निष्क्रिय हो रही भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई

  • लोकायुक्त के प्रतिवेदन नहीं रखे जा रहे विधानसभा में

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम
मंत्रियों, विधायकों, आईएएस, आईपीएस, आईएफएस अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ जांच को लेकर सुर्खियों में रहने वाले लोकायुक्त संगठन को गोपनीयता के आवरण में इस कदर ढक दिया गया है, कि संगठन क्या कर रहा है किसी को पता ही नहीं चलता।  दरअसल, लोकायुक्त के अनुशंसाओं और प्रकरणों का क्या हुआ पता नहीं चल पाता है। इसकी वजह यह है कि  लोकायुक्त संगठन के नौ वार्षिक प्रतिवेदन सामान्य प्रशासन विभाग को प्राप्त हो जाने के बाद भी विधानसभा में पटल पर नहीं रखे गए है। इनसे जुड़े विभागों से लोकायुक्त की अनुशंसाओं और प्रकरणों पर की गई कार्यवाही की जानकारी नहीं दी जा रही है इसलिए ये विधानसभा में पेश नहीं हो पाए है। लोकायुक्त का 3 वां वार्षिक प्रतिवेदन वर्ष 2015-16 सामान्य प्रशासन विभाग को फरवरी 2023 में प्राप्त हो गया था। पैतीस वां प्रतिवेदन भी इसी अवधि में प्राप्त हो चुका है। 36 वां प्रतिवेदन 2019 में, 37 वां प्रतिवेदन 2020 में, 38 वां प्रतिवेदन 22 में और 39, चालीस और 11 वां वार्षिक प्रतिवेदन वर्ष 2023 में आ चुके है लेकिन इन्हें विधानसभा में पटलित नहीं किया गया है। इन प्रतिवेदनों पर संबंधित विभागों से प्रतिवेदन में उल्लेखित अनुशंसाओं और महत्वपूर्ण प्रकरणों पर की गई कार्यवाही की जानकारी प्राप्त की जाती है। विभागों से यह जानकारी नहीं प्राप्त हो पाई इसलिए ये प्रतिवेदन पटल पर नहीं आ पाए है। विभाग जैसे ही जानकारी देंगे ये प्रतिवेदन पटल पर आ जाएंगे।
सरकार को प्रस्तुत तो की जा रही रिपोर्ट
गौरतलब है कि मप्र में लोकायुक्त संगठन भ्रष्टाचार के खिलाफ लगातार अभियान चला रहा है। वहीं संगठन में लगातार भ्रष्टाचार की शिकायतें भी पहुंच रही हैं। वहीं सरकार भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस की बात तो करती है पर वह विभागों की कार्यप्रणाली में नजर नहीं आता। इसका सबसे बड़ा उदाहरण लोकायुक्त संगठन की अनुशंसा रिपोर्ट है, जो प्रतिवर्ष राज्यपाल और सरकार को प्रस्तुत तो की जा रही है, लेकिन इसे विधानसभा के पटल पर ही नहीं रखा जा रहा। जबकि, सरकार को संगठन की अनुशंसाओं पर अमल करके रिपोर्ट सदन के पटल पर रखनी होती है।  रिपोर्ट सामने नहीं आने से यह पता नहीं चल रहा है कि किस मामले में सरकार ने क्या कार्रवाई की है। इसमें अभियोजन स्वीकृति के प्रकरण भी शामिल होते हैं।  दिसंबर 2024 में परिवहन विभाग के पूर्व आरक्षक सौरभ शर्मा की 100 करोड़ रुपये से अधिक काली कमाई का मामला उजागर हुआ। कांग्रेस ने मामले में सरकार को जमकर घेरा। विधानसभा के बजट सत्र में यह मुद्दा छाया रहा। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के विरुद्ध लोकायुक्त संगठन में शिकायत की।
शिकायतों की भरमार
राज्य सरकार भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति पर काम कर रही है, पर अभी भी विशेष पुलिस स्थापना लोकायुक्त में दर्ज प्रकरणों में आरोपित 180 अधिकारी-कर्मचारियों के विरुद्ध अभियोजन स्वीकृति के मामले संबंधित विभागों में लंबित हैं। इनमें कुछ आइएएस अधिकारी भी शामिल हैं। नियमानुसार यदि किसी प्रकरण में विधिक सलाह लेने की आवश्यकता नहीं है या अन्य कोई समस्या नहीं है तो प्रकरण प्राप्त होने के 45 दिन के भीतर अभियोजन की स्वीकृति मिल जानी चाहिए, पर ऐसा नहीं हो रहा है। अभियोजन स्वीकृति के लिए लंबित मामलों की निगरानी और निराकरण के लिए मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में समिति बनी हुई है। इसके बाद कई अधिकारी-कर्मचारी अपने प्रभाव का उपयोग करके स्वीकृति नहीं मिलने देते। इस कारण उनके विरुद्ध न्यायालय में प्रकरण नहीं चल पा रहा है। उधर, आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) में 35 अधिकारी-कर्मचारियों के विरुद्ध अभियोजन की स्वीकृति आना बाकी है। यहां एक वर्ष पहले तक यह आंकड़ा सौ के ऊपर रहता था। लगभग छह माह पहले की बात करें तो 80 प्रकरण लंबित थे। प्रकरणों की निगरानी के लिए सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) ने एक पोर्टल भी बनाया है, जिससे लगातार निगरानी की जा रही है कि संबंधित विभाग से अभियोजन की स्वीकृति में क्यों देरी हो रही है। जीएडी की ओर से विभागों से समन्वय भी किया जाता है। इसके बाद से अभियोजन स्वीकृति की गति बढ़ी है। अभियोजन की स्वीकृति नहीं देने को लेकर कांग्रेस भी सरकार को घेरती रही है। इसके बाद सरकार ने इसमें निगरानी बढ़ाई है।
कांग्रेस उठाती रहती है मुद्दा
कांग्रेस विधानसभा में भी लोकायुक्त का प्रतिवेदन प्रस्तुत नहीं किए जाने का मुद्दा उठाती रही है। ऐसे में माना जा रहा था कि सरकार बजट सत्र में लोकायुक्त का प्रतिवेदन  प्रस्तुत कर सकती है, पर नहीं किया।  आज स्थिति यह है कि लोकायुक्त में दर्ज प्रकरणों में से 284 और आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ में दर्ज प्रकरणों में से 30 में अभियोजन की स्वीकृति ही नहीं मिली है। लोकायुक्त में अभियोजन स्वीकृति के लिए लंबित प्रकरणों में से अकेले 25 पूर्व आईएएस अधिकारी रमेश थेटे के हैं। बता दें, लोकायुक्त की रिपोर्ट में अधिकारियों-कर्मचारियों के विरुद्ध दर्ज प्रकरणों की विभागवार जानकारी, वर्षवार विवरण, अभियोजन और सजा की स्थिति, स्वीकृत और पदस्थ स्टाफ की जानकारी रहती है। इस रिपोर्ट पर सरकार कार्रवाई करती है।

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