यस एमएलए- करैरा की सियासत तय होती है महल से

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भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। करैरा विधानसभा सीट शिवपुरी जिले में आती है। करैरा, शिवपुरी जिले का दूसरा सबसे बड़ा कस्बा है। राजे रजवाड़े और रियासतों वाला कस्बा। 1350 ई. में राजा कर्ण परमार ने इसे बसाया था और उनका बनाया किला आज भी इतिहास की कई दास्तां समेटे हुए है। करैरा पर परमारों से लेकर खिलजी वंश तक ने राज किया है।  राजनीतिक तौर पर देखे तो यहां राज सिंधियाओं का ही रहा है यानी करैरा की सियासत भी महल से तय होती है। अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व इस सीट पर 2020 उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी प्रागीलाल जाटव को जीत मिली। 2018 के आमचुनाव में भी जसमंत जाटव को भी कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में जीत मिली थी। उपचुनाव को जोडक़र पिछले तीन चुनावों में कांग्रेस का परचम फहरता रहा । चुनावों में चार बार भाजपा हार चुकी है। इस सीट पर कांग्रेस के साथ बसपा का भी अपना प्रभाव है। इसलिए मुकाबला त्रिकोणीय हो जाता है। यहां पर एक बार बसपा को जीत मिल चुकी है।  आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इस सीट पर जीत के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। बसपा के वोट बैंक को भाजपा अपने पाले में लाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है। 1967 में राजमाता विजयाराजे सिंधिया यहां से विधानसभा का चुनाव लड़ी थीं। तब वो यहां से करीब 36 हजार से ज्यादा वोटों से जीती थीं। उसके बाद यहां से कभी जनसंघ तो कभी कांग्रेस जीत दर्ज करती आई। करैरा में 1962 से अब तक 13 चुनाव हो चुके हैं। 6 बार कांग्रेस और 3 बार बीजेपी और 1 बार बसपा ने चुनाव जीता। 2003 में यहां बीजेपी और कांग्रेस दोनों को ही मुंह की खाना पड़ी और जनता ने हाथी पर मुहर लगाकर बसपा के लाखन सिंह बघेल को विधायक बनाया। वर्तमान में यहां जंग तो बीजेपी और कांग्रेस के बीच रहती है, लेकिन जीत और हार में बसपा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
सियासी समीकरण
करैरा विधानसभा सीट भी दलबदल वाली सीट है और यहां भी 2020 में उपचुनाव हो चुका है। 2018 के चुनाव में यहां से कांग्रेस के जसवंत जाटव ने चुनाव जीता था। जसवंत, ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ बीजेपी में आ गए। बीजेपी ने टिकट दिया, लेकिन उपचुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इस सीट पर बतौर कांग्रेस प्रत्याशी के रुप में प्रागीलाल जाटव ने जसवंत जाटव को पटखनी दे दी। यानी दलबदल के बाद विधायक बनने का जसवंत जाटव का सपना टूट गया। दलबदल वाली सीटों पर एक सवाल अक्सर पूछा जाता है कि 2023 में टिकट किसे मिलेगा। सिंधिया बीजेपी या असल बीजेपी को, मगर यहां ऐसा कोई सवाल नहीं है, क्योंकि जसवंत जाटव हार चुके हैं। अब यहां प्रीतम लोधी ने भी अपनी सक्रियता बढ़ा दी है।
करैरा के मुद्दे
इस विधानसभा सीट पर मुद्दों की भरमार है। लोगों का कहना है कि करैरा के विकास की तरफ किसी का ध्यान ही नहीं गया। मूलभूत सुविधाओं के अभाव में यहां कि जनता परेशान रहती है। किसानों को सिंचाई के लिए पानी और बिजली नहीं मिल रही तो, वहीं युवाओं को रोजगार का इंतजार है। आने-जाने वाले लोगों को बस स्टैंड की दरकार है, तो इलाके की जनता शासकीय सुविधाओं का लाभ नहीं मिलने और अधिकारियों की लालफीताशाही रवैए से तंग है।
जातिगत समीकरण
करैरा सीट पर महल का दखल है या नहीं, ये मुद्दा विवादों भरा है, लेकिन यहां जातिगत आधार पर राजनीति की दशा और दिशा तय होती है, इस बात में कोई दो राय नहीं है। यहां विधायक का चेहरा जातिगत समीकरण को ध्यान में रखकर तय किया जाता है। यहां कुल मतदाता 2 लाख 41 हजार 445 हैं, जिसमें महिला वोटर्स की संख्या 1 लाख 11 हजार 218 है। वहीं, पुरुष मतदाता 1 लाख 30 हजार 226 हैं। जातिगत आधार पर देखें तो जाटव और खटीक समाज जाति के करीब 50 हजार वोटर्स हैं। वहीं, यादव, लोधी, कुशवाह, पाल (बघेल) और गुर्जर रावत के 30 हजार वोटर्स हैं। ब्राह्मण समाज के 10 हजार तो वहीं ठाकुर समाज के भी 10 हजार वोटर्स हैं।
विकास की अपनी अपनी बात
विधानसभा क्षेत्र में विकास की बात पर विधायक प्रागीलाल का कहना है कि मतदाताओं ने मुझे विधायक बनाया, लेकिन प्रदेश में भाजपा की सरकार होने से मतदाताओं को वे सहूलियत नहीं मिल सकीं, जो मिलना थीं। क्षेत्र के विकास के लिए मै हरसंभव प्रयास करता रहा हूं। हमारी सरकार बनने पर क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा कार्य कराएंगे। वहीं भाजपा नेता जसवंत जाटव का कहना है कि 2020 के उपचुनाव में मतदाताओं ने भाजपा को वोट नहीं दिया और मुझे शिकस्त झेलना पड़ी, लेकिन स्थानीय मतदाताओं ने जो अपेक्षा मुझसे की है , में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तक कह चुका हूं। करैरा में भी विकास की गंगा बहेगी।

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