भोज वेटलैंड का कैचमेंट चुरा रहे हैं रसूखदार

  • एनजीटी के आदेश के बाद भी नहीं हो रही कार्रवाई

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। भोज वेटलैंड और तालाबों के किनारे हो रहे अतिक्रमण और अवैध निर्माण को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल कई बार शासन-प्रशासन को नोटिस दे चुका है, लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। हैरानी की बात यह है कि रसूखदार भोज वेट लैंड का कैचमेंट चुरा रहे हैं। यानी कैचमेंट एरिया में लगातार अतिक्रमण किया जा रहा है। इसको लेकर एनजीटी की सेंट्रल बेंच ने तल्ख टिप्पणी की है। स्थिति को बेहद असंतोषजनक बताते हुए कहा है कि राज्य के अधिकारी या तो कानून से ऊपर हैं या फिर उसके नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा भोज वेटलैंड और तालाबों से अतिक्रमण हटाने को लेकर पिछले पांच साल में कई बार आदेश देने के बावजूद कार्रवाई नहीं हो रही है। इसको लेकर एनजीटी की सेंट्रल बेंच ने तल्ख टिप्पणी की है। स्थिति को बेहद असंतोषजनक बताते हुए कहा कि राज्य के अधिकारी या तो कानून से ऊपर हैं या फिर उसके नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं। ट्रिब्यूनल ने वेटलैंड के प्रत्येक इंच से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया है। नगर निगम की ओर से इस पर अमल के लिए तीन हफ्ते का समय मांगा गया। बेंच ने इसकी स्वीकृति देते हुए अगली सुनवाई की तारीख नौ जुलाई 2025 तय की है।
एनजीटी ने अफसरों से मांगी रिपोर्ट
ट्रिब्यूनल ने नगर निगम कमिश्नर, कलेक्टर और स्टेट वेटलैंड अथॉरिटी के मेंबर सेक्रेटरी की अतिक्रमण हटाने और जलाशयों में गंदा पानी नहीं मिले, यह सुनिश्चित करने की हिदायत दी है। तीनों अफसरों से व्यक्तिगत शपथ पत्र और कार्रवाई की रिपोर्ट सौंपने के निर्देश दिए हैं। इस आदेश की कॉपी मुख्य सचिव, पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव और मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भी भेजी जाएगी। हाल में हुई सुनवाई में तालाबों में गंदगी छोड़ रही ड्रेन, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, भोज वेटलैंड से अतिक्रमण हटाने को लेकर सवाल पूछा गया था। इसका नगर निगम के वकील संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि अतिक्रमण हटाने को लेकर पहले रिपोर्ट दी गई थी। हाल में प्रशासन के अधिकारियों के साथ मौका मुआयना किया तो वहां कई अतिक्रमण मिले। इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। आरोप लगाया कि ट्रिब्यूनल के समक्ष गलत रिपोर्ट पेश की गई। दरअसल, भोज वेटलैंड और तालाबों में अतिक्रमण और गंदा पानी छोडऩे का मामला आर्या श्रीवास्तव ने याचिका के जरिए उठाया। इस पर सुनवाई के दौसन ट्रिब्यूनल ने संबंधित अधिकारियों से रिपोर्ट मांगी थी। इसमें भोपाल के तालाबों में सीवेज छोड़ रहे कुल ड्रेन, वहां लगाए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों की संख्या, शहर में पानी की खपत, पानी के ट्रीटमेंट की कुल क्षमता, अंतर को पाटने के लिए नगर निगम की प्लानिंग, तालाबों में गंदगी छोडऩे वालों के खिलाफ कार्रवाई आदि की जानकारी मांगी थी।
रसूखदारों का कब्जा
बड़ी झील में पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम-1986, वेटलैंड (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017 और संविधान के अनुच्छेद 21 और 48-ए के नियमों का उल्लंघन किया जा रहा है। इन नियमों के मुताबिक शहरी इलाकों में एफटीएल से 50 मीटर और ग्रामीण इलाकों में 250 मीटर के अंदर निर्माण पर रोक है। इसके बावजूद प्राइवेट बिल्डर और सरकारी अधिकारी द्वारा संरक्षित क्षेत्रों में अवैध रूप से जमीनों पर कब्जे किए जा रहे हैं। यहां मिट्टी और मुरम से गड्ड़े भर कर सडक़ें बनाई गई और हाउसिंग सोसाइटियां काटी जा रही हैं।

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