खंडवा के मतदाताओं में इतना सन्नाटा क्यों है भाई

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भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम।  प्रदेश में भले ही उपचुनाव वाली सीटों में सर्वाधिक  चर्चा खंडवा लोकसभा सीट की बनी हुई हो , लेकिन अब भी इस संसदीय सीट का मतदाता अपनी चुप्पी तोड़ने को तैयार नहीं दिख रहा है। इसकी वजह से चुनावी प्रचार चरमसीमा पर होने के बाद भी ऊंट किस करवट बैठेगा कोई बताने की स्थिति में नहीं है। यही वजह है कि भाजपा व कांगे्रस दोनों ही दलों में संशय की स्थिति बनी हुई है। इस सीट पर उपचुनाव की खास बात यह है कि हफ्ते भर के चुनावी प्रचार के बाद भी दोनों ही दलों के प्रत्याशी अब भी गौण बने हुए है, जबकि नेता सर्वाधिक मुखर दिख रहे हैं। इस सीट पर असमंजस की स्थिति की वजह से ही दोनों दलों द्वारा अब भोज की राजनीति शुरू कर दी गई है।
गौरतलब हे कि यह सीट पूर्व सांसद नंदकुमार सिंह चौहान के असामयिक निधन की वजह से रिक्त हुई थी। इस सीट पर वैसे तो 16 प्रत्याशी मैदान में हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला भाजपा के ज्ञानेश्वर पाटिल और कांग्रेस के ठाकुर राजनारायण सिंह के बीच है। राजनैतिक पंडित भी भाजपा और कांग्रेस की कुंडली खंगालने के बाद भी हार -जीत की भविष्यवाणी नहीं कर पा रहे हैं। दरअसल यह दोनों नेता ऐसे हैं जिनकी पहचान अपने इलाकों तक ही सीमित बनी हुई है। माना जा रहा है कि युवा मतदाता भले ही ज्ञानेश्वर पाटिल को नहीं जानते हैं, लेकिन भाजपा अपने मजबूत संगठनात्मक कौशल की वजह से जमीनी स्तर पर मजबूती से आगे बढ़ रही है। जबकि कांग्रेस प्रत्याशी राजनारायण सिंह खुद उम्र के चौथे पड़ाव पर हैं। अभी तक उनके लिए एकमात्र स्टार प्रचारक कमलनाथ ही पहुंचे हैं। कांग्रेस में स्थानीय नेताओं के बीच चल रही गुटबाजी और अहम की लड़ाई की वजह से स्थानीय नेता केवल औपचारिकता निभाते हुए दिख रहे हैं। इतना जरुर है कि स्थानीय नेताओं में सर्वाधिक प्रभावशाली माने जाने वाले पूर्व कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव साथ जरूर चल रहे हैं, लेकिन उनकी टीम गायब दिख रही है। खास बात यह है कि इसके पहले तक जिस तरह से अरुण यादव चुनावों में लाव- लश्कर के साथ चुनाव लड़ते रहे हैं और उनकी टीम पूरे लोकसभा में तैनात हो जाती थी, वैसा जोश-खरोश भी नहीं दिखाई दे रहा है। यादव के समर्थक उपचुनाव की बजाय मुख्य चुनाव की तैयारी में ही पैसा खर्च करने का मन बना चुके हैं। इसी तरह से कांग्रेस के पास कमलनाथ के अलावा कोई बड़ा चेहरा अब तक इस सीट पर नजर नहीं आया है। वैसे भी कांग्रेस के पास चुनावी प्रचार के लिए बड़े चेहरों की कमी है। इसके उलट प्रदेश में भाजपा की सरकार के साथ ही स्थानीय निकायों में भाजपा का  वर्चस्व रहने की वजह से उसके पास पार्टी स्तर पर बड़ी फौज तो है ही साथ ही उसके पास प्रचार के लिए कई चेहरे भी हैं। इनमें से वीडी और शिवराज कई बार इस सीट पर चुनावी सभाओं के साथ ही बैठकें ले चुके हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि मतदाताओं के इस बड़े सन्नाटे को उनकी उदासीनता नहीं, बल्कि परिपक्वता के रुप में देखा जाना चाहिए। यही वजह है कि इस सीट पर अब दोनों ही दलों को अपनी चुनावी रणनीति बदल कर बड़ी सभाएं, पोस्टर, झंडे से हटकर भोज के बहाने लोगों को जोड़कर उन्हें रिझाने का का काम करना पड़ रहा है।  
कांग्रेस के कई दिग्गजों को हरा चुके हैं चौहान
इस सीट पर सबसे ज्यादा बार चुनाव नंद कुमार सिंह चौहान ही जीते थे, वे 6 चुनाव इस सीट से जीते थे। इस दौरान उन्होंने कई दिग्गजों को चुनाव हराया। जिसमें पूर्व मंत्री तनवंत सिंह कीर और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके अरुण यादव शामिल है। इनके अलावा उन्होंने शिवकुमार सिंह, महेंद्र कुमार सिंह, अमिताभ मंडलोई को भी चुनाव में हराया।
एससी-एसटी वोटों पर जोर
लोकसभा के इस उपचुनाव में कांग्रेस व भाजपा का पूरा जोर एससी और एसटी वर्ग पर बना हुआ है। इसकी वजह है इस वर्ग के मतदाताओं की बाहुल्यता होना। जिन्हें इनका समर्थन मिल जाएगा, उनका जीतना तय है। दरअसल इस सीट पर लभगभ 40 प्रतिशत वोटर एससी और एसटी वर्ग के माने जाते हैं, जबकि करीब 25 प्रतिशत वोट ओबीसी वर्ग के हैं। इस सीट पर 19 लाख 68 हजार कुल वोटर हैं। इनमें से सात लाख 68 हजार के करीब एससी और एसटी के वोटर हैं। जबकि पांच लाख के लगभग ओबीसी के वोटर हैं। इन तीनों वर्गो के वोटरों की संख्या साढ़े बारह लाख पार करती है। ऐसे में इन तीनों वर्गों के जिसे ज्यादा वोट मिलेंगे उसकी जीत उतनी ही आसान होगी। यहां पर सामान्य वर्ग के वोट लगभग चार लाख हैं, इस सीट पर अल्पसंख्यकों के वोट भी तीन लाख के करीब हैं। यही वजह है कि भाजपा ने यहां पर इस बार ओबीसी कार्ड खेला।
विधायक कह रहे हें अभी तो लाज रख लो
हालात यह बन गए हैं कि विधायकों को अपनी लाज बचाने की गुहार करनी पड़ रही है।  इसका उदाहरण है एक समाज के साथ ज्ञानेश्वर पाटिल की पहली मुलाकात में एक मतदाता ने कालोनी की खस्ता हाल सडकें और पानी की समस्या पर भाजपा नेताओं को घेरा तो विधायक देवेन्द्र वर्मा को यहां तक कहना पड़ा कि पार्षद के चुनाव में जो आये उसे देखना, विधानसभा में मुझे निपटा लेना, मगर अभी चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों का है, इसलिए सड़क, गड्ढे, पानी से आगे की सोच रखें। हालांकि विधायक देवेन्द्र वर्मा जो कि लोकसभा क्षेत्र संयोजक भी हैं का दावा है कि पिछले आमचुनाव में नंदू भैया करीब 2 लाख 72 हजार वोटों से जीते थे, इस बार उससे भी प्लस होकर ज्ञानेश्वर भाई को विजयश्री मिलेगी। इधर, नहर के मामले में पंधाना विधानसभा क्षेत्र में किसानों के विरोध की वजह से उन्हें मनाने भाजपा के तमाम नेताओं को कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है।  इस मामले में तो  इंदौर सांसद शंकर लालवानी को भारी विरोध का सामना तक करना पड़ा था। खास बात यह है कि इस पूरे मामले में कांग्रेस का कोई भी नेता इन नाराज किसानों के साथ अब तक खड़ा नहीं दिखा है। शायद उन्हें लगता है कि भाजपा से नाराजगी के सारे वोट कांग्रेस को ही मिलेंगे।

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