
- जेस्टेशनल डायबिटीज मेलाइट्स अभियान
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। देश में महिलाओं को लेकर एक चौकाने वाला खुलासा हुआ है। यह मामला महिलाओं में गर्भकालीन मधुमेह का है। प्रदेश के एक दर्जन जिलों में चलाए गए अभियान में पता चला है कि ग्रामीण की तुलना में शहरी महिलाएं दोगुनी गर्भकालीन मधुमेह का शिकार हो रही हैं। अभियान के आंकड़ों में बताया गया है कि शहरों में 22 और ग्रामीण क्षेत्रों में 10 प्रतिशत महिलाओं को गर्भकालीन मधुमेह की समस्या पाई गई है। अगर इसका राष्ट्रीय औसत देख जाए तो वह 17 प्रतिशत है। यह आंकड़े राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचम) द्वारा प्रदेश के 12 जिलों में पायलट प्रोजेक्ट के तहत जेस्टेशनल डायबिटीज मेलाइट्स (जीडीएम) अभियान के दौरान सामने आए हैं। इन गंभीर आंकड़ों के बाद एनएचएम ने पूरे प्रदेश के जिलों में जीडीएम अभियान शुरू करने के लिए निर्देश दिए हैं। बता दें कि गर्भावस्था के दौरान मां और बच्चे में जेस्टेशनल डायबिटीज मेलाइट्स (जीडीएम) यानी गर्भकालीन मधुमेह एक गंभीर समस्या बनकर उभर रही है, जिस कारण मां और बच्चे के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
इस अभियान के तहत सीएचओ, वीडीएचडी स्तर पर ओजीटीटी जांच और प्रबंधन करेंगे। संस्था स्तर पर एएनसी क्लिनिक में सभी गर्भवती महिलाओं की ओरल ग्लूकोज टालरेंस टेस्ट (ओजीटीटी) जांच की जाएगी, अगर जांच पाजिटिव आती है तो महिला का एक माह तक फालोअप किया जाएगा। यदि शुगर की रीडिंग 120 एमजी या उससे अधिक होती है तो सीएचओ द्वारा उच्च स्वास्थ्य केंद्र पर रेफर किया जाएगा। इसके लिए जीडीएम टेस्टिंग, जीडीएम प्रबंधन और चिकित्सीय प्रबंधन की अलग-अलग टीमें बनाई जाएंगी। इस टीम में नर्सिंग आफिसर, सीएचओ, एएनएम, मेडिकल आफिसर या विशेषज्ञ शामिल होंगे।
50 प्रतिशत महिलाओं में बना रहता है मधुमेह
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भोपाल में स्त्री रोग व प्रसूति विभाग के अध्यक्ष प्रो. डॉ. अजय हलदार ने बताया कि मप्र में गर्भकालीन मधुमेह की समस्या लगातार बढ़ रही है। गांव की दुबली पतली या मेहनतकश महिलाओं की तुलना में शहरी महिलाओं को गर्भकालीन मधुमेह की समस्या ज्यादा होती है। इसमें 50 प्रतिशत महिलाओं में प्रसव के बाद हार्मोन बदलाव से समस्या खत्म हो जाती है, वहीं शेष 50 प्रतिशत में भविष्य में भी मधुमेह की समस्या होती है। गर्भावस्था के दौरान महिलाओं की आवश्यक रूप से एनेमिया, एचआईवी, हेपेटाइटिस बी और डायबिटीज की जांच आवश्यक रूप की जाती है। डायबिटीज इन प्रेग्नेंसी स्टडी ग्रुप आफ इंडिया (डिक्सी) द्वारा उसकी गाइडलाइन के हिसाब से गर्भवती महिलाओं की स्क्रीनिंग की जाती है। इसमें महिला को शुगर कराया जाता है। इस बीमारी के पहले उसकी जांच की जाती है।
गर्भावस्था के दौरान यह होती है समस्या
गर्भावस्था में डायबिटीज होने से गर्भस्थ शिशु को मस्तिष्क, हृदय और तंत्रिका-तंत्र से संबंधित बीमारियां होने का खतरा रहता है। कई महिलाओं को इस बीमारी की जानकारी उस समय होती है जब गर्भावस्था के दौरान मिलती है। इसकी वजह उनके द्वारा गर्भावस्था से पहले डायबिटीज की जांच न कराना है। गर्भावस्था के दौरान ब्लड में शुगर लेवल बढ़ने से कुछ महिलाओं की बच्चेदानी में पानी बढ़ जाता है। इस कारण सीजर डिलीवरी की नौबत आती है। डॉक्टरों की मानें तो इसमें बच्चों की मौत भी हो जाती है। इसमें माता-पिता दोनों को डायबिटीज है, तो उनके बच्चे को 25 प्रतिशत तक इसका खतरा रहता है। सिर्फ मां के डायबिटिक होने पर तीन प्रतिशत और पिता के डायबिटिक होने पर नौ प्रतिशत तक बच्चों को जन्म के बाद यह बीमारी होती है।