मर रहे मवेशी, अफसर खेल रहे तबादला-तबादला

मवेशी
  • लम्पी के भयावह प्रसार के बीच पशुपालन विभाग को अव्यवस्थाओं का रोग 

भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। गौमाता के हित और हक की दुहाई देने वाले मध्यप्रदेश में स्थिति कुछ विचित्र चल रही है।  लम्पी रोग अब तक 250 से अधिक गौवंश की जान ले चुका है, लेकिन पशुपालन विभाग इस बीमारी से लड़ने की स्थिति में ही नहीं है। अव्वल तो विभाग के पास लम्पी से निपटने हेतु आवश्यक अमला ही नहीं है, उस पर बचे खुचे स्टाफ के बीच भी गायों की चिंता छोड़कर तबादलों के लिए खींचतान मची हुई है।  यह रोग प्रदेश के 31 जिलों में फैल चुका है। शेष 21 स्थानों पर भी इसकी आहट सुनाई दे रही है, किंतु सरकारी इंतजाम इतने लचर हैं कि हालात के और बिगड़ने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।
इस समय जो काम सबसे जरूरी है, वह राज्य के चार करोड़ से अधिक पशुधन की सुरक्षा का है। इसके बाद लम्पी से मारे गए पशुओं के पालकों को मुआवजा देना होगा। लेकिन पशुपालन विभाग इसके लिए तैयार ही नहीं दिख रहा। भला हो केंद्र सरकार का कि उसने इस स्थिति से निपटने के लिए राज्य को 406 मोबाइल वेटरनरी यूनिट (एमवीयू) खरीद कर दे दीं, लेकिन इनके लिए डॉक्टर सहित पैरामेडिकल स्टाफ और सहायक अमले की भारी कमी है। कहने को तो विभाग में मैदानी काम के लिए सहायक पशु सर्जन के 1671 पद हैं, लेकिन उनमें से 249 खाली हैं। पशु चिकित्सा क्षेत्र विस्तार अधिकारी के 5797 स्वीकृत पदों में 2675 पद भरे जाने हैं। जिन 6000 युवाओं को प्रशिक्षित कर ‘मैत्री’ बनाया गया है, उनके पास लम्पी से निपटने का आवश्यक अनुभव एवं ज्ञान नहीं है। 
इस सबके बीच विभाग में स्टाफ के तबादले की मारामारी चल रही है। अफसरान पशुओं की समस्या से आंख मूंदकर ट्रांसफर लिस्ट पर नजरें गड़ाए बैठे हैं। इधर पशु चिकित्सकों व एवीएफओ के तबादलों की गहमागहमी मची हुई है, उधर राजस्थान और गुजरात से लगे राज्य के क्षेत्रों में तबाही मचा रही लम्पी अब तेजी से अन्य जगहों पर भी असर दिखाने लगी है।
यदि होता सही उपयोग 
जानकार बताते हैं कि यदि केंद्र से मिली एमवीयू सुविधा का सही इस्तेमाल किया जाता तो प्रदेश में लम्पी को समय रहते नियंत्रित करना आसान रहता। केंद्र के निर्देश के बाद भी इस सुविधा को राज्य में ब्लॉक स्तर तक नहीं पहुंचाया गया है। जहां सीमावर्ती उत्तरप्रदेश में एमवीयू का इस्तेमाल शुरू हो गया हैं, वहीं मध्यप्रदेश में तो इसे इनस्टॉल करने के लिए प्राइवेट कंपनी के चयन की प्रक्रिया तक उलझी हुई है। बता दें कि एमवीयू में टोल फ्री नंबर 1962 पर बीमारी की सूचना मिलने के तुरंत बाद संबंधित ठिकाने पर दवा, टीके और इलाज का इंतजाम तथा डॉक्टरों को भेजने की पूरी व्यवस्था है। लेकिन प्रदेश में इसका लाभ ही नहीं लिया जा रहा है।
इस बारे में पशुपालन और डेयरी विभाग के संचालक डॉ. आरके मेहिया ने दावा किया कि समुचित बंदोबस्त के चलते लम्पी से होने वाली मौत पर  पचास प्रतिशत तक नियंत्रण कर लिया गया है। मेहिया ने कहा कि अब तक आठ लाख पशुओं को इसके टीके लग चुके हैं और अगली खेप में 14 लाख और टीके आ रहे हैं। एमवीयू पर उनका कहना था कि इसके लिए टेंडर हो चुके हैं। मेहिया ने यह भी कहा कि जल्दी ही विभाग के खाली पद भर दिए जाएंगे।

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