
नई दिल्ली। केंद्र की मोदी सरकार ने भारत को साल 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने का लक्ष्य रखा है। 77वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले से अपने संबोधन में पीएम मोदी ने भी इसकी बात की। उन्होंने कहा कि साल 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाना हमारा सपना नहीं है बल्कि ये हर भारतीय का संकल्प है। वहीं, कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक रोडमैप की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि भारत को 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनाने के लिए एक रोडमैप आवश्यक है। साथ ही उन्होंने कानून के शासन को लोकतंत्र की नींव बताया।
मेघवाल ने अपने संबोधन में कहा कि आजादी के 75 साल पूरे होने पर आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। इससे देश की यात्रा का विश्लेषण करने और यह पता लगाने का अवसर भी मिला है कि क्या भारत अपनी मंजिल तक पहुंच गया है। उन्होंने कहा कि बीते 75 साल कैसे रहे, हम कहां पहुंचे, अपनी मंजिल तक पहुंचे या नहीं… यह इन सबका विश्लेषण करने का अवसर है, लेकिन 2047 तक हम कहां पहुंचेंगे इसके लिए एक रोडमैप बनाने की जरूरत है। भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने की प्रक्रिया में सभी को एक साथ आगे बढ़ना होगा।
मेघवाल ने कहा कि एक राष्ट्र का अस्तित्व एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र, संप्रभुता, ध्वज, मुद्रा और भाषा की पांच अनिवार्यताओं के बिना नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि पश्चिमी दार्शनिकों के अनुसार, मैग्ना कार्टा से पहले कानून के शासन और मनुष्य के शासन के बीच संघर्ष था। मैग्ना कार्टा की धारा 35 में प्रावधान है कि भविष्य में कानून का शासन होगा, जो लोकतंत्र की नींव है।
इस दौरान उन्होंने अधिवक्ताओं को आश्वासन दिया कि अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम और वकीलों के चैंबर सहित उनके मुद्दों पर मंत्रालय द्वारा ध्यान दिया जा रहा है। सीजेआई कई बदलावों को लागू करने की प्रक्रिया में हैं, जिनमें ई-कोर्ट, कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग और वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र को मजबूत करना शामिल है।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट परिसर में 77वें स्वतंत्रता दिवस का जश्न मनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। केंद्रीय कानून मंत्री इसी कार्यक्रम में संबोधन दे रहे थे। समारोह के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने शीर्ष अदालत के लॉन में राष्ट्रीय ध्वज फहराया। बाद में अपने संबोधन के दौरान सीजेआई ने कहा कि भारतीय न्यायपालिका के सामने सबसे बड़ी चुनौती न्याय तक पहुंचने में आने वाली बाधाओं को खत्म करना है। सुलभ और समावेशी अदालतें बनाने के लिए प्राथमिकता के आधार पर बुनियादी ढांचे में सुधार की जरूरत है।