अब जांच में उलझे आधा अरब के टेंडर

केन्द्र सरकार
  • स्मार्ट सिटी के कामकाज से जनता से लेकर सरकार तक नाखुश

    भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। केन्द्र सरकार द्वारा मप्र के शहरों को स्मार्ट बनाने के लिए दी गई अरबों रुपए की मदद से कराए जा रहे कामों को लेकर न तो सरकार खुश है और न ही आम जनता। यही वजह है कि अब राजधानी में स्मार्ट सिटी के आधा अरब से अधिक लागत वाले कामकाज के टेंडर अटक गए हैं। इससे अब कामकाज में देरी के बीच अब नए काम भी रूक गए हैं। इसकी वजह है समीक्षा के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा दिए गए टेंडरों की जांच करने के आदेश। ऐसा नहीं हैं कि केवल भोपाल ही इस जांच के दायरे में है, बल्कि प्रदेश की अन्य स्मार्ट सिटी भी इसकी जद में है। मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस की अध्यक्षता वाली राज्य स्तरीय हाई पावर कमेटी सभी शहरों के स्मार्ट सिटी के मामलों को देख रही है। बताया जा रहा है कि नए कामों के टेंडर और राजधानी में स्मार्ट सिटी के नए कामों का फैसला आज गुरुवार को होने वाली इस कमेटी की बैठक में किया जाएगा। दरअसल मुख्यमंत्री ने करीब एक माह पहले भोपाल सहित सभी सातों स्मार्ट सिटी के कामकाज की समीक्षा की थी। इस दौरान इनके कामकाज और प्रोजेक्ट्स को लेकर उनके द्वारा जमकर नाराजगी जताई गई थी। उन्होंने कोई भी नया टेंडर करने पर भी रोक लगाते हुए नए कामों का रिव्यू करने के निर्देश दिए थे। मुख्यमंत्री ने वर्ष 2019 (कांग्रेस शासन) में स्मार्ट सिटी मिशन में हुए कार्यों, उनके औचित्य, टेंडर प्रक्रिया, व्यय राशि और अनियमितताओं की जांच करने के लिए भी कहा था। उनके द्वारा साफ कहा गया कि स्मार्ट सिटी निर्माण में सौंदर्यीकरण की जगह उपयोगिता और लोगों की सुविधा को प्राथमिकता बनाया जाए। इसके मद्देनजर कमेटी ने सागर, सतना, ग्वालियर, जबलपुर, इंदौर और उज्जैन स्मार्ट सिटी के अधिकारियों की पहले 27 दिसंबर को ऑनलाइन बैठक बुलाई थी, जिसे टाल कर अब नए सिरे से बैठक बुलाई
    गई है।
    अधिकांश टेंडर बिजली और विकास काम के
    कमेटी द्वारा भोपाल स्मार्ट सिटी के दफ्तर से नए शुरू किए जाने वाले कामों की सूची मांगी गई थी। यह भेजी जा चुकी है। बताया जा रहा है इसमें से अधिकांश टेंडर बिजली और विकास के अलावा कंसलटेंसी और पर्यावरण से जुड़े कुछ कार्य बताए जा रहे हैं। इनकी कुल लागत 50 करोड़ रुपए से अधिक है। फिलहाल इनके टेंडर खेलने पर रोक लगी हुई है।
    पर्यावरण नुकसान का भी आरोप : स्मार्ट सिटी के कामकाज से शहर में ग्रीनरी को अत्याधिक नुकसान होने के साथ ही पर्यावरणीय नुकसान को लेकर आमजन भी बेहद नाराज हैं। इसकी वजह है हजारों पेड़ काटे जाने के बाद सौंदर्य के नाम पर प्लास्टिक के पेड़ों को लगाया जाना। यही नहीं सड़कों के बीच में भी ऐसे पौधे लागए गए हैं, जो देखने में तो सुंदर लगते
    हैं, लेकिन उसका पर्यावरण को कोई फायदा  नहीं है।
    शुरू से ही स्मार्ट सिटी के कामकाज पर उठते रहे सवाल
    स्मार्ट सिटी की टेंडर प्रक्रिया और कामकाज पर पहले से ही लगातार सवाल खड़े होते रहे हैं। शहर में स्मार्ट साइकिल की खरीदी व संचालन के लिए बुलाए आॅफर की शिकायत तो प्रधानमंत्री कार्यालय तक की गई थी। इंटिग्रेटेड कंट्रोल एंड कमांड सेंटर की टेंडर प्रक्रिया को लेकर भी आला अधिकारियों के पास शिकायतें आती रही हैं। कुछ महीने पहले टीटी नगर स्थित स्मार्ट सिटी एरिया में जमीन बेचने में गड़बड़ी के आरोप लग चुके हैं। स्मार्ट सिटी के तत्कालीन सीईओ के खिलाफ नामजद शिकायत लोकायुक्त में की गई है , जिसमें आरोप लगाया गया था कि शहर के कुछ बड़े बिल्डर को खरीदी प्रक्रिया में फायदा पहुंचाया गया। इसके लिए नियमों की अनदेखी की गई। यह मामला गर्माने के कुछ समय बाद तत्कालीन सीईओ का तबादला कर दिया गया था।
    स्मार्ट सिटी का विवादों से पुराना नाता
     पहले भी स्मार्ट सिटी पर कई गंभीर आरोप लग चुके हैं। स्मार्ट सिटी के लिए डाटा सेंटर और डिजास्टर रिकवरी सेंटर बनाने के लिए टेंडर जारी किया गया था, जिसमें ऐसी कंपनी को टेंडर दिया गया था जिसे इस काम का कोई अनुभव ही नहीं था। इस मामले में एक आईएएस अफसर और उसके बेटे पर आरोप लगे थे। इसी तरह से स्मार्ट सिटी के नाम पर भोपाल के पॉलीटेक्निक चौराहे से भारत माता चौराहे तक स्मार्ट रोड का टेंडर 31 करोड़ रुपए में हुआ था। 27 करोड़ का वर्क आॅर्डर जारी किया गया था। स्मार्ट सिटी कॉपोर्रेशन ने ठेकेदार को 32 करोड़ का भुगतान कर दिया, जबकि एग्रीमेंट में कान्ट्रेक्ट वेल्यू किसी भी स्थिति में न बढ़ाने की शर्त थी।
    साइकिल ट्रैक पर शुरू हो रहे सवाल खड़े
    राजधानी की होशंगाबाद रोड पर 5 करोड़ की लागत से बनाए गए साइकिल ट्रैक की गुणवत्ता पर सवाल उठते रहे हैं। आर.आर.एल तिराहे से मिसरोद तक बना 12 किलोमीटर लंबा यह साइकिल ट्रैक काफी जर्जर हो चुका है। ट्रैक पर कई बड़े-बड़े गड्ढे बने हुए हैं। स्टेंड में रखी ई-साइकिल भी खड़े-खड़े धूल खा रही हैं, कई स्टॉपर  भी टूट चुके हैं। स्थिति यह है कि ट्रैक पर अब लोग पैदल चलना ज्यादा महफूज समझते हैं। पिछले साल साइकिल ट्रैक की सफाई और मेंटेनेंस का ठेका भी दिया गया था।  35 लाख रुपए की रकम भी खर्च की गई, इसके बाद भी ट्रैक की स्थिति बेहद खराब हो चुकी है। यही नहीं इसके स्थान को लेकर तो शुरू से ही विवाद रहा है। हालत यह है कि इस पर वाहन पार्क होने के साथ ही अन्य कामों में भी लोगों द्वारा बेरोकटोक उपयोग किया जाता है।  

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