- 86 में से 57 को करना पड़ा हार का सामना, दिग्गजों की भी खुली पोल
- विनोद उपाध्याय
चुनाव के छह माह पहले जब कांग्रेस के प्रदेश संगठन की ओर से मौजूदा पार्टी विधायकों को उनकी क्षेत्र में कमजोर होती पकड़ को लेकर नसीहत दी गई थी, तो वे उससे इत्तेफाक रखने को किसी भी हाल में तैयार नहीं हुए थे, लेकिन चुनाव परिणामों ने उनकी खुश फहमी को पूरी तरह से दूर कर दिया है। दरअसल कांग्रेस ने इस बार अपने निवृत्तमान 95 विधायकों में से 86 को टिकट देकर फिर से प्रत्याशी बनाया था, जिनमें से महज 29 माननीय ही चुनाव जीतने में सफल हो सके हैं। यानी की 57 विधायकों पर उनके क्षेत्र की जनता ने भरोसा नहीं जताया है। इसकी वजह रही कांग्रेस का सरकार को लेकर ओवर एंटी इनकंबेंसी पर भरोसा करना और पार्टी के विधायकों का जनता के बीच सक्रिय नहीं होना, जिसकी वजह से कांग्रेस के माननीयों के इलाके में उनके ही खिलाफ जमकर एंटी इनकंबेंसी की स्थिति बन गई। यही वजह है कि पार्टी के जिन विधायकों पर दांव लगाया गया था, उनमें से 60 प्रतिशत को बड़े अंतर से हार का सामना करना पड़ा है। अहम बात यह है कि जो विधायक जीते हैं, उनमें से सात विधायक तो छिंदवाड़ा जिले के हैं। यह विधायक भी व्यक्तिगत कमलनाथ के प्रभाव की वजह से जीते हैं। यहां पार्टी ने फिर सभी सात सीटों पर जीत दर्ज की है।
अति आत्मविश्वास ले डूबा
पार्टी पदाधिकारियों का कहना है कि सभी विधायक अति आत्मविश्वास में आ गए थे और मानकर चल रहे थे कि भाजपा के विरुद्ध सत्ता विरोधी लहर है और उसका लाभ उन्हें मिलेगा, पर परिणामों से साफ है कि एंटी इनकंबेंसी भाजपा सरकार के नहीं, उनके विरुद्ध थी, जिसे वे भांप ही नहीं पाए।इसकी वजह से पार्टी के दिग्गज नेताओं में शामिल डॉ. गोविंद सिंह, एनपी प्रजापति, सज्जन सिंह वर्मा , डॉ. विजय लक्ष्मी साधौ, जीतू पटवारी, हुकुम सिंह कराड़ा और तरुण भानोट जैसे प्रत्याशी तक हार गए।
आठ सीटों पर तीसरा मिला स्थान
इस बार भी कई सीटों पर चुनाव परिणामों ने चौकाया है। इसकी वजह है, एक सीट पर भाजपा और आठ सीट पर कांग्रेस तीसरे नंबर पर रहने को मजबूर हो गई है। तीसरे नंबर पर जाने की उम्मीद भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशियों द्वारा कभी नहीं लगाई जाती है। इसकी वजह है प्रदेश में दो दलीय व्यवस्था का होना। जिसकी वजह से प्रदेश में मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही होता है। कुछ ऐसी सीटें थी, जहां पर बसपा और निर्दलीय प्रत्याशियों के कारण भाजपा और कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ा है। प्रदेश में पहली बार आदिवासी विकास पार्टी का जीत से खाता खुला है। सैलाना सीट पर आदिवासी विकास पार्टी के कमलेश्वर डोडियार ने कांग्रेस प्रत्याशी हर्ष गहलोत को 4618 मतों से हराया। यहां पर भाजपा की संगीता चारेल तीसरे नंबर पर रही। उधर, रीवा जिले की सिरमौर की सामान्य सीट पर आदिवासी चेहरा उताराना कांग्रेस को भारी पड़ गया। कांग्रेस ने रामगरीब कोल को उतारा था। यहां पर भाजपा के दिव्यराज सिंह ने जीत दर्ज की और दूसरे नंबर पर बसपा रही। इसी तरह से दिमनी सीट का भी हाल रहा है। इस सीट से भाजपा प्रत्याशी नरेंद्र सिंह तोमर जीते हैं। दूसरे स्थान पर बसपा के बलवीर दंडोतिया रहे तो कांग्रेस के रवींद्र सिंह तोमर तीसरे स्थान पर आए हैं। नर्मदापुरम में भी कांग्रेस के गिरजा शंकर शर्मा तीसरे स्थान पर रहे हैं। यहां भाजपा के बागी को दूसरा स्थान मिला। महू सीट पर भाजपा की मंत्री ऊषा ठाकुर जीती, तो उनका मुकाबला कांग्रेस के बागी अंतर सिंह दरबार से हुआ। कांग्रेस के रामकिशोर शुक्ला इसकी वजह से तीसरे स्थान पर आ गए। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रेमचंद गुड्डू ने दूसरी बार पार्टी से बगावत कर आलोट से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा और दूसरे स्थान पर आए। यहां भी कांग्रेस प्रत्याशी तीसरे स्थान पर पहुंच गए। इसी तरह से मल्हारगढ़, सुमावली और नागौद विधानसभा सीट पर भी कांग्रेस को अपने बागियों की वजह से तीसरे स्थान पर जाने का मजबूर होना पड़ा है।
यह रही स्थिति
उपचुनाव के बाद प्रदेश में कांग्रेस विधायकों की संख्या महज 96 रह गई थी। इनमें से बड़वाह से विधायक सचिन बिरला ने इस बार भाजपा से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की है। कांग्रेस ने इस बार घोड़ाडोंगरी से ब्रह्मा भलावी, मुरैना से राकेश मावई, गोहद से मेवाराम जाटव, गुन्नौर से शिवदयाल बागरी, कटंगी से टामलाल सहारे, ब्यावरा से रामचंद्र दांगी और सेंधवा से ग्यारसीलाल रावत की जगह नए चेहरों को मैदान में उतारा था। इसी तरह से भोपाल उत्तर से विधायक आरिफ अकील के स्थान पर उनके पुत्र आतिफ अकील और झाबुआ में कांतिलाल भूरिया के स्थान पर उनके पुत्र डा. विक्रांत भूरिया को टिकट दिया गया था। यह दोनों नेता पुत्र जरुर चुनाव जीतने में सफल रहे हैं।
भाजपा के भी 25 विधायक हारे
चुनाव के पहले भाजपा के 127 विधायक थे। इनमें से पार्टी ने 97 पर इस बार भी विश्वास जताते हुए फिर से चुनाव मैदान में उतारा था। इनमें से 72 विधायक फिर से चुनाव जीतकर हैं, जबकि 25 विधायकों को हार का सामना करना पड़ा है। हारने वालों में एक दजर्न मंत्री भी शामिल हैं। ऐसे में भाजपा ने जिन विधायकों पर दांव लगाया, उनमें 75 प्रतिशत से अधिक जीतकर आए हैं। इस बार पार्टी ने 47 नए चेहरों पर दांव लगाया गया था, जिनमें से 34 चुनाव जीतकर पार्टी के निर्णय पर खरा उतरे हैं।