- गौरव चौहान

मप्र में एक तरफ जहां भाजपा और कांग्रेस दावेदारों की लंबी फौज से हैरान-परेशान हैं, वहीं छोटी पार्टियों ने भी इन दोनों की चिंता बढ़ा दी है। खासकर उत्तर प्रदेश की सीमा से सटी सीटों पर। क्योंकि यहां की कुछ सीटों पर ‘बाहरी’ यानी यूपी के नेता चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। ये वे नेता हैं, जो यूपी के साथ ही मप्र में भी सक्रिय हैं। जानकारों के अनुसार इन नेताओं पर सपा और बसपा के अलावा कांग्रेस भी दांव लगाने जा रही है। ये ऐसे नेता हैं, जो चुनाव भी जीत सकते हैं। अगर ये चुनाव नहीं भी जीते तो भाजपा और कांग्रेस का खेल तो जरूर बिगाड़ देंगे। गौरतलब है कि ग्वालियर- चंबल, विंध्य और बुंदेलखंड की तीन दर्जन से अधिक विधानसभा सीटें ऐसी हैं ,जहां तीसरे मोर्चे का अच्छा प्रभाव है। लिहाजा इन दलों के प्रत्याशी कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस के हार जीत का गणित बिगाड़ देते हैं। दोनों दल इस बार अपनी तैयारियों के साथ इन दलों की गतिविधियों पर पैनी नजर रखे हुए हैं। इनमें से अधिकांश वे सीटें हैं जो उत्तरप्रदेश से लगी हुई हैं। दिलचस्प यह भी कि इनमें से कई सीटें ऐसी हैं, जिनमें उत्तर प्रदेश में रहने वाले नेता मप्र आकर चुनाव लड़ते हैं। इनमें से कई को अब तक विजयश्री भी मिल चुकी है।
सीमावर्ती सीटों पर सपा-बसपा का प्रभाव
मप्र में भले ही भाजपा और कांग्रेस के अलावा कोई दूसरा दल अधिक प्रभावी नहीं हो सकता है, लेकिन उत्तर प्रदेश की सीमा से लगी सीटों पर सपा-बसपा का अच्छा खासा प्रभाव है। मप्र की लगभग डेढ़ दर्जन जिलों सीमा उत्तर प्रदेश से मिली हुई है। विंध्य, ग्वालियर-चंबल और बुंदेलखंड के कई इलाके में तो उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश लगभग मिला हुआ है। यही वजह है कि इन इलाकों में यूपी के प्रभावी दल बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी का जनाधार है। एक समय था जब बसपा प्रदेश में कई सीटों पर प्रभावी थी और उसने अपना वोट प्रतिशत 14 फीसदी तक बढ़ा लिया था पर समय के साथ उसका वोट शेयर घटता गया। इसके बावजूद कई सीटों पर वह प्रभावी है। इस पार्टी के प्रदेश में दो विधायक हैं। इनमें एक ग्वालियर चंबल तो दूसरा बुंदेलखंड से है। बसपा इस बार भी सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने जा रही है। ग्वालियर, चंबल की आधा दर्जन से अधिक सीटें ऐसी है जहां उसके प्रत्याशी दूसरे और तीसरे स्थान पर रहते हैं। वे जीते भले ही न पर जातिगत गणित के आधार पर निर्णायक वोट हासिल कर कहीं भाजपा तो कहीं कांग्रेस के प्रत्याशी के लिए सिरदर्द बन जाते हैं। इसके अलावा विंध्य की करीब आधा दर्जन सीटों पर बसपा हर चुनाव में अपना प्रभाव दिखाती रही है।
रीवा में बसपा से बुद्धसेन पटेल और सतना से सुखलाल कुशवाहा सांसद भी रह चुके हैं। सुखलाल के बेटे सिद्धार्थ कुशवाह अब कांग्रेस से विधायक हैं। यहां से बसपा विधानसभा में पहले दो से तीन सीटें जीतती रही है पर अब वह कमजोर हो गई है। वह उसे निर्णायक वोट अब भी हासिल होते हैं।
भाजपा भी लगा चुकी है बाहरी पर दांव
पिछले विधानसभा चुनाव ने पृथ्वीपुर सीट से सपा ने शिशुपाल यादव को मैदान में उतारा था, वे 45 हजार मत लेकर दूसरे नंबर पर रहे थे। उपचुनाव में भाजपा ने उन्हें अपने पाले में लिया और उन पर दांव लगाया। शिशुपाल अब विधायक हैं। वे मूलरूप से ललितपुर जिले के रहने वाले है। 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने निवाड़ी से कैप्टन सुरेंद्र सिंह को टिकट दिया था। वे मूलरूप से झांसी जिले के रहने वाले हैं। सुरेन्द्र सिंह इस बार भी तगड़े दावेदार है। दीपनारायण के चचेरे भाई चरण सिंह यादव पिछली बार सपा के टिकट पर टीकमगढ़ से चुनाव लड़े थे और तीसरे नंबर पर रहे थे। वहीं सागर जिले की खुरई सीट पर इस बार ललितपुर से कांग्रेस सांसद रहे सुजान सिंह बुंदेला के बेटे चन्द्रभूषण सिंह उर्फ गुड्डू राजा को कांग्रेस मैदान में उतारने की तैयारी में है। झांसी से कांग्रेस सांसद रहे प्रदीप जैन आदित्य का कांग्रेस इस बार सागर लोकसभा से चुनाव मैदान में उतारने पर विचार कर रही है।
यूपी के कई नेता जुटे चुनाव में
आगामी चुनाव को देखते हुए उत्तर प्रदेश के कई नेता मप्र में चुनाव की तैयारी कर रहे हैं। गौरतलब है कि यूपी के कुछ नेता मप्र में विधायक का चुनाव जीत चुके हैं। इसलिए हर बार जब मप्र में चुनाव होता है यूपी के सीमावर्ती जिलों के नेता सक्रिय हो जाते हैं। बुंदेलखंड में छतरपुर, पन्ना, टीकमगढ़ और सागर जिलों में बसपा के साथ सपा भी असरदार दिखती रही है। यहां उत्तर प्रदेश में रहने वाले नेता न सिर्फ चुनाव लड़ते रहे हैं वरन् गई बार उन्हें जीत भी मिलती रही है। समाजवादी पार्टी बुंदेलखंड में चुनाव के समय खासी सक्रिय रहती है। खासकर टीकमगढ़, दतिया, भिंड जैसे जिलों में इसके प्रत्याशी खासे वोट हासिल करते रहे हैं। टीकमगढ़ जिले की निवाड़ी सीट पर समाजवादी पार्टी की मीरा यादव विधायक रह चुकी है। मीरा यादव के पति दीप नारायण यादव मूलरूप से निवाड़ी से लगे यूपी के गरौठा क्षेत्र से वास्ता रखते हैं पर सीमाओं के सटे होने से वे पहली बार 1998 में यहां से चुनाव लड़े थे और निर्णायक मत हासिल किए थे। इसके बाद यहां से सपा यहां लगातार सक्रिय है