- भाजपा के अनुषांगिक संगठनों के साथ संघ भी जुटा
- विनोद उपाध्याय

मोदी के मिशन 400 पार को पूरा करने के लिए भाजपा ने मप्र की सभी 29 लोकसभा सीटों को जीतने का टारगेट सेट किया है। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए भाजपा आदिवासी बाहुल्य सीटों पर अधिक फोकस कर रही है। इसकी वजह यह है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने आदिवासी बाहुल्य सीटों पर भाजपा को कड़ी टक्कर दी थी। ऐसे में भाजपा का पूरा ध्यान इस बात पर है कि आदिवासी मतदाताओं को साध कर जीत का रिकॉर्ड बनाया जाए। इसके लिए भाजपा के अनुषांगिक संगठनों के साथ ही संघ भी मोर्चे पर सक्रिय हो गया है।
वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भले ही भाजपा ने अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) की सभी 10 सीटें जीतीं ,पर एससी की तुलना में एसटी सीटों पर कांग्रेस ने भाजपा को कड़ी चुनौती दी। दोनों चुनाव में चारों एससी सीटों पर भाजपा प्रत्याशी कांग्रेस से लगभग 21 प्रतिशत से अधिक मतों से जीते, पर एसटी की अधिकतम सीटों पर भाजपा 15 प्रतिशत से कम मतों के अंतर से ही जीत पाई। मंडला से भाजपा प्रत्याशी फग्गन सिंह कुलस्ते और रतलाम से गुमान सिंह डामोर तो 10 प्रतिशत से भी कम अंतर से 2019 में जीते थे। गत विधानसभा चुनाव में भी एसटी के लिए आरक्षित 47 सीटों में भाजपा ने 24, कांग्रेस ने 22 और एक सीट भारत आदिवासी पार्टी ने जीती थी। यही कारण है कि भाजपा लोकसभा चुनाव में आदिवासी वर्ग पर ज्यादा ध्यान दे रही है।
भाजपा एसटी वर्ग को साधने में जुटी
मप्र की आदिवासी सीटों पर वोट प्रतिशत बढ़ाने के लिए भाजपा की ओर से अनुषांगिक संगठनों की तैनाती की गई है। इन गैर राजनीतिक संगठनों के जरिए प्रदेश के 89 ब्लाकों में पहुंच बढ़ाई जा रही है। उधर, विधानसभा चुनाव से पहले ही संघ ने लोकसभा चुनाव की दृष्टि से राष्ट्र हित के मुद्दों के साथ गांव तक पहुंच बढ़ाना शुरू कर दिया था। अब इस कार्य में मध्य प्रदेश से सटे अन्य राज्यों के संघ प्रचारकों की भी जिम्मेदारी तय की गई है। राम मंदिर और विकसित भारत के संकल्प सहित हिंदू राष्ट्र की विचारधारा को लेकर अनुषांगिक संगठन और संघ दोनों ही भाजपा पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं के साथ तालमेल बनाकर कार्य कर रहे हैं। मध्य प्रदेश की लोकसभा वार 47 अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जनजाति की 35 विधानसभा क्षेत्र के भी प्रभारी बनाए गए हैं। गौरतलब है कि वर्ष 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में एसटी वर्ग के लिए आरक्षित छह सीटों में से कांग्रेस ने चार सीटें जीती थी। धार से गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी, मंडला से बसोरी सिंह मसराम, रतलाम से कांतिलाल भूरिया और शहडोल से राजेश नंदिनी सिंह जीती थीं। बैतूल से भाजपा की ज्योति धुर्वे और खरगोन से माखन सिंह सोलंकी विजयी हुए थे। एससी की चार सीटों में भी दो कांग्रेस की झोली में आई थीं। इसके बाद से प्रदेश की भाजपा सरकार ने आदिवासी मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए कई बड़े काम किए। पेसा कानून लागू किया गया। बैगा, सहारिया और भारिया जनजाति की महिलाओं एक हजार रुपये प्रतिमाह आहार अनुदान देने की शुरुआत हुई। देश के पहले विश्वस्तरीय रेलवे स्टेशन हबीबगंज का नाम गोंड रानी कमलापति के नाम से किया गया है। वर्ष 2014 से केंद्र की भाजपा सरकार ने भी जनजातियों के हित में कई बड़े काम किया।
संघ ने संभाला मोर्चा
विधानसभा चुनाव में भाजपा आदिवासी वर्ग के लिए सुरक्षित 47 में से 24 सीटें ही जीत पाई थी। 23 सीटों पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। इसलिए लोकसभा चुनाव में इन आदिवासी सीटों पर भाजपा का अधिक फोकस है। भाजपा की ओर से संघ प्रचारकों ने आदिवासी सीटों और इनमें खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में मोर्चा संभाल लिया है। छिंदवाड़ा जिले में तो महाराष्ट्र के संघ प्रचारक प्रभारी बनाए गए हैं। संघ प्रचारकों ने गांव में ही डेरा डाला हुआ है। वे आदिवासियों के बीच ही समय बिता रहे हैं और भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा से उन्हें अवगत करा रहे हैं। कुछ गांव में संघ की शाखा से दिनचर्या की शुरुआत होती है। 2019 के लोकसभा चुनाव में आदिवासी वर्ग के लिए सुरक्षित 47 में से 14 विधानसभा सीटों पर भाजपा को कम वोट मिले थे। यहां 2023 के विधानसभा चुनाव में 22 सीटों पर कम वोट मिले। भाजपा ने इन आदिवासी सीटों पर विधानसभा प्रभारी भी बनाए हैं। इनमें पार्टी स्तर पर प्रभारी, सह प्रभारी और संयोजक नियुक्त किए गए हैं। वहीं संघ ने भी प्रचारकों को इन विधानसभा सीटों पर प्रभारी बनाया है और संघ प्रचारकों की निगरानी में ही चुनाव कार्य संपन्न कराए जा रहे हैं। विधानसभा चुनाव में कई एसटी विधानसभा सीटों पर भाजपा को कम वोट मिले हैं। शहडोल में पुष्पराजगढ़, मंडला में बिछिया, निवास, शहपुरा, डिंडौरी, लखनादौन, छिंदवाड़ा में जुन्नारदेव, अमरवाड़ा, पांढुर्णा, रतलाम में जोबट, झाबुआ, सैलाना सहित अन्य सीटों पर कम वोट मिले हैं। यहां पार्टी अपना जनाधार मजबूत करने के लिए संघ और अपने अन्य अनुषांगिक संगठनों की मदद ले रही है।