आखिर कब तय होगा ओबीसी क्रीमीलेयर का दायरा

 ओबीसी क्रीमीलेयर
  • केंद्र सरकार की गठित उच्च स्तरीय समिति अभी तक नहीं ले सकी फैसला

    भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में पंचायत और निकाय चुनाव ओबीसी आरक्षण के साथ कराने का फैसला देकर सुप्रीम कोर्ट ने इस वर्ग को बड़ी राहत दी है, लेकिन ओबीसी क्रीमीलेयर का फैसला अभी तक नहीं हो पाया है। इससे अभी इस बात पर सस्पेंस बना हुआ है कि इस आरक्षण में क्रीमीलेयर वालों की क्या स्थिति रहेगी। क्योंकि आरक्षण के दायरे में आने वाले वर्गों में ओबीसी ही एकमात्र ऐसा वर्ग है जिसमें 8 लाख रुपए सालाना आय से अधिक आमदनी वालों को मलाईदार तबका (क्रीमी लेयर) मानकर नौकरियों अथवा उच्च शिक्षा में आरक्षण की पात्रता नहीं मिलती।  उल्लेखनीय है कि एक तरफ जहां अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए प्रोन्नति में आरक्षण को लेकर सरकार पैर जमाए खड़ी है, वहीं अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण के लिए क्रीमीलेयर के दायरे को बढ़ाने की तैयारी भी हो रही है। मौजूदा आठ लाख रुपए आय के दायरे को बढ़ाकर 10 लाख तक किया जा सकता है। वैसे भी इस दायरे को प्रत्येक तीन साल में बढ़ाने का प्रविधान है। इससे पहले इस दायरे में बढ़ोत्तरी वर्ष 2017 में की गई थी। तब इसे छह लाख से बढ़ाकर आठ लाख किया गया था।
    मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी की गाइड लाइन का इंतजार
    भाजपा के उच्च स्तरीय सूत्र फिलहाल चुनाव के क्रीमी लेयर के मुद्दे पर मौन हैं और चुनाव को लेकर मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी की गाइड लाइन का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन यह सवाल सभी के मन में कौंध रहा है कि आखिर इसका तोड़ कैसे निकाला जाए। प्रदेश में ओबीसी आबादी के पास सत्ता की चाबी मानकर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही स्वयं को इस वर्ग का हिमायती साबित करने में जुटे हैं। पहली बार निकाय चुनाव ओबीसी आरक्षण के साथ होंगे लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि क्रीमीलेयर को लेकर क्या स्थिति रहेगी।
    उच्च स्तरीय समिति गठित
    सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने अप्रैल में ओबीसी क्रीमीलेयर के दायरे में बदलाव को लेकर सुझाव देने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति गठित की है। समिति से सुप्रीम कोर्ट के उन दिशानिर्देशों का भी ध्यान रखने को कहा गया है, जिसमें कोर्ट ने कहा था कि क्रीमीलेयर का निर्धारण सिर्फ आर्थिक आधार पर नहीं हो सकता है, इसके लिए सामाजिक, आर्थिक सहित बाकी पहलुओं पर ध्यान देना भी आवश्यक है। माना जा रहा है कि ओबीसी उप वर्गीकरण के साथ ही क्रीमीलेयर की नई सीमा तय की जा सकती है।
    ओबीसी में लागू क्रीमीलेयर की शर्त
     अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग में क्रीमी लेयर की व्यवस्था नहीं है। यह प्रावधान केवल ओबीसी के लिए लागू किया गया है। ओबीसी आरक्षण में शासकीय नौकरियों और उच्च शिक्षा के संस्थानों में एडमिशन के लिए क्रीमी लेयर का प्रावधान भी किया गया है । इसके लिए आमदनी का क्राइटेरिया 8 लाख रुपए सालाना तय किया गया है। इसका आशय है कि सरकार और अदालतों द्वारा यह माना जाता है कि क्रीमी लेयर में आने वाले लोगों को आरक्षण का लाभ न दिया जाए। गौरतलब है कि पंचायत-निकाय चुनाव और ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों में ओबीसी का हिमायती बनने की होड़ लगी हुई है। दोनों पार्टियों के नेता एक दूसरे को पिछड़े वर्ग को छलने का आरोप लगा रहे हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले को भाजपा ओबीसी को न्याय मिलने और कांग्रेस को अड़ंगा लगाने वाला विलेन बताने पर तुली हुई है।

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