कोरोना संकट में भदभदा विश्राम घाट पर मृतकों के परिजनों को मिल रही मदद

कोरोना संकट

-समिति ने किए रात को ठहरने और भोजन-पानी के इंतजाम

भोपाल/राजीव चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम।
कोरोना वायरस संक्रमण से मरे अपने परिजनों का अंतिम संस्कार करने यहां भदभदा विश्राम घाट पर पहुंच रहे लोगों के लिए रात में ठहरने, खाने-पीने एवं सोने का इंतजाम किया गया है, ताकि जरुरत होने पर वे इन सुविधाओं का लाभ ले सकें। भदभदा विश्राम घाट प्रबंधन समिति के अध्यक्ष अरुण चौधरी ने बिच्छू डॉट कॉम को बताया कि शहर के अस्पतालों में महामारी से बड़ी संख्या में लोगों की मौतें हुई हैं, जिस कारण विश्राम घाट में शवों का अंतिम संस्कार करने के लिए लंबी-लंबी कतारें लग रही हैं, परिजनों को दाह-संस्कार के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। इनमें सबसे ज्यादा परेशानी बाहर से आने लोगों को हो रही है।
दरअसल अस्पताल से शव लेने में सात-आठ घंटे का समय लग जाता हैं। उसके बाद जब परिजन अंतिम संस्कार के लिए विश्राम घाट पहुंचते हैं तो यहां भी करीब तीन से चार घंटे लग जाते हैं। ऐसे में 11-12 घंटे गुजर जाते हैं। कई लोग तो भूख प्यास से ही चक्कर खाकर गिर जाते थे। चौधरी बताते हैं कि मृतकों के परिजनों की ये हालात देखी नहीं जा सकती थी। ऐसे में शुरूआत स्वयं के पैसे से पीने के पानी की पचास हजार बॉटल उपलब्ध कराकर सामाजिक लोगों से सहयोग की अपील की। विश्राम घाट से जुड़े उद्योगपति राजेश वाधवानी और आर्किटेक्ट अजय कटारिया ने आगे आकर खुले मन से सहयोग किया है। उसके बाद सहयोग करने लिए विभिन्न क्षेत्रों और संगठनों के लोग जुड़ते गए और उसी के अनुसार व्यवस्थाओं में वृद्धि करते गए।  
निरंतर मिल रहा है दान
विश्राम घाट को एक डबल डोर रेफ्रिजरेटर भी किसी ने दान दिया है। दूसरे जिलों से आये ठहरे इन जरूरतमंद लोगों की मदद करने के लिए हमें भोजन सामग्री एवं पानी की बोतलें निरंतर दान में मिल रही हैं। रात को रुकने वालों के लिए कुछ बिस्तरों का भी इंतजाम किया गया है। पिछले हफ्ते में विश्राम घाट में 60 शवों का अंतिम संस्कार किया गया। इनमें से 54 कोविड-19 से मरे थे, जिनमें 38 भोपाल जिले के थे, जबकि 16 अन्य जिलों के थे।
ठहरने पर खाना-पानी और बिस्तर भी उपलब्ध
कोरोना वायरस संक्रमण से मरे अपने परिजनों का अंतिम संस्कार करने यहां भदभदा विश्राम घाट पर आये लोगों के लिए रात में ठहरने, खाने-पीने एवं सोने का इंतजाम किया गया है, ताकि जरुरत होने पर वे इन सुविधाओं का लाभ ले सकें। दरअसल पिछले कुछ दिनों में शहर के अस्पतालों में महामारी से बड़ी संख्या में लोगों की मौतें हुई है, जिस कारण विश्राम घाट में शवों का अंतिम संस्कार करने के लिए लंबी-लंबी कतारें तक लगी। यजी नहीं कई बार तो परिजनों को दाह-संस्कार के लिए लंबा इंतजार भी करना पड़ रहा है। ऐसे में दूसरे जिलों जैसे होशंगाबाद, बैतूल, रायसेन गुना, सीहोर आदि से आये लोगों को अपने परिजन की अस्थियां ले जाने के लिए रात में भोपाल में रूकना पड़ता है लेकिन कोरोना कर्फ्यू के कारण उनके सामने भोजन-रहने की समस्या सबसे बड़ी होती है। लोगों की इन्हीं परेशानियों को देखते हुए स्थानीय लोगों की मदद से विश्राम घाट पर चाय, पानी, रहने और भोजन की व्यवस्था की गई है। कोविड से मरने वाले प्रियजनों का दाह संस्कार करने वाले लोग आवश्यकता अनुसार इन सुविधाओं का लाभ ले रहे हैं। चौधरी ने बताया कि विश्राम घाट में आजकल रोजाना करीब छह से सात लोग अपने परिजन की अस्थियां ले जाने के लिए रात को ठहरते हैं।
देर रात तक खुद संभालते हैं व्यवस्थाएं
कोरोना संकट काल में लोगों की परेशानियों को कैसे कम किया जाए इसके लिए विश्राम घाट समिति के अध्यक्ष अरुण चौधरी और सचिव ममतेश शर्मा अपनी जान जोखिम में डालकर सुबह से लेकर देर रात तक खुद व्यवस्थाओं को संभालते हैं। यही नहीं लोगों को ठहरने से लेकर हाईजीन भोजन, चाय, पानी के अलावा अंतिम संस्कार के लिए गौकाष्ट की व्यवस्था तक करते हैं।
पर्दे के पीछे रहकर मदद कर रहे वाधवानी और कटारिया
पिछले साल 20 सितंबर को अपनी मां की पुण्यतिथि से प्रेरणा लेकर उद्योगपति राजेश वाधवानी ने विश्राम घाट पर पीने के पानी के लिए 450 लीटर का आरओ वॉटर फ्रिज लगवाया  था। इसके लिए बाकायदा एक कमरे का निर्माण कराया गया। कोरोना के दौरान अस्थियां रखने की दिक्कत को देखते हुए पांच अलमारियां (लॉकर) भेंट की गई। इसके साथ ही वाधवानी द्वारा पिछले मार्च से लेकर अब तक डेढ़ लाख पानी की पैक्ड बोतलें तथा डिस्पोजल सामग्री दान कर चुके हैं।  इसके अलावा ठहरने वाले मृतकों के परिजनों को दोनों वक्त के भोजन और चाय के लिए आटा, दाल, चावल, सब्जियां, वेसन, शक्कर सहित सभी जरूरी सामग्री की पर्याप्त दान दी जा रही है। इसमें राजधानी के प्रसिद्ध आर्किटेक्ट अजय कटारिया भी निरंतर सहयोग कर रहे हैं।

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