वृक्षारोपण के पैसे से करा डाले दूसरे काम

वृक्षारोपण
  • वन विभाग को नहीं है पर्यावरण की ङ्क्षचता, फिर भी कार्रवाई नहीं

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। वन महकमे का भगवान ही मालिक है। इस विभाग को वृक्षारोपण और वनों की सुरक्षा छोडक़र बाकी कामों की ङ्क्षचता बनी रहती है। पर्यावरण सुधार में इस विभाग की बड़ी भूमिका होती है, लेकिन विभाग के अफसर इस मामले में पूरी तरह से बेफिक्र रहते हैं। यही वजह है कि विभाग के अफसरों ने वृक्षारोपण के पैसे से वे तमाम काम कर डाले, जिनसे न तो पेड़ों की संख्या बढऩी थी और न ही पर्यावरण में सुधार होना था।
इसके बाद भी सरकार व शासन ने  इस तरह के मामलों में अब तक कोई कार्रवाई तक नहीं की है। अब इस मामले का खुलासा कैग की रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट में बताया गया है कि कैंपा फंड की जिस राशि से वृक्षारोपण किया जाना था, उस राशि को विभाग ने भवन निर्माण से लेकर अफसरों और कर्मचारियों की ट्रेनिंग, बुनियादी सुविधा के नाम पर अफसरों की सुविधाओं के लिए संसाधन और रिसर्च के नाम पर खर्च करने का काम जारी है। इसी तरह से वन भूमि के डायवर्जन में केंद्र की गाइडलाइन और नियमों का पूरी तरह से उल्लंघन कर वन भूमि और वन दोनों को नुकसान पहुंचाया गया है। विधानसभा में पेश कैग रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2017 से 2020 के बीच मप्र की वन संपदा बढ़ाने के लिए मिलने वाले कैंपा फंड का दुरुपयोग किया गया है। डायवर्जन शुल्क वसूली की गणना और वसूली में छूट से मप्र वन विभाग को 364.83 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। इसी तरह से वर्ष 2017 से 2020 के बीच कैंपा फंड की 53.29 करोड़ रुपए की राशि को गैर वानिकी कामों पर खर्च कर दुरुपयोग कर दिया गया। यही नहीं इस दौरान कैंपा फंड के 167.83 करोड़ रुपए गैर वानिकी कामों के लिए उपयोग की तैयारी भी कर ली गई थी। इसी तरह से 11 वन मंडलों में 28 प्रकरण ऐसे पाए गए हैं, जिनमें वन भूमि के डायवर्सन में केंद्र की मंजूरी की शर्तों का उल्लंघन कर वन भूमि और वनों का भारी नुकसान किया गया है। इसी तरह से क्षतिपूर्ति वनीकरण के लिए गलत स्थानों का चयन कर वनावरण बढ़ाने के नाम पर पैसे का दुरुपयोग कर डाला गया। नियमानुसार बिगड़े वनों में ही क्षतिपूर्ति प्लांटेशन किया जाना चाहिए, लेकिन ऐसे स्थान इसके लिए चुन लिए गए, जहां पहले से ही 40 कैनोपी से ज्यादा का वन थे।
अधिक वन भूमि आयी डूब में
सरदार सरोवर बांध के लिए मप्र की 2731 हेक्टेयर वन भूमि का डायवर्जन 1987 में किया गया था। जब बांध भरा, तब 2809.943 हेक्टेयर जंगल डूब गया। 13 साल बाद भी मप्र की डूबी हुई 78.943 हेक्टेयर वन भूमि के डायवर्सन की कार्रवाई ही नहीं की गई। इसी तरह से एमबी पावर को बैराज बनाने के लिए 35.44 हेक्टेयर वन भूमि के डायवर्जन के मंजूरी दी थी, पर वन विभाग ने 37.11 हेक्टेयर जमीन हस्तांतरित कर दी और इसके बदले में महज 32.78 हेक्टेयर राजस्व भूमि को ही लिया गया है। हद तो यह है कि 2018 में केंद्र ने मप्र को सिंगरौली में 16.396 हेक्टेयर वन भूमि नार्दन कोलफील्ड लिमिटेड को ट्रांसफर करने की मंजूरी दी , लेकिन वन विभाग ने बिना मंजूरी के नियम विरुद्ध एनसीएल को 35.972 हेक्टेयर वन भूमि का हस्तांतरण तक कर डाला। इस मामले में जिस डीएफओ ने ऐसा किया उसके  खिलाफ कार्रवाई प्रस्तावित की गई थी, लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। इसके बाद भी न तो अतिरिक्त वन भूमि वापस ली गई और न ही अतिरिक्त हस्तांतरित भूमि का डायवर्जन कराया गया।
डायवर्जन शुल्क का भी हुआ नुकसान
अनूपपुर, शहडोल और सागर में सडक़ निर्माण प्रोजेक्ट के लिए 10 प्रकरणों में चार अलग-अलग एजेंसियों को सडक़ चौड़ीकरण के लिए 32 हेक्टेयर वन भूमि के डायवर्जन की मांग की, लेकिन सिर्फ 20.23 हेक्टेयर जमीन के डायवर्जन की मंजूरी दी गई, जबकि निर्माण पूरे 32 हेक्टेयर वन भूमि पर हुआ। 11.77 हेक्टेयर जमीन बिना डायवर्जन के ही दे दी, जिसके कारण शासन को 1.21 करोड़ डायवर्जन शुल्क का नुकसान हो गया।

Related Articles