कम उपार्जन से सरकारी खजाने में होगी दो हजार करोड़ की बचत

कम उपार्जन
  • व्यापारियों द्वारा की गई खरीदी से किसानों को भी  मिले अच्छे  दाम

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। लगातार दो बार गेंहू की सरकारी खरीददारी की समय सीमा बढ़ाने के बाद भी इस साल सरकार तय लक्ष्य के अनुसार गेंहू का उपार्जन करने में असफल रही है। सरकार की यह असफलता उसके खजाने के साथ ही किसानों की आर्थिक सेहत के लिए फायदेमंद साबित हो रही है।
सरकार द्वारा अब तक प्रदेश में करीब 46 लाख मीट्रिक टन गेंहू का ही उपार्जन किया जा सका है। सरकारी मूल्य पर गेहूं बेचने वालों में भोपाल संभाग सबसे आगे रहा। मध्य प्रदेश सरकार को आरबीआई से गेहूं खरीद के लिए 25,000 करोड़ रुपये की नकद ऋण सीमा प्राप्त हुई थी। खरीद कम होने के कारण सरकार को महज 8.8 हजार करोड़ रुपये का ही कर्ज लेना पड़ा। इससे सरकार को  सालाना 1215 करोड़ रुपये के ब्याज के बोझ का सामना नहीं करना पड़ेगा।
पिछले साल से खरीदी में 64 फीसदी की कमी आने की वजह से खाद्य विभाग हर माह निजी गोदामों को दिए जाने वाले किराए से भी राहत मिली है। यह बचत सालाना 750 करोड़ की होगी। इसे मिलाकर खजाने में कुल बचत 1,965 करोड़ रुपये तक  होना तय है। उल्लेखनीय है कि केन्द्र सरकार द्वारा 13 मई को गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी थी। इसके बाद मप्र सरकार ने 16 मई को समाप्त हो रही गेहूं की सरकारी खरीद की समय सीमा बढ़ाकर 31 मई कर दी थी। इन 15 दिनों में सरकारी खरीद केंद्रों पर 4 लाख मीट्रिक टन गेहूं ही आया। निर्यात पर रोक के बाद भी यहीं कारण रहा कि खुले बाजारों में गेहूं का भाव सरकारी दर 2015 रुपये क्विंटल से 200 रुपये ज्यादा चल रहा था।
यह है भंडारण की स्थिति
प्रदेश में इस समय सरकारी गोदामों मे 1.25 करोड़ मीट्रिक टन अनाज रखा हुआ है इसमें 90 लाख मीट्रिक टन करीब गेहूं है और चावल की मात्रा पांच  लाख मीट्रिक टन से ज्यादा है। इसी तरह से अभी 25 लाख मीट्रिक टन धान का भी भंडारण है।
15 दिन में 4 लाख मीट्रिक टन की खरीदी
13 मई को केन्द्र सरकार द्वारा गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी थी। इसके बाद मप्र सरकार ने गेहूं की सरकारी खरीद की समय सीमा जो 16 मई को खत्म हो रही थी, को 31 मई कर दिया। इन 15 दिनों में कुल 4 लाख मीट्रिक टन गेहूं ही सरकारी खरीद केंद्रों में आया। वजह यह है कि निर्यात पर रोक के बाद भी खुले बाजारों में गेहूं का दाम 2015 रुपए क्विंटल के सरकारी रेट से अधिक मिलता रहा है। इसकी वजह से किसानों ने सरकार की जगह व्यापारियों को माल बेचना ही मुनासिब समझा। व्यापारियों से न केवल किसानों को अधिक दाम मिल रहे हैं, बल्कि उन्हें पैसा के लिए भी इंतजार नहीं करना पड़ा।
किसान खुश
मध्य प्रदेश के किसान इस बार बेहद खुश हैं। उन्हें इस साल मंडी और खुले बाजार में गेहूं की फसल का समर्थन मूल्य से ज्यादा का भाव मिला है। पिछले सालों की तरह ज्यादा परेशान नहीं होना पड़ रहा। पहले उन्हें सहकारी सोसायटी में अपना नंबर आने और तुलाई के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता था। इस साल मंडी में 2015 रुपए के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बिकने वाला गेहूं 2700 से 3000 रुपए प्रति क्विंटल तक बिक गया है। दरअसल प्रदेश में अनाज खरीद की दो तरह की व्यवस्थाएं हैं। पहली कृषि उपज मंडी हैं। यहां पर पंजीकृत व्यापारी बोली लगाकर खरीदी करते हैं। दूसरी व्यवस्था में खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर सहकारी समितियों के माध्यम से किसानों से गेहूं खरीदता है। मप्र में पिछले सालों से गेहूं के बंपर उत्पादन के बाद किसानों से खरीद का बड़ा हिस्सा सरकार का ही रहा है। पिछले 4 वर्षों में 535.28 लाख मीट्रिक टन गेहूं एवं धान की खरीदी की गई। अच्छी फसल को देखते हुए इस साल समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीदी को और सरल किया गया। एसएमएस सिस्टम बंद करके किसानों को वेबसाइट से अपना स्लॉट खुद बुक करने की सुविधा दी गई। 4,221 खरीद केंद्र बनाए गए थे। जिनमें 19 लाख 81 हजार 506 किसानों ने पंजीयन कराया था।  

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