कहीं बिजली की आंख मिचौली न बन जाए मुश्किल

बिजली

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। इस साल प्रदेश में भले ही चंद महीनों बाद विधानसभा के आम चुनाव होने हैं, लेकिन बिजली महकमे के अफसरों को इससे कोई मतलब नही है। इस बीच भीषण गर्मी के मौसम में भी लोगों को बिजली की आंख मिचौली का सामना करने के लिए मजबूर करने के लिए विभाग कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहा है। यही वजह है कि इन दिनों लोगों को हर कभी बिजली की आंख मिचौली का सामना करना पड़ रहा है।  सरकार के लिए कहीं यह बिजली की आंख मिचौली चुनाव में भारी न पड़ जाए। यही नहीं बिजली के बार -बार गुल होने से सरकार के उस दावे को भी बट्टा लग रहा है, जिसमें दावा किया जाता है कि प्रदेश उन राज्यों में शामिल है , जहां पर सर प्लस बिजली है।
विभाग द्वारा प्री- मानसून मेंटेनेंस की वजह से हर दिन अलग-अलग इलाकों में जमकर बिजली की कटौती की जा रही है। इसके बाद भी जरा सी हवा चलने और पानी की बूंदे गिरते ही बिजली का गुल होना बंद नहीं हो रहा है। जिसकी वजह से रखरखाव पर भी गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। बताया  जा रहा है कि बिजली गुल होने की वड़ी वजह है मांग और आपूर्ति में अंतर होना। इस बीच विभाग द्वारा बिजली की आपूर्ति को नियंत्रित कर उसकी ब्रिकी भी की जा रही है। इसके लिए मेंटेनेंस का सबसे अहम बहाना बना लिया गया है। उधर, बताया जाता है कि गर्मी के मौसम में देश में बिजली की मंाग में जमकर वृद्धि हो जाती है, जिसकी वजह से बिजली की आपूर्ति में इस तरह की परेशानी आती है। हालांकि यह अस्थाई रहती है, इस कारण ट्रिपिंग के जरिए इसे नियंत्रित किया जाता है।
खेती के फीडरों में सर्वाधिक  ट्रिपिंग
प्रदेश में घरेलू फीडर पर 24 घंटे और खेती के फीडर पर 10 घंटे बिजली की आपूर्ति का दावा किया जाता है, लेकिन शहरों के कोर एरिया को छोडक़र बाकी जगह ट्रिपिंग की समस्या बनी हुई है। इसके लिए मेंटेनेंस का बहाना बनाया जा रहा  है। यह हाल तब है , जबकि सरकार ने बीते साल से ही यह व्यवस्था लागू कर दी है कि मेंटेनेंस का काम शेड्यूलिंग से हो, ताकि बिजली की कमी न हो। साथ ही कहीं पर ज्यादा समय तक बिजली बंद न करना पड़े। इसके बाद भी ग्रामीण व खेती के फीडर्स पर सबसे ज्यादा बिजली की ट्रिपिंग हो रही है।
यह है गणित
फिलहाल प्रदेश में 11500 मेगावाट की अधिकतम मांग है। इसके साथ ही प्रदेश में मानसून की दस्तक से पहले मेंटेनेंस के नाम पर कटौती शुरू कर दी गई है। मांग के मुकाबले बिजली उत्पादन कम है, लेकिन निजी सेक्टर की बिजली ज्यादा है। इसे मिलाकर 22500 मेगावाट की उपलब्धता का दावा है। मौजूदा समय में अधिकतम 4000 मेगावाट का उत्पादन हो रहा है, जबकि इसका उत्पादन 6000- मेगावाट तक किया जा सकता है। 11500 मेगावाट में बाकी करीब 5500 से 6500 मेगावाट का इंतजाम निजी सेक्टर, ग्रिड कोटे व खुले बाजार से किया जाता है। इसमें भी 1000-1500 मेगावाट बिजली बैंकिंग या खुले बाजार में बेच दी जाती है। यही अंतर मांग-आपूर्ति के बीच रह जाता है, जिसके चलते ट्रिपिंग की नौबत रहती है।

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