
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। अब तक जो बीमारी महज समुद्रीय तटीय इलाकों में ही लोगों में फैलती आयी है , उसने अब मप्र में भी दस्तक दे दी है। इस बीमारी को चिकित्सक खतरनाक मानते हैं। इसका नाम है की मेलियोइडोसिस। यह बीमारी समुद्री सतह पर पाई जाने वाली मिट्टी से फैलती है, लेकिन प्रदेश में तो ठीक आसपास भी समुद्र नहीं होने के बाद भी इस बीमारी का असर दिखने लगा है। इसमें भी अहम बात यह है कि इस बीमारी के प्रदेश में सर्वाधिक मरीज भोपाल में हैं। अगर बीते तीन सालों के आंकड़े देखें तो , अब तक इस बीमारी के आधा सैकड़ा मरीज मिल चुके हैं। इनमें से ज्यादातर की स्थिति बहुत गंभीर थी। चौकाने वाली बात यह है कि यह सभी मरीज समुद्री इलाकों से संबंधित नहीं थे, इसके बाद भी उनमें इस बीमारी का बैक्टीरिया संक्रमण मिला है। यह ऐसी बीमारी है , जिसके बारे में अब तक विश्वभर में इस बीमारी के बारे में अधिक जानकारी नहीं है। ऐसे में आईसीएमआर ने एम्स भोपाल को इस बीमारी को लेकर जागरूकता के साथ जांच और इलाज की सटीक जानकारी एकत्रित करने की जिम्मेदारी दी है। एम्स के माइक्रोबायलॉजी विभाग के मुताबिक, यह बीमारी बर्कहोल्डेरिया स्यूडोमैलेई बैक्टीरिया से होती है। माना जाता था कि भारत कर्नाटक, तमिलनाडु, ओडिशा जैसे तटीय इलाकों में पाया जाता है।
लक्षण और जांच भी स्पष्ट नहीं
जो मरीज मिले हैं, उनमें सभी में अलग-अलग लक्षण थे। डॉक्टरों के अनुसार, वे लोग जो मिट्टी में ज्यादा काम करते हैं, वे सतर्कता बरत सकते हैं। अगर पैरों में छाले या कोई घाव है तो सीधे मिट्टी के संपर्क में न आएं। जो मरीज मिट्टी के संपर्क में नहीं हैं, वे इस बैक्टीरिया से कैसे बचें, इसके बारे में नहीं बताया जा सकता।
इगलेटेड ट्रॉपिकल डिजीज है यह
डब्ल्यूएचओ ने इसे नेगलेटेड ट्रॉपिकल डिजीज की श्रेणी में रखा है। इसमें उन बीमारियों को रखा जाता है, जिनके बारे में बहुत कम जानकारी होती है। रिसर्च पेपर के मुताबिक, इस बीमारी के सबसे ज्यादा मरीज थाईलैंड, इंडोनेशिया, मलेशिया के चुनिंदा इलाकों में ही पाए जाते हैं।
70 फीसदी मरीज डायबिटिक
एम्स द्वारा आयोजित सेमिनार में बताया कि अब तक इस बीमारी के सटीक लक्षणों के बारे में जानकारी नहीं है। यह टीबी, सामान्य सर्दी-जुकाम, किडनी डिजीज या जोड़ों में दर्द और शरीर में फोड़ों के रूप में हो सकता है। प्रदेश में जो मरीज मिले हैं, उनमें से 70 फीसदी मरीज हाई डायबिटिक थे।