
- प्रदेश में वनाधिकार अधिनियम करीब डेढ़ दशक पहले वर्ष 2006 में लागू किया गया था
भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में एक बार फिर से वनाधिकारी पट्टे देने के लिए कराए जा रहे सर्वे के नाम पर लाखों रुपए फूंकने की तैयारी कर ली गई है। यह सर्वे फिर से तब कराया जा रहा है जबकि पहले से विभाग और सरकार के पास उनका पूरा रिकॉर्ड मौजूद है। यह सर्वे प्रदेश में रहने वाले वनवासी परिवारों का किया जाना है। फिलहाल सरकार के पास मौजूद रिकॉर्ड के मुताबिक दो लाख उनहत्तर हजार सत्तर परिवार हैं। यह सभी परिवार प्रदेश के 44 जिलों में रहते हैं। बताया जा रहा है कि इनके सर्वे पर अकेले एक फार्म में जानकारी भरने पर दस रुपए खर्च करना निर्धारित किया गया है, जिसकी वजह से लगभग 27 लाख रुपए खर्च होना तय है। वैसे तो मप्र में वनाधिकार अधिनियम करीब डेढ़ दशक पहले वर्ष 2006 में लागू किया गया था। इसके बाद वनवासियों को उनके कब्जे वाली जमीन का पट्टा देने के लिए सर्वे कराया गया था। इस सर्वे के बाद दावे और आपत्तियां भी बुलाई गई थीं। जिसके बाद सरकार ने जो आंकड़े जारी किए थे, उसके मुताबिक प्रदेश में 2 लाख 65 हजार 443 आदिवासी और 3 हजार 864 परिवार अन्य परंपरा के बताए गए थे। जब सरकार के पास इन सभी का पूरा ब्यौरा पहले से ही मौजूद है तो फिर दोबारा सर्वे कराने और उस पर राशि खर्च करने वाला कदम उठाना समझ से परे है। गौरतलब है कि केन्द्र सरकार द्वारा संविधान के अनुच्छेद 275 (1)के तहत वनाधिकार पत्र धारकों को शासन द्वारा संचालित योजनाओंं का लाभ देने के निर्देश राज्यों को दिए गए हैं।
राशि को किया जारी
इस सर्वे के लिए हाल ही में आदिम जाति क्षेत्रीय विकास योजनाओं के संचालक द्वारा जिलों को राशि आवंटित की जा चुकी है। इसके लिए करीब 27 लाख रुपए जारी किए गए हैं। यह राशि विभाग के तहत आने वाले 26 जिलों के सहायक आयुक्तों और डेढ़ दर्जन जिलों के जिला संयोजकों को दी गई है।