छात्रावास के नाम पर फूंके 26 करोड़ रुपए

छात्रावास

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। सरकारी अफसरों की मनमानी सरकारी खजाने पर भारी पड़ रही है। इसका खुलासा भारत के महालेखाकार की रिपोर्ट में किया गया है। दरअसल   तकनीकी शिक्षा कौशल विभाग के अफसरों ने अपने चेहतों या फिर खुद के फायदे को देखते हुए ऐसी जगह हास्टल बनवा डाला जिसका कोई उपयोग ही नहीं हो पा रहा है। इस हॉस्टल के निर्माण पर 26.30 करोड़ रूपये खर्च किए गए हैं। हद तो यह है कि छात्रावासों की जरूरत और मांग को दरकिनार करते हुए निर्माण की प्रशासकीय स्वीकृत भी दे दी गई।
दरअसल तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास विभाग (टीईएसडीडी) ने केन्द्रीय सहायता से राज्य के 38 शासकीय पॉलिटेक्निक महाविद्यालयों में 1.00 करोड़ की लागत से 38 बालिका छात्रावास भवनों (50 सीटर) के निर्माण की प्रशासकीय स्वीकृति (जनवरी 2012) प्रदान की थी। केन्द्रीय सहायता से निर्मित इन बालिका छात्रावासों के उपयोग से संबंधित जानकारी बताती है कि 30 पॉलिटेक्निक महाविद्यालयों में 26.30 करोड़ की लागत से निर्मित 30 बालिका छात्रावास अनुपयोगी रहे या अभीष्ट प्रयोजन के लिए उपयोग नहीं किये गये। कई स्थानों पर यह बालकों को आवास प्रदान करने के लिए या पुस्तकालय आदि के रूप में उपयोग में मिले हैं। कई स्थानों पर इनका उपयोग ही नहीं पाया गया है।
ऐसे साबित हुए अनुपयोगी
16 में से छ: पॉलिटेक्निक महाविद्यालयों में नए छात्रावास का निर्माण किया गया था, उनके पास पहले से ही सात बालिका छात्रावास थे। इन सात पुराने छात्रावासों में से, दो पुराने छात्रावासों के उपयोगिता का स्तर 43 और 61 प्रतिशत था। चार पुराने छात्रावास पूर्ण रूप से उपयोग किये जा रहे थे तथा शेष एक पुराना छात्रावास पूर्णतया खाली था। इसके बाद भी नए छात्रावास का निर्माण करा डाला गया। जब पुराने छात्रावास थे , तो नए बनाने की जरूरत ही नहीं थी। पुराने उपलब्ध होने की वजह से नए रिक्त पड़े हुए हैं। यह छात्रावास बैतूल, हरदा, ग्वालियर, भिण्ड, जावद (नीमच), शहडोल, बालाघाट, बड़वानी, खुरई (सागर), सागर, वैढऩ (सिंगरौली) एवं इंदौर, होशंगाबाद, सनावद (खरगौन), छिंदवाड़ा, पचौर (राजगढ़), भोपाल और जबलपुर में बनाए गए हैं।
इसलिये साबित हुए अनुपयोगी
महाविद्यालयों में दूसरे छात्रावासों की उपलब्धता, महाविद्यालयों में छात्राओं की कम संख्या, छात्रावासों में बिजली और सुविधाओं का अभाव, विभाग द्वारा आवश्यकता का आंकलन किए बगैर ही उनके निर्माझा की योजना बना ली गई। हद तो यह है कि इसके लिए प्राचार्यों ने भी मांग नहीं की थी , जिसके बाद भी निर्माण की प्रशासनिक स्वीकृति दे दी गई।

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