
- विकास और अतिक्रमण की भेंट चढ़ी
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र ऐसा राज्य है जहां पर अकेले चार दशक में ही करीब तीन लाख हेक्टेयर वन भूमि कम हो गई है। प्रदेश में यह हाल तब बने हुए हैं जबकि सरकार की प्राथमिकता वृक्षारोपण से लेकर पर्यावरण सुधार पर बना होने का दावा किया जाता है। दरअसल प्रदेश में इस अवधि में जो भी सरकारें रही हैं, उनके द्वारा सिंचाई, बिजली, माइनिंग, रक्षा और अन्य क्षेत्रों में विकास के नाम पर करीब एक लाख 67 हजार 399 हेक्टेयर वन भूमि का आंवटन विभिन्न संस्थाओं व लोगों को आंवटित कर दी गई। यही नहीं इस दौरान सरकार व वन महकमें के लापरवाही की वजह से जमीन माफिया ने एक लाख 19 हजार 401 हेक्टेयर जमीन पर अतिक्रमण कर कब्जा कर डाला।
भारतीय वन सर्वेक्षण संस्थान की रिपोर्ट से हुए खुलासे में पता चलता है की 2013 की तुलना में 2019 में 6 सालों में करीब 40 वर्ग किमी में वनक्षेत्र कम हो चुका है। यह हाल तब है जबकि प्रदेश में इस अवधि के दौरान साल दर साल करोड़ों पौधे लगाने का दावा किया गया है। इसमें भी खासकर सामान्य सघन वन और अतिसघन वनक्षेत्र में कमी आई है। छत्तीसगढ़ राज्य अलग होने के बाद मप्र में 94 हजार 689 वर्ग किमी में वनक्षेत्र हुआ करता था, जो धीरे-धीरे कम होता चला गया।
भारतीय वन सर्वेक्षण संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार 2013 में मप्र में 77,522 वर्ग किमी में वनक्षेत्र था, जो घटकर वर्ष 2019 में 77, 482 वर्ग किमी रह गया । यानि मप्र में लगातार वनक्षेत्र घटता जा रहा है। इसकी वजह अवैध कटाई, अतिक्रमण, अवैध उत्खनन और वन्यजीवों का अवैध रूप से शिकार प्रमुख कारण है। वैसे मप्र में टाइगरों की संख्या 521 होने की वजह से टाइगर स्टेट का तमगा फिर से मिल गया है, वहीं प्रदेश में तेंदूओं की संख्या में भी वृद्धि हुई है। ये करीब 3 हजार होने से ये मांसाहारी जीव संरक्षित क्षेत्रों से बाहर निकलकर शिकार करने लगे हैं ।
इन कार्यों के लिए दी गई भूमि
विद्यालय, अस्पताल, आंगनबाड़ी भवन, उचित मूल्य की दुकान, विद्युत और दूरसंचार लाइन, पानी की टंकी का निर्माण, सिंचाई प्रोजेक्ट, पेयजल, पाइप लाइन, नहरें, सड़क, सामुदायिक भवन, सौर ऊर्जा आदि के लिए एक हेक्टेयर तक वन भूमि आवंटित की जा सकती है।
किसको कितनी भूमि आवंट
विकास कार्य के तहत सिंचाई प्रोजेक्ट के लिए 86,220, विद्युत परियोजनाओं के लिए 9,517, माइनिंग के लिए 143, रक्षा संस्थानों को 37,178 और उद्योग सहित अन्य क्षेत्रों के लिए 14,338 हजार हेक्टेयर वन भूमि का आंवटन किया गया जबकि 1,19,401 में अतिक्रमण किया गया है।
अरबों खर्च के बाद भी नहीं बढ़ी हरियाली
प्रदेश में हर साल करीब 5 करोड़ पौधे लगाने का दावा वन विभाग द्वारा किया जाता है। पौधरोपण पर हर साल औसतन 60 करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी हरियाली नहीं बढ़ सकी, जबकि सरकार बीते 7-8 सालों में पौधरोपण पर करीब 350 करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है। इसके बाद भी प्रदेश में सामान्य सघन वनक्षेत्र 34.341 वर्ग किमी से घटकर 34.209 वर्ग किमी रह गया है, जबकि अतिसघन वनक्षेत्र 11 वर्ग किमी घटा है। ये 6,676 वर्ग किलोमीटर की जगह अब 6,665 वर्ग किलोमीटर रह गया है।
यह जिले हुए सर्वाधिक अतिक्रमण का शिकार
पिछले कई वर्षों से वन क्षेत्रों में लगातार अतिक्रमण किया जाता रहा है। वर्ष 2021 में शिवपुरी में 834 हेक्टेयर, रीवा में 482 हेक्टेयर, सागर में 279 हेक्टेयर, ग्वालियर में 251 हेक्टेयर, खंडवा में 167 हेक्टेयर, भोपाल में 177 हेक्टेयर में अतिक्रमण किया गया है, जबकि 2020 में भी शिवपुरी, सागर, रीवा, इंदौर, ग्वालियर और भोपाल जिले वर्ग में वन भूमि पर सबसे ज्यादा अतिक्रमण के मामले दर्ज हुए हैं।