जीवन ज्योति बीमा योजना में ठगी का खुलासा

  • मृत लोगों को जीवित दिखाकर हड़पे 20 करोड़

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम
ग्वालियर-चंबल संभाग में प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना के नाम पर एक बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़े का पर्दाफाश हुआ है। आर्थिक अपराध शाखा की जांच में सामने आया है कि इस घोटाले में मृत लोगों को जीवित दिखाकर उनके नाम पर बीमा पॉलिसी बनाई गई और फर्जी मृत्यु प्रमाण-पत्रों के जरिए करीब 20 करोड़ रुपए की बीमा राशि हड़प ली गई। अब तक 1,004 संदिग्ध बीमा क्लेम की पहचान की गई है, और यह आंकड़ा बढऩे की संभावना है। इस घोटाले में बीमा कंपनी के कर्मचारियों, पंचायत सचिवों, और अन्य लोगों की मिलीभगत सामने आई है, जिसमें ग्वालियर और मुरैना के कई आरोपी शामिल हैं। ईओडब्ल्यू ने इस मामले में कई लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है, और जांच को और गहरा करने की तैयारी कर रही है। प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, जिसे 2015 में शुरू किया गया था, गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों को कम प्रीमियम (मात्र 436 रुपये सालाना) पर 2 लाख रुपये का जीवन बीमा कवर प्रदान करती है। इस योजना का लाभ उठाने के लिए लाभार्थी की आयु 18 से 50 वर्ष होनी चाहिए, और मृत्यु होने पर क्लेम के लिए वैध दस्तावेज आवश्यक हैं। लेकिन ग्वालियर-चंबल संभाग में इस योजना का दुरुपयोग कर एक संगठित गिरोह ने योजनाबद्ध तरीके से ठगी को अंजाम दिया।
ईओडब्ल्यू को फरवरी 2025 में ग्वालियर में एक शिकायत मिली थी, जिसमें संदिग्ध बीमा क्लेम की जानकारी दी गई थी। जांच शुरू होने पर पता चला कि इस घोटाले में मृत लोगों को जीवित दिखाकर उनके नाम पर बीमा पॉलिसी बनाई गई, और फिर फर्जी मृत्यु प्रमाण-पत्र बनवाकर बीमा राशि का क्लेम किया गया। अब तक की जांच में 1,004 संदिग्ध क्लेम सामने आए हैं, जिनमें से अधिकांश फर्जी पाए गए हैं। ईओडब्ल्यू का अनुमान है कि इस घोटाले की राशि 20 करोड़ रुपये से अधिक हो सकती है, और जांच आगे बढऩे पर यह आंकड़ा और बढ़ सकता है।
गरीबों को लालच देकर जाल में फंसाया
इस घोटाले का संचालन मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में किया गया, जहां लोगों की जानकारी की कमी का फायदा उठाया गया। गिरोह के सदस्य गरीब और अनपढ़ लोगों को निशाना बनाते थे। उन्हें ऋण या सरकारी योजनाओं में आर्थिक मदद का लालच देकर उनके आधार कार्ड, पैन कार्ड, और बैंक खाते जैसे दस्तावेज हासिल कर लिए जाते थे। इसके बाद, इन दस्तावेजों का उपयोग कर मृत लोगों के नाम पर फर्जी बीमा पॉलिसी बनाई जाती थी। पंचायत सचिवों की मिलीभगत से फर्जी मृत्यु प्रमाण-पत्र तैयार किए जाते थे, जिनका इस्तेमाल बीमा क्लेम के लिए किया जाता था। कई मामलों में, पहले से मृत लोगों को जीवित दिखाकर उनके नाम पर पॉलिसी बनाई गई, और फिर दोबारा फर्जी मृत्यु प्रमाण-पत्र बनवाकर क्लेम हासिल किया गया। इस प्रक्रिया में बीमा कंपनियों के कर्मचारी और सर्वेयर भी शामिल थे, जो क्लेम की जांच में गड़बड़ी कर फर्जीवाड़े को अंजाम देते थे।
ईओडब्ल्यू की कार्रवाई और जांच की प्रगति
आर्थिक अपराध शाखा ने इस मामले में तेजी से कार्रवाई शुरू की है। अब तक 1,004 संदिग्ध क्लेम की जांच की जा चुकी है, और कई आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी), 467, 468 (जालसाजी के उद्देश्य से दस्तावेज बनाना), और 471  के तहत मामले दर्ज किए गए हैं। ईओडब्ल्यू ने बैंकों, पंचायत कार्यालयों, और बीमा कंपनियों से दस्तावेज जब्त किए हैं, और फोरेंसिक जांच के लिए इन्हें भेजा गया है। ईओडब्ल्यू के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि यह एक संगठित अपराध है, जिसमें कई स्तरों पर मिलीभगत शामिल है।
मुरैना में 679 संदिग्ध प्रकरण
मुरैना जिले में इस घोटाले की सबसे ज्यादा परतें खुली हैं। ईओडब्ल्यू की जांच में 679 संदिग्ध बीमा क्लेम सामने आए, जिनमें से 5 मामलों में साफ तौर पर फर्जीवाड़ा पाया गया। इन मामलों में पहले से मृत लोगों को जीवित दिखाकर उनके नाम पर बीमा पॉलिसी बनाई गई थी। इसके बाद, पंचायत सचिवों की मदद से फर्जी मृत्यु प्रमाण-पत्र तैयार किए गए, और बीमा राशि हड़प ली गई। मुरैना में पंचायत सचिव सूरजराम कुशवाह और मानसिंह कुशवाह सहित कई लोगों के खिलाफ ईओडब्ल्यू ने मामला दर्ज किया है। जांच में पता चला कि पंचायत सचिवों को मृत्यु प्रमाण-पत्र जारी करने का अधिकार होने के कारण उनकी भूमिका इस घोटाले में महत्वपूर्ण थी। बिना उनकी मिलीभगत के फर्जी दस्तावेज तैयार करना असंभव था।
ग्वालियर में बीमा कर्मचारियों पर गाज
ग्वालियर में इस घोटाले में बीमा कंपनी के कर्मचारियों की संलिप्तता भी सामने आई है। ईओडब्ल्यू ने बीमा कंपनी के कर्मचारी विवेक दुबे, जिग्नेश प्रजापति, और दीपमाला मिश्रा के खिलाफ मामला दर्ज किया है। ये कर्मचारी फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बीमा पॉलिसी स्वीकृत करने और क्लेम प्रक्रिया को आसान बनाने में शामिल थे। जांच में यह भी पता चला कि कुछ सर्वेयर फर्जी क्लेम की जांच में जानबूझकर लापरवाही बरतते थे, जिससे बीमा कंपनियों को लाखों रुपये का नुकसान हुआ।

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