- गौरव चौहान
नई सरकार के सामने इन दिनों सर्वाधिक बड़ा संकट खाली खजाने का बना हुआ है। अफसरों की फिजूलखर्ची और वित्तीय कुप्रबंधन ने सरकार का पूरा बजट बिगाड़ रखा है। पूर्व की सरकारों में जिस तरह से सरकारी खजाने को लुटाने का काम किया गया है उसने भी सरकार की मुसीबत बड़ा रखी है। यही वजह है कि अब सरकार को नए वित्त वर्ष के बजट के लिए बेहद माथापच्ची करनी पड़ रही है जिससे की खजाने की स्थिति को सुधारा जा सके। हालत यह है कि बजट का एक बड़ा हिस्सा हर साल लिए गए कर्ज के ब्याज चुकाने में ही खर्च हो जाता है। इसके बाद सरकार का दूसरा बड़ा खर्च वेतन, पेंशन पर होता है। यह तीनों मदें ऐसी हैं, जिसकी वजह से सरकार के बजट का आधा हिस्सा खर्च हो जाता है। इसके बाद बचे बजट से बाकी के के काम करना होते हैं। अगर वेतन की बात की जाए तो सरकार के कुल बजट का 26.11 प्रतिशत राशि खर्च हो जाती है। इसी तरह से पेंशन पर 10.19 और ब्याज भुगतान पर 10.02 प्रतिशत राशि खर्च होती है। दरअसल प्रदेश में बीते डेढ़ दशक से सरकार ने आय से अधिक खर्च किया है , इसके लिए बड़ी मात्रा में साल दर साल कर्ज लिया जाता रहा है। हालात यह बन चुके हैं कि सरकार को इसी माह में बार -बार कर्ज लेकर खर्च चलाना पड़ रहा है। इससे सरकार की योजनाओं के क्रियान्वयन में भी दिक्कतें आ रही हैं। अब नई सरकार खर्च कम कर आय में वृद्धि करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
अभी मौजूदा वित्तीय वर्ष में प्रदेश सरकार का बजट 3.14 लाख करोड़ का है। यह पिछले वर्ष की तुलना में 13 फीसदी अधिक है। नए वित्तीय वर्ष में बजट का आकार और बढ़ेगा। प्रमुख कारण आमजन से जुड़ी योजनाओं को पूरा किया जाना है। चुनावी घोषणा-पत्र में किए गए वादे भी पूरे करने हैं। नए वित्तीय वर्ष के बजट में घोषणाओं को पूरा करने के लिए बजट का प्रावधान भी किया जाना है। सात फरवरी से प्रस्तावित सत्र में सरकार जरूरी खर्चों के लिए, राशि मांगेगी। बजट 4 माह का होगा। शेष आठ माह के लिए बजट जुलाई में पारित कराया जाएगा। दरअसल लोकसभा चुनाव के चलते केन्द्र सरकार भी इस बार लेखानुदान ला रही है जो चार माह के लिए होगा, इसके बाद पूरा बजट लाया जाएगा। इसकी वजह से ही प्रदेश सरकार को भी लेखानुदान लाना पड़ रहा है।
कर्ज में हो रही लगातार वृद्धि
बजट का आकार बढ़ने के साथ ही राज्य पर कर्ज का बोझ भी लगातार बढ़ता ही जा रहा है। हालत यह हो गए हैं कि अब प्रदेश पर कर्ज राज्य के बजट से अधिक हो गया है। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि राज्य का बजट 3.14 लाख करोड़ रुपए का है जबकि ,कर्ज 3.31 लाख करोड़ तक पहुंच चुका है। अगर बीते साल की बात की जाए तो राज्य सरकार अब तक 17 बार कर्ज ले चुकी है। जबकि चालू वित्तीय वर्ष 2023-24 में 10 बार कर्ज लिया गया है। विधानसभा चुनाव आचार संहिता के बीच भी सरकार को खर्च के लिए भी कर्ज लेना पड़ा है। आचार संहिता के दौरान तीन बार कर्ज लिया गया। मतगणना के चार दिन पहले भी 2000 करोड़ रुपए का कर्ज लिया गया था। हाल ही में फिर 2500 करोड़ का कर्ज लेना पड़ा है।
मौजूदा साल की आर्थिक स्थिति
प्रदेश की मौजूदा स्थिति कैसी है, इन्हें सरकारी आंकड़ों से समझा जा सकता है। आंकड़ों के मुताबिक इस साल का बजट 3,14,025 करोड़ का है। इसमें कुल प्राप्तियां 2,81,660 करोड़ की हैं , जबकि कुल व्यय 2,81,554 करोड़ का अनुमान लगाया गया था। इसमें बाजार से उठाया गया कर्ज 20081.92 करोड़ वित्तीय संस्थाओं का कर्ज 6624.44 करोड़ रुपए का है, जबकि कर्ज एवं केंद्र सरकार से अग्रिम 52617.91 की हैं। इसी तरह से अन्य देनदारियां 18472.62 करोड़ रुपए की हैं।
लाड़ली बहना योजना से बिगड़ी स्थिति
मध्य प्रदेश सरकार ने इस साल मार्च में लाड़ली बहना योजना की शुरुआत की थी, इस स्कीम के तहत राज्य सरकार मध्य प्रदेश की स्थायी निवासी महिलाओं को 1250 रुपये महीना देती है। हालांकि, योजना की शुरुआत में यह रकम 1000 रुपये थी, लेकिन बाद में इसे बढ़ाकर 1250 रुपये कर दिया गया है , जिसे बढ़ाकर तीन हजार रुपए तक किया जाना है। इसकी वजह से सरकार को बड़ी रकम इस योजना पर खर्च करना पड़ रहे हैं। इस पर अभी हर माह 1,210 करोड़ का खर्च आ रहा है। इसके लिए शुरुआत में 8,000 करोड़ का प्रावधान किया था, जो कि प्रति माह 1,000 का भुगतान करने के लिए पर्याप्त था, ऐसे में अब अगर धीरे-धीरे लाड़ली बहना योजना में रकम 1250 रुपये से बढक़र 3000 तक पहुंचती है तो, इस योजना के लिए सरकार का बजट भी बढऩा तय है। अब इस योजना पर अगले पांच सालों में सरकार पर 61 हजार 890 करोड़ रुपये का भार आना तय है।