अफसोस रहेगा ‘भाईजी’ की किताबों की समीक्षा नहीं कर पाया

निर्मल उपाध्याय

स्मृति शेष- निर्मल उपाध्याय
….कलेक्टरों के विश्वस्त इतने रहे कि लिए जाने वाले निर्णय पर होने वाले बवाल से अवगत भी करा देते थे

कीर्ति राणा

कलेक्टर रहे गोपाल रेड्डी हों या एसआर मोहंती (दोनों सीएस रहे) इन के विश्वस्त डिप्टी कलेक्टर के रूप में निर्मल उपाध्याय (66) ने जो अपनीसाख बनाई उसकी वजह थी उनकी साफगोई। यदि कलेक्टर कोई डिसिजन लेना चाहते जो प्रशासन और शहर के मिजाज के विपरीत रहता तो वे बड़े शालीन तरीके से इफ एंड बट समझा देते और अंत में कह भी देते आप लिखित आर्डर जारी करेंगे तो कंप्लायंस भी करा लेंगे।
जब कलेक्टर अजित जोगी इंदौर में पदस्थ किए गए उसी दौरान निर्मल उपाध्याय नायब तहसीलदार पदस्थ हुए, फिर एडिशनल तहसीलदार रहे। उनकी यह कार्यशैली ही रही कि जोगी से लेकर उक्त कलेक्टरों की पसंद बनते गए। पोलिटिकल प्रेशर में कलेक्टरों को जितने भी काम करना पड़े, उनमें भी उनकी भागीदारी रही लेकिन मजाल है प्रेस को जानकारी लीक हो जाए…। उस समय जिला प्रशासन मेरी बीट का हिस्सा थी, जलधारी और मेरी बैठक एडीएम सीबी सिंह के रूम में रहती तो उन्हें भी बुलवा लेते थे। चाय-नाश्ता होता, वो कलेक्टर के अच्छे काम गिनाने लगते, कहते ‘भाईजी’ साहब के बारे में कभी अच्छा भी लिख दिया करो। डिप्टी कलेक्टर, रतलाम एडीएम, एमपी पीएससी सेक्रेटरी और उपायुक्त (कमिश्नर कार्यालय) रहे तब और जब वो रिटायर हो गए तब भी मित्रता निभती रही।
रिटायर होने के बाद ऐसा अवसर भी आया कि मोहंती उनकी काबिलियत का उपयोग करना चाहते थे, कहने लगे भाईजी खूब करली सेवा। अब अपना लिखना-पढ़ना, पूजापाठ करने दो। सेवा में रहते बालीपुर वाले बाबाजी के दर्शन को चाहे जब चले जाते,(स्व) विद्यानिवास मिश्र (लेखक-चिंतक-पत्रकार) जब भी इंदौर आते उन्हीं के निवास पर ठहरते थे, उतने दिन वह अवकाश ही ले लेते थे।
सेवानिवृत्ति के बाद से फेसबुक पर खूब सक्रिय हो गए थे। रोज मुक्तक आदि लिखते, एक दिन ‘प्रजातंत्र’ के ऑफिस में डॉ अर्पण जैन एक झोले में कुछ किताबें भेंट कर गए।देखा तो उनका कवि रूप सामने था परिक्रम, रूठे गीत बहल जाएंगे, श्मशान की रातरानी, कौन तुम्हें मधुमास कहेगा, दो किताबे और थीं मुखौटे और बंजर का भाग्य इनमें चार काव्य संग्रह, एक व्यंग्य संग्रह, एक कहानी संग्रह।
अर्पण के लिए निर्मल जी का निरंतर लिखना हतप्रभ करने वाला इसलिए था कि इससे पहले तक वह निरंतर लिखने वाले कवि के रूप में इंदौर के ही राजकुमार कुंभज को जानते थे। उनके लिए भी यह उपलब्धि थी कि किसी एक कवि की इतनी किताबें प्रकाशित करने का श्रेय उनके संसमय प्रकाशन को मिला। वो चाहे अधिकारी रहे या बाद में कवि जब भी फोन पर बात होती मैं कहता आप में प्रतिभा कूट-कूट कर भरी है और फूट फूट कर बह रही है। वो ठहाका लगाते कहते भाई जी प्रस्तावना तो प्रकाश हिंदुस्तानी से लिखवा ली है, समीक्षा तो आप लिख दो। मैं कहता तुमने झोले में भेजी भी तो किताबें, मैं समझा दीवाली पर मिठाई के डिब्बे भेजे हैं। कहता उस दिन भूखे पेट तुम्हारी कविता सुनकर मैं भन्नाटी खाकर रास्ते में गिर पड़ा था। समीक्षा लिखाना है तो भरपेट भोजन कराओ, दक्षिणा दो तब सोचेंगे। अफसोस अब यह आग्रह कौन सुनेगा।
वन ऑफ माय फाइनेस्ट ऑफिसर
कलेक्टर इंदौर (सीएस) रहे सुधिरंजन मोहंती को यह जानकारी दी तो बोले अरे….! यह क्या हो रहा है। निर्मल मेरा वन ऑफ द फायनेस्ट ऑफिसर रहा। बताए गए काम पूरे डेडिकेशन से करते थे। कई मामलों में जिला प्रशासन और नाराज संगठन के बीच सेतु का काम कर के प्रशासन के पक्ष में निर्णय कराने में उनका सहयोग कैसे भूल सकता हूं। कई जिलों में कलेक्टर-इंदौर में एडीएम रहे सीबी सिंह कहने लगे तब पश्चिम क्षेत्र में लगातार सांप्रदायिक  व अन्य विवाद होते रहते थे। निर्मल के संबंध और सूझबूझ या एक तरह से उसने हाथ पकड़ कर काम कराया। कपड़ा मार्केट के अंदर का अतिक्रमण हटाने पर उसके ही संबंध थे कि तत्कालीन पदाधिकारियों से अतिक्रण हटाए जाने संबंधी पत्र लिखवा कर मोहंती साब को टेंशन फ्री किया। अपर कलेक्टर रहे बीबीएस तोमर कहने लगे उनसे एक रिश्ता और भी था मेरे पापा नृपाल सिंह जब सीएसपी परदेशीपुरा थे तब वो एसडीएम थे। बहुत संजीदा अधिकारी थे।
तबीयत ठीक होने पर छुट्टी हुई, फिर से भर्ती करना पड़ा
उनके पुत्र निहित उपाध्याय ने बताया पापा अरबिंदो में दाखिल थे, नेगेटिव होने के बाद छुटुटी हो गई थी। शुगर बढ़ने पर बीते शुक्रवार को पुन: भर्ती किया।सोडियम बढ़ गया था, सारे प्रयास व्यर्थ साबित हुए।

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