
- बारिश का सीजन शुरू होने से के साथ ही धान खराब होने की आशंका भी बढ़ गई है…
भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में धान मिल संचालकों का रवैया सरकार को बिल्कुल भी नहीं भा रहा है। दरअसल मिलर्स एसोसिएशन ने राज्य सरकार के साथ मिलिंग की दर को लेकर विवाद इतना बढ़ा लिया है कि अब यह विवाद आसानी से सुलझता नजर नहीं आ रहा। यही वजह है कि राज्य सरकार भी मिलर्स की मोनोपॉली खत्म करने पर विचार कर रही है। सरकार का मानना है कि यदि धान मिलिंग की नई और बड़ी इकाइयां स्थापित करा दी जाएं तो एक तो प्रदेश में धान मिलिंग की क्षमता बढ़ जाएगी दूसरे मिलर्स का सरकार पर दबाव भी कम होगा। बता दें कि प्रदेश में फिलहाल तीस लाख मीट्रिक टन से अधिक धान की मिलिंग अटकी हुई है। हालांकि मुख्यमंत्री ने वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा, खाद्य मंत्री बिसाहूलाल सिंह, कृषि मंत्री कमल पटेल, सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरिया और आयुष राज्य मंत्री रामकिशोर कांवरे की मंत्रिमंडलीय उप समिति भी बनाई है लेकिन इस उप समिति में भी मिलिंग को लेकर कोई हल नहीं निकला है। दरअसल मिलर्स का कहना है कि यहां धान की क्वालिटी ऐसी नहीं है कि उससे इतना चावल निकाला जा सके। इसे लेकर मिलर्स ने सरकार से प्रोत्साहन राशि बढ़ाने की मांग की है। सरकार ने इसे 25 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 50 रुपए प्रति क्विंटल तो कर दिया है लेकिन मामला अभी भी अटका हुआ है। यही नहीं पिछले ढाई से तीन से महीने बीत चुके हैं लेकिन मिलर्स और सरकार के बीच चल रही खींचतान का अब तक कोई नतीजा नहीं निकला है। वहीं अब राज्य सरकार ने प्रोत्साहन राशि बढ़ाने के मामले को लेकर कैबिनेट में लाने की तैयारी की है। यानी अब जो भी फैसला होगा कैबिनेट में ही होगा। राज्य सरकार प्रदेश में किसानों को इस बात के लिए भी प्रेरित करने जा रही है कि धान की ऐसी लाभ देने वाली प्रजाति लगाएं जिससे कि धान की टूटन कम हो। बता दें कि मिलर्स मध्य प्रदेश में धान की टूटन अधिक होने का हवाला देते हुए ही प्रोत्साहन राशि को दो रुपए प्रति क्विंटल तक बढ़ाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन राज्य सरकार इस पर सहमत नहीं है। अब सरकार द्वारा किसानों को धान के अलावा अन्य लाभ वाली फसलों को भी लेने के लिए जागरूक करने की तैयारी की जा रही है। प्रदेश में धान की अधिक खरीदी होने के साथ ही राज्य सरकार को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत प्रदाय किए जाने वाले सस्ते राशन के लिए धान की मिलिंग कराने की भी जिम्मेदारी है। वहीं इतनी अधिक मिलिंग होने और प्रदेश के मिलर्स का रवैया सहयोगात्मक नहीं होने से सरकार की चिंताएं बढ़ गई है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री ने मिलर्स को प्रोत्साहन राशि बढ़ाने के मामले को कैबिनेट में पेश करने का निर्णय लिया है।
धान की हुई है अधिक खरीदी
उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश में धान का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। धान का रकबा बढ़ने से सरकारी खरीद भी अधिक हो रही है। वर्तमान में प्रदेश में 804 मिलर्स हैं। वहीं मिलिंग की अधिकतम क्षमता पैंतीस हजार मीट्रिक टन प्रतिदिन है। वर्ष 2020-21 में कुल 37.26 मीट्रिक टन धान खरीदा गया जबकि वर्ष 2017-18 में खरीदी मात्र 16.60 मीट्रिक टन थी। यानी धान की खरीदी बढ़ने के साथ ही उसकी मिलिंग में भी दिक्कत आई है।
विभाग को है कैबिनेट की अनुमति का इंतजार
उल्लेखनीय है कि प्रदेश के मिलर्स एसोसिएशन से बात नहीं बन पाने के बाद सरकार ने दूसरे राज्यों के मिलर्स से मिलिंग कराने का फैसला लिया था लेकिन अन्य राज्यों के मिल संचालकों ने भी कोई रुचि नहीं दिखाई। वहीं अब खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति को रेट व अन्य मामलों के लिए कैबिनेट की अनुमति का इंतजार है। बारिश शुरू होने से धान खराब होने की आशंका भी बढ़ गई है।
धान की टूटन ने बढ़ाई परेशानी
हालांकि शुरूआती दिनों में राज्य सरकार ने प्रोत्साहन राशि को लेकर चल रहे विवाद को सुलझा लिया था लेकिन बाद में टूटन को लेकर विवाद इतना बढ़ा की अब तक भी नहीं सुलझा। बीते दिनों मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ भी मिलर्स एसोसिएशन के पदाधिकारियों की चर्चा हुई थी जिसमें प्रोत्साहन राशि को 25 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 50 रुपए किए जाने का अनुरोध किया गया था। मुख्यमंत्री चौहान ने उनकी इस मांग को स्वीकार करते हुए प्रोत्साहन राशि बढ़ाते हुए 50 रुपए प्रति क्विंटल कर दी थी। लेकिन बाद में धान की अधिक टूटन का हवाला देते हुए मिलर्स ने नुकसान के कारण मिलिंग में रुचि नहीं लेते हुए इसे 100 एवं 200 रुपए प्रति क्विंटल किए जाने की मांग रख दी। वर्तमान स्थिति को देखें तो प्रदेश की वर्तमान में मिलिंग क्षमता 35 हजार मीट्रिक टन प्रतिदिन है। इस लिहाज से 25 लाख मीट्रिक टन धान की मिलिंग के लिए आठ महीने से अधिक का समय लग जाएगा। प्रदेश के लिए परेशानी का कारण यह भी है कि धान उत्पादन में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।