
भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में इन दिनों दुग्ध महासंघ और दुग्ध संघों में अफसरों की मनमानी से किसान के साथ ही उपभोक्ता भी परेशान है। दरअसल, इनकी समस्या और शिकायतों को देखने और सुनने वाला कोई नहीं है। इसकी वजह यह है कि दुग्ध महासंघ (एमपी स्टेट कोऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन लिमिटेड) और भोपाल सहकारी दुग्ध संघ समेत चार सहकारी दुग्ध संघों के बोर्ड भंग हैं और इन पर अफसरों का कब्जा है। संघों में जनप्रतिनिधि नहीं होने के कारण किसानों की कोई सुन नहीं रहा है। गौरतलब है कि दुग्ध महासंघ और भोपाल सहकारी दुग्ध संघ समेत चार सहकारी दुग्ध संघों के बोर्डों का कार्यकाल खत्म हो गया है। इन बोर्डों में किसान के चुने हुए प्रतिनिधि रहते हैं, जिन पर किसान और उपभोक्ताओं के हितों का ज्यादा दबाव होता है। जब से बोर्ड भंग हुए हैं तब से इन सहकारी संघों की पूरी जिम्मेदारी अधिकारियों पर है। लेकिन अधिकारी न तो किसानों और न ही उपभोक्ताओं के हितों पर ध्यान दे रहे हैं।
अध्यक्ष विहीन सारे दुग्ध संघ
चुनाव नहीं होने के कारण सारे दुग्ध संघ जनप्रतिनिधि विहीन हैं। दुग्ध महासंघ के अंतिम अध्यक्ष तंवर सिंह थे, जिन्हें कांग्रेस की कमलनाथ सरकार ने मनोनीत किया था। प्रदेश में कमलनाथ सरकार के हटते ही उन्हें भी हटा दिया गया था। तब से अध्यक्ष की कमान प्राधिकृत अधिकारी के रूप में पशुपालन विभाग के अपर मुख्य सचिव जेएन कंसोटिया संभाल रहे हैं। वहीं भोपाल सहकारी दुग्ध संघ के आखिरी अध्यक्ष मस्तान सिंह थे। बोर्ड के भंग होने के बाद से दूसरे बोर्ड का गठन नहीं हुआ है। भोपाल दुग्ध संघ में अध्यक्ष की जगह प्राधिकृत अधिकारी के रूप में संभागायुक्त गुलशन बामरा जिम्मेदारी देख रहे हैं। इंदौर सहकारी दुग्ध संघ में कांग्रेस की सरकार आते ही बोर्ड का गठन कर दिया था। भोपाल दुग्ध संघ की तरह उज्जैन, बुंदेलखंड (सागर), ग्वालियर, जबलपुर सहकारी दुग्ध संघ में बोर्ड नहीं है। सहकारी दुग्ध संघों में चुनाव कराए जाने के नियम है। इस आधार पर बोर्ड में प्रतिनिधित्व तय होता है, लेकिन सरकार चाहे तो चुनाव होने तक अध्यक्ष मनोनीत कर सकती है।
सीईओ के चयन को लेकर विवाद
जनप्रतिनिधियों के नहीं होने के कारण भोपाल समेत दूसरे दुग्ध संघों में हमेशा सीईओ के चयन को लेकर विवाद उठते रहे हैं। ऐसे मामलों में शिकायतें भी हो रही हैं। हाल ही में भोपाल संघ के सीईओ आरपीएस तिवारी को लेकर लंबी खींचतान चली थी। जनप्रतिनिधियों के रहते सीईओ से जुड़े मामले सीधे सरकार के संज्ञान में लाए जाते हैं जो कि फिलहाल नहीं हो पा रहा है। संघों में बोर्ड नहीं होने के कारण ठेकेदारी व्यवस्था में बदलाव नहीं हो रहे हैं। वर्षों से ठेकेदार जमे हुए हैं। इन्हें मनमाने ढ़ंग से भुगतान हो रहा है। इस तरह किसानों और उपभोक्ताओं के हितों की बलि चढ़ाई जा रही है।
तीन-चार वर्ष पूर्व भंग हो चुके बोर्ड
दुग्ध महासंघ समेत सभी सहकारी दुग्ध संघों में तीन-चार वर्ष पूर्व बोर्ड भंग हो चुके हैं। सरकार ने अब तक उनके चुनाव नहीं कराए हैं, जो कि पहले ही करा लिए जाने थे। दुग्ध महासंघ के पूर्व अध्यक्ष सुभाष मांडगे कहते हैं कि इंदौर दुग्ध संघ में कांग्रेस सरकार के आते ही चंद दिनों में बोर्ड का गठन हो गया था। कुछ गड़बड़ियां भी हुई थीं, तब भी बोर्ड को भंग नहीं किया गया। भोपाल सहकारी दुग्ध संघ के पूर्व अध्यक्ष मस्तान सिंह का कहना है कि सरकार से संपर्क में हैं। कोशिशें कर रहे हैं कि भोपाल समेत सभी संघों में जल्द बोर्ड का गठन हो जाए। फिलहाल चुनाव संभव न भी हो, तो सरकार से मांग करेंगे कि अध्यक्ष मनोनीत किए जाएं।
बोर्ड नहीं होने से खड़ी हो रही हैं समस्याएं
दुग्ध संघों में बोर्ड नहीं होने से समस्याएं खड़ी हो रही हैं। भोपाल सहकारी दुग्ध संघ दूध खरीदी के दाम नहीं बढ़ा रहा है। किसान, अध्यक्ष और सचिव नाराज हैं। दुग्ध संघ में पहुंचकर नाराजगी जता रहे हैं। बीते आठ दिन में दो बार ऐसा हो चुका है। जनप्रतिनिधि होते तो किसानों को इस तरह की परेशानी से बचाया जा सकता था। लगातार पशु आहार की गुणवत्ता और उसके दाम कम करने को लेकर सवाल उठ रहे हैं। लगभग सभी दुग्ध संघों में यह स्थिति है। जिसे हल नहीं किया जा रहा है। जनप्रतिनिधियों को किसान इस समस्या पर अपने-अपने क्षेत्र में समस्या बताकर निराकरण करा सकते थे। भोपाल सहकारी दुग्ध संघ में रिश्वत कांड सामने आया था, जिसकी हकीकत आज तक उपभोक्ताओं के सामने नहीं आई है। अधिकारियों ने रिश्वत कांड के आशीष पटेल को बिना कार्रवाई दूसरी जगह भेज दिया। जनप्रतिनिधि होते तो संभवत: ज्यादा जिम्मेदारी तय हो सकती थी।