहे हैं। वे तीन बार महाधिवक्ता पुरुषेन्द्र कौरव सहित उनके सहयोगियों के अलावा वरिष्ठ मंत्रियों से भी बैठक कर चुके हैं। दरअसल, मामला सियासी रंग ले चुका है। कांग्रेस पिछड़ा वर्ग को साधने के लिए 27 फीसदी आरक्षण देने के कदम को अपनी उपलब्धि के तौर पर बता रही है। वहीं, भाजपा आरोप लगा रही है कि कांग्रेस ने पिछड़ा वर्ग को धोखा दिया है।
    एक लाख से ज्यादा पद खाली
    एक तरफ विभाग अपने यहां खाली और भरे पदों की सूची तैयार कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ मप्र कर्मचारी मंच के पदाधिकारियों का दावा है कि प्रदेश में एक लाख से ज्यादा पद रिक्त हैं। इनमें स्कूल शिक्षा में 10345, गृह विभाग में 7661, स्वास्थ्य विभाग में 35000, जनजातीय विभाग में 6500, वन विभाग में 7425, राजस्व विभाग में 5000, कृषि विभाग में 2500, महिला एवं बाल विकास विभाग में 13000, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग में 12000, आदिम जाति कल्याण विभाग में 5629, उद्यानिकी विभाग में 3238, उद्योग विभाग में 2156, सहकारिता विभाग में 13256, श्रम विभाग में 1219, नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग में 13226, लोक निर्माण विभाग में 7128, नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण में 9346,जल संसाधन विभाग में 10219,खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग में 9216, पशुपालन विभाग में 5218, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग में 10221 सहित कई विभागों में हजारों पद रिक्त हैं।
    वर्गवार जानकारी जुटा रहे विभाग: जीएडी से मिले दिशा-निर्देश के बाद प्रदेश के सभी सरकारी विभाग वर्गवार खाली और भरे पदों की सूची तैयार कर रहे हैं। दरअसल, सरकार 27 प्रतिशत आरक्षण के पक्ष में रिक्त पदों की स्थिति का ब्योरा प्रस्तुत करेगी। इसमें बताया जाएगा कि प्रथम, द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के पदों पर वर्गवार क्या स्थिति है। इसके लिए विभागों से अनारक्षित, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछडा वर्ग और आर्थिक तौर पर कमजोर वर्ग के लिए स्वीकृत, भरे और रिक्त पदों की जानकारी मांगी गई है। साथ ही अनुसूचित जाति-जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के बैकलाग व कैरी फारवर्ड पदों की मौजूदा स्थिति भी पूछी गई हैं। विभागों को यह भी बताना होगा कि वर्ष 2017 से किस श्रेणी के पदों पर किसी वर्ग की कितनी नियुक्तियां हुई हैं।
    सरकार से जवाब-तलब
    उधर, हाईकोर्ट ने अन्य पिछड़ा वर्ग, ओबीसी आरक्षण से संबंधित एक याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य शासन से जवाब-तलब कर लिया है। मामले की अगली सुनवाई 20 सितंबर को होगी। मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक व जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ के समक्ष यह मामला सुनवाई के लिए लगा। इस दौरान याचिकाकर्ता यूथ फॉर इक्वेलिटी की ओर से अधिवक्ता सुयश ठाकुर ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि राज्य शासन के सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा दो सितंबर, 2021 को ओबीसी आरक्षण के संबंध में जारी नया आदेश चुनौती के योग्य है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह आदेश ओबीसी आरक्षण मामला कोर्ट में लंबित होने के बावजूद मनमाने तरीके से जारी किया गया है। हाई कोर्ट ने अपने पूर्व आदेश में पहले से चला आ रहा स्थगन आदेश वापस लेने से इनकार कर लिया था। यह कदम सालीसिटर जनरल तुषार मेहता व महाधिवक्ता पुरुषेंद्र कौरव के तर्क सुनने के बाद उठाया गया था। लिहाजा, सवाल उठता है कि जब 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण पर रोक कायम है, तो राज्य शासन ने मनमाना आदेश कैसे जारी कर दिया। इस आदेश में हाई कोर्ट के लंबित तीन मामलों को छोड़कर शेष में 27 फीसद ओबीसी आरक्षण लागू किए जाने की व्यवस्था दी गई है। इससे हाई कोर्ट के स्थगन आदेश की मूल भावना आहत हुई है।

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