- दो लैब में खरी उतरी दावाओं को तीसरी लैब में बताया जा रहा अमानक
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र के अफसरानों की तो बात ही निराली है, वे खुद ही सरकार के विभाग हों या फिर सरकारी स्तर पर किए जा रहे उत्पाद इन सभी को पलीता लगाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। खास बात यह है कि इस तरह के कामों में लिप्त अफसरों व कर्मचारियों पर भी सरकार कोई प्रभावी नहीं करती है, जिसकी वजह से उनके हौंसले बुंलद रहते हैं। ऐसा ही एक मामला हाल ही में चर्चा में बना हुआ है।
मामला है आयुष विभाग का। इस विभाग द्वारा हर साल लघु वनोपज संघ से करीब 40 करोड़ रुपए की आयुर्वेदिक दवाइयां खरीदी जाती हैं। यही नहीं कोरोना के समय में भी लगभग 45 करोड़ की दवाइयां खरीदी गई। इन दवाओं का जब ग्वालियर की लैब में परीक्षण कराया गया तो उन्हें अमानक बताया गया है। खास बात यह है कि इन दवाओं का स्वयं लघु वनोपज संघ सप्लाई करने से पहले स्वयं की लेबोरेटरी और आयुष विभाग से अप्रूव्ड क्वालिटी कंट्रोल लेबोरेटरी भोपाल से टेस्टिंग कराता है। इसके बाद भी आयुष विभाग की ग्वालियर लेबोरेटरी में परीक्षण के दौरान वे मानाकों पर खरी नहीं उतर पा रही हैं। इससे यह सवाल खड़ा हो रहा है कि या तो वनोपज संघ द्वारा कराई जा रही टेस्ट रिपोर्ट गलत है या फिर ग्वालियर की लैब की रिपोर्ट गलत है। हालांकि जिस तरह की खबरें आ रही हैं उसके मुताबिक आयुष विभाग के अफसर नहीं चाहते कि सरकार के ही दूसरे संस्थान से इन दवाओं को लेना पड़े। वे इसी योजना के तहत बाजार से दवा खरीदी के लिए आधार तैयार करने में लगे हुए हैं, जिसके लिए ही योजनाबद्ध तरीके से यह सब खेल किया जा रहा है।
यह भी मानी जा रही है एक वजह
आयुष विभाग और लघु वनोपज संघ के बीच आयुर्वेदिक दवाइयों का कारोबार वैसे तो सालों से चल रहा है। वनोपज संघ ने इस काम के लिए एक युवक को पहले बतौर इंस्टीट्यूशनल एजेंट के रूप में काम दे रखा था , जिसे संघ द्वारा टारगेट बेस पर कमीशन दिया जाता था। संघ ने उसे दो साल पहले जून 2020 में हटा दिया था। इसके बाद से यह काम संघ द्वारा अपने स्तर पर ही किया जा रहा है। इसके बाद से ही यह स्थिति बनने लगी है। खास बात यह है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की कैबिनेट द्वारा लघु वनोपज संघ द्वारा निर्मित विंध्य हर्बल उत्पाद को बढ़ावा देने के लिए फैसला किया गया था। इसके तहत आयुष विभाग अपने अस्पतालों के लिए दवाइयां संघ से खरीदने का भी निर्णरू किया गया था। इसमें खास बात यह है कि जब तक संघ में इंस्टीट्यूशनल एजेंट काम करता रहा, तब तक यही दवाइयां आयुष विभाग की नजर में बहुत अच्छी रहीं हैं , जैसे ही इंस्टीट्यूशनल एजेंट को हटाया गया आयुष विभाग की ग्वालियर टेस्टिंग लैब से उनका परीक्षण कराकर अमानक बताया जाने लगा।
आठ सैंपल फेल
बीते साल आयुष विभाग द्वारा आयुर्वेदिक दवाइयों की आपूर्ति के लिए विंध्य हर्बल को टेंडर जारी किया गया था। यह टेंडर करीब तीन करोड़ रुपए का था। विंध्य हर्बल की इन दावाओं का टेस्ट दो नामचीन लेबोरेटरी में कराने के बाद इन दवाओं की सप्लाई कर दी गई। यह दवाएं 28 तरह की थीं। इसके बाद आयुष विभाग के अफसरों ने इनका ग्वालियर की लैब में परीक्षण कराया , तो उसमें से 8 दवाओं के सैंपल फेल बता दिए गए। इसके लिए बहुत कम रीडिंग को आधार बताया गया है। इसी रिपोर्ट के आधार पर विभाग द्वारा इन दवाओं की खरीदी बाजार से करना शुरू कर दिया गया है। खास बात यह है कि आयुष विभाग के चिकित्सक ही ग्वालियर टेस्टिंग लैब को अत्याधुनिक नहीं मानते हैं, जिससे उसकी रिपोर्ट पर सवाल खड़े होना लाजमी हैं।
21/01/2022
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