- गौरव चौहान

मप्र में भाजपा ने 39 प्रत्याशियों की सूची में 3 नेता पुत्रों को टिकट देकर इस बात का संकेत दे दिया है, कि नेता पुत्रों को टिकट तो दिया जाएगा, लेकिन किस-किस को इस पर असमंजश का पर्दा डाला हुआ है। दरअसल, इस बार पार्टी का एक मात्र लक्ष्य है चुनाव जीतना। इसके लिए पार्टी हर सीट पर केवल जिताऊ प्रत्याशियों की खोज कर रही है। प्रदेश में कई सीटें ऐसी हैं, जहां नेता पुत्र मजबूत स्थिति में नजर आ रहे हैं। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में भाजपा कुछ नेता पुत्रों पर दांव लगा सकती है। गौरतलब है कि प्रदेश में भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं के पुत्र पिछले कई सालों से राजनीति के क्षेत्र में सक्रिय हैं। अभी तक पार्टी परिवारवाद के नाम पर उन्हें दरकिनार करती आ रही है। लेकिन केंद्रीय मंत्री अमित शाह भी नेता पुत्रों को टिकट देने का संकेत दे चुके हैं।
अपने भोपाल दौरे के दौरान शाह ने परिवारवाद के सवाल पर कहा था कि परिवारवाद का मतलब है कि पार्टी और सत्ता की मिल्कियत एक परिवार के हाथ में हो। इसको परिवारवाद कहते हैं। केंद्रीय गृह मंत्री के बयान से मप्र में नेता पुत्रों के रास्ते साफ हो गए हैं। शाह ने कहा कि एकाध योग्य लोगों को टिकट मिलते रहते हैं। ऐसे में इस बार मप्र के विधानसभा चुनाव में कई बड़े नेताओं के पुत्र लाइन में लगे हैं। अगर उनकी दावेदारी मजबूत रही तो उनका रास्ता साफ हो सकता है। इस बार के चुनाव में बीजेपी कोई जोखिम नहीं लेना चाहती है।
टिकट की कतार में ये नेता-पुत्र
मप्र भाजपा में टिकट की कतार में करीब दर्जनभर नेता पुत्र शामिल हैं। इनमें कुछ ऐसे हैं जिनकी क्षेत्र में अच्छी पकड़ है और वे वर्षो से राजनीति में सक्रिय हैं। इनमें से पूर्व मंत्री गौरीशंकर शेजवार के पुत्र मुदित शेजवार 2018 में प्रभु राम चौधरी से हार गए थे। पूर्व सीएम उमा भारती ने मुदित को टिकट की सिफारिश की है। लेकिन, इस सीट पर मंत्री प्रभुराम काबिज है। इसलिए टिकट मिलना मुश्किल है। वहीं पूर्व मंत्री जयंत मलैया के पुत्र सिद्धार्थ मलैया की टिकट की दौड़ में हैं। उपचुनाव में दमोह उपचुनाव में बागी हो गए थे। इस सीट से भाजपा प्रत्याशी राहुल सिंह हार गए। अब सिद्धार्थ व राहुल दोनों दमोह से टिकट मांग रहे। मंत्री गौरीशंकर बिसेन की पुत्री मौसम बिसेन दावेदार बनी हुई हैं। गौरीशंकर ने मांग की है कि पुत्री को टिकट दें, लेकिन पार्टी गौरीशंकर को ज्यादा मजबूत प्रत्याशी मानती है। इसीलिए अब मंत्री बनाया।
टिकट भी गौरीशंकर को देने की मंशा है। उधर मंत्री गोपाल भार्गव के पुत्र अभिषेक भार्गव भी टिकट की दौड़ में हैं। उधर, गोपाल भार्गव खुद ऐलान कर चुके हैं , कि उनके गुरुजी तीन बार और चुनाव लडऩे की बात कह चुके हैं। इसलिए पुत्र अभिषेक के टिकट की उम्मीदें फिलहाल कम हो गई हैं। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के पुत्र देवेंद्र प्रताप सिंह दिमनी और ग्वालियर शहर सीट पर दावेदार के रूप में चर्चा में रहते हैं। लेकिन, खुद पिता नरेंद्र सिंह के टिकट देने वालों में होने से इस बार टिकट मुश्किल है। वरिष्ठ नेता प्रभात झा के पुत्र तुष्मुल झा लंबे समय से टिकट मांग रहे हैं। प्रभात झा लंबे समय से हाशिये पर जहें हैं। सिंधिया के भाजपा में आने के बाद समीकरण बदले। पार्टी झा को साध रही है।
ऐसे में टिकट की उम्मीदें लगी हैं। मंत्री नरोत्तम मिश्रा के पुत्र सुकर्ण मिश्रा नरोत्तम की सीट सहित आसपास की सीटों पर सक्रिय हैं। नरोत्तम के खुद चुनाव लड़ने के कारण इनकी टिकट की उम्मीद कम है। पूर्व सांसद नंदकुमार सिंह के पुत्र हर्षवर्धन सिंह की पिता के निधन के बाद लोकसभा चुनाव में दावेदारी थी, पर टिकट नहीं मिला। अब विधानसभा में उम्मीद लगाए हैं। लेकिन, पूर्व मंत्री अर्चना चिटनीस से समीकरण नहीं बैठते। पूर्व लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन के पुत्र मंदार महाजन 2013 से ही टिकट के लिए दावेदारी कर रहे। इस बार भी कोशिश है। पर, स्थानीय समीकरणों में वजनदारी नहीं। कोई भी सीट खाली नहीं रह पाई है।
नेता पुत्रों के लिए संभावना जगी
2018 के विधानसभा चुनाव में नेता पुत्रों को पार्टी ने टिकट नहीं दिए थे। अगर जिन जगहों पर दिए थे, वहां उनके परिवार के दूसरे सदस्य को सीट छोडऩी पड़ी थी। इसका सबसे बड़ा उदाहरण कैलाश विजयवर्गीय हैं। कैलाश विजयवर्गीय चुनाव नहीं लड़े तो उनके बेटे को टिकट मिला था। इस बार शाह के बयान के बाद कुछ नेता पुत्रों के लिए संभावना बन रही है। भाजपा में जिताऊ चेहरे का फॉर्मूला लागू हो गया है, फिर भी नेता-पुत्रों की उम्मीदें डांवाडोल हैं। 2 महीने में नेता-पुत्रों की टिकट की उम्मीदें उलट-पुलट हो चुकी है। वजह ये कि पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने गाइडलाइन दी कि नेता-पुत्रों को टिकट नहीं मिलेगा। फिर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने साफ कर दिया कि मापदंड जिताऊ चेहरा ही रहेगा। नतीजतन पहली सूची में 3 नेता-पुत्र को टिकट मिला। ऐसे में दूसरी सूची से नेता-पुत्रों को उम्मीदें तो हैं। लेकिन, सर्वे – फीडबैक व जिताऊ चेहरे का मापदंड डरा भी रहा है। अब पिता व खेमे की कितनी चलती है, इस पर भविष्य निर्भर करेगा। गौरतलब है कि पहली सूची में पूर्व सांसद शिवराज लोधी के बेटे वीरेंद्र, पूर्व विधायक मानवेंद्र के बेटे कामाख्या व प्रतिभा सिंह के बेटे नीरज सिंह को टिकट मिला है। परिवार में देखें तो पूर्व मंत्री रंजना बघेल के भतीजे जयदीप और कांग्रेस से पूर्व मंत्री हरभजन सिंह मीणा की बहू प्रियंका, वरिष्ठ नेता मेहरबान सिंह की बहू सरला रावत को टिकट मिला है। गौरतलब हैं कि कई नेता पुत्र ऐसे हैं जो राजनीति में स्थापित हो चुके हैं। इनमें पूर्व सीएम सुंदरलाल पटवा के भतीजे विधायक सुरेंद्र पटवा, पूर्व सांसद कैलाश सारंग के पुत्र मंत्री विश्वास सारंग, पूर्व विधायक सत्येंद्र पाठक के पुत्र विधायक संजय पाठक, पूर्व सीएम वीरेंद्र सखलेचा के बेटे मंत्री ओमप्रकाश सखलेचा, पूर्व सीएम बाबूलाल गौर की बहू विधायक कृष्णा गौर, पूर्व विस अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी के विधायक पुत्र अशोक रोहाणी, पूर्व मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के बेटे विधायक आकाश, पूर्व विस उपाध्यक्ष भेरूलाल पाटीदार की पुत्री सांसद कविता पाटीदार और पूर्व विधायक प्रेम सिंह दत्तीगांव के बेटे मंत्री राज्यवर्धन सिंह।