श्रीमंत समर्थक एक दर्जन नेताओं के टिकट पर असमंजस

श्रीमंत

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में विधानसभा चुनाव में भले ही अभी तीन माह का समय है, लेकिन अभी से भाजपा में प्रत्याशियों को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं। इसमें भी खासतौर पर श्रीमंत समर्थकों के टिकटों को लेकर कयासों का दौर चल निकला है। भाजपा संगठन द्वारा प्रत्याशी चयन के लिए बनाई गई गाइडलाइन के हिसाब से श्रीमंत समर्थक एक दर्जन नेताओं पर इस बार टिकट मिलने का संकट बताया जा रहा है। इनमें वे नाम भी शामिल हैं, जो उपचुनाव में हार का सामना कर चुके हैं। इसकी वजह है, दलबदल करते समय भाजपा ने श्रीमंत समर्थक विधायकों को एक बार टिकट देने का वादा किया था, जिसे वे उपचुनाव में पूरा कर चुके हैं। उधर, भाजपा की गाइड लाइन के मुताबिक अब टिकट उसी नेता को मिलेगा जो पार्टी की गाइड लाइन के हिसाब से जीत की कसौटी पर खरा उतर सकता है। यही वजह है कि श्रीमंत समर्थक नेताओं द्वारा अपने-अपने इलाकों में खासी सक्रियता दिखाई जाने लगी है। इस सक्रियता के चलते यह नेता स्वयं को पार्टी की कसौटी पर खरा दिखाना चाहते हैं। डबरा में पूर्व मंत्री इमरती देवी व ग्वालियर पूर्व में कांग्रेस के मजबूत होने पर पूर्व विधायक मुन्नालाल गोयल की जीत पर अभी से प्रश्न खड़े किए जा रहे हैं।

कमलनाथ सरकार गिरने के बाद जब विधानसभा की 28 सीटों पर एक साथ उपचुनाव हुए, तो उनमें सर्वाधिक सीटें ग्वालियर-चंबल की थीं। यहां 16 सीटों पर उपचुनाव हुए और चुनाव परिणाम आने पर भाजपा के खाते में 10 सीटें आई थीं, जबकि भाजपा सरकार  होने के बाद भी छह सीटों पर हार कई थी।  श्रीमंत समर्थक व प्रदेश सरकार में दिग्गज नेताओं की गिनती में शुमार इमरती देवी, एंदल सिंह कंसाना और गिर्राज दंडोतिया भी तब चुनाव नहीं जीत सके थे। सूत्रों का कहना है कि इमरती देवी व मुन्नालाल गोयल लगातार अपनी छवि और कामकाज बेहतर करने के लिए मैदानी स्तर पर सक्रिय बने हुए हैं, लेकिन पार्टी उन्हें टिकट देगी इसकी अभी गारंटी नहीं दिख रही है।
अभी तक सामंजस्य नहीं बना पाए नेता
अंचल में भाजपा को ग्वालियर-चंबल अंचल में कांग्रेस से आए नेताओं के कारण कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। पार्टी के पुराने नेता और कार्यकर्ता नाराज हैं। दूसरी तरफ श्रीमंत समर्थक भाजपा नेताओं और पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं के बीच अब तक सामंजस्य नहीं बन पा रहा है। यही वजह है कि पार्टी ग्वालियर में 57 साल बाद पहली बार महापौर का चुनाव हार गई।

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