मनमानी: नर्सिंग होम संचालक नहीं देना चाहते तय शुल्क

नर्सिंग होम संचालक

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। रिहायशी इलाकों में अवैध रूप से चल रहे नर्सिंग होम, अस्पतालों के संचालक जहां एक और मरीजों से भारी भरकम रकम वसूलते हैं, वहीं जब सरकारी फीस जमा करने के बारी आयी तो वे इसके लिए तैयार नहीं हो रहे हैं। इसकी वजह से इस मामले में अड़ंगा लग गया है। दरअसल सरकार चाहती है कि बगैर अनुमति खोले गए इन अवैध नर्सिंग होम और अस्पतालों को लोगों की सुविधा के लिए वैध कर दिया जाए। इसके लिए अस्पतालों के लिए कुछ फीस तय की गई है। अधिकांश संचालक इस फीस को अधिक बता रहे हैं। अब वे फीस को कम करने की मांग को लेकर एक प्रतिनिधिमंडल के साथ नगर निगम कमिश्नर वीएस चौधरी से भी मिल चुके हैं। नगर निगम कमिश्नर द्वारा अपने स्तर पर कोई फैसला नहीं किए जाने के बाद अब यह संचालक मुख्यमंत्री के सामने अपना पक्ष रखने की तैयारी करने में लगे हैं। दरअसल राजधानी में ही कई पॉश इलाकों में शामिल अरेरा कॉलोनी, एमएलए क्वार्टर्स, पुराने शहर, भेल समेत अन्य क्षेत्रों में आवासीय लीज की शर्तों का उल्लंघन कर नर्सिंग होम, अस्पतालों का संचालन किया जा रहा है। इनको नियमित करने का मामला बीते एक साल से अटका हुआ है। इसकी वजह सिर्फ फीस है। शुरूआत से ही संचालक फीस को अधिक बताते हुए इसे कम करने की मांग कर रहे हैं। खास बात यह है कि इस मामले में निगम प्रशासन ने भी नरम रुख दिखाते हुए प्रस्तावित शुल्क में कटौती भी की, लेकिन नर्सिंग होम, अस्पताल संचालक इस पर भी मानने को तैयार नहीं हैं। वे और अधिक शुल्क कम करने की मांग पर अड़े हुए हैं। इसकी वजह से ही निगम कमिश्नर द्वारा शुल्क कटौती का फैसला लेने के लिए एक प्रस्ताव तैयार कर राज्य शासन को भेज दिया गया था। यह प्रस्ताव लंबे समय से शासन स्तर पर अटका रहा और फिर शासन ने इस प्रस्ताव पर बगैर कोई फैसला लिए ही लौटा दिया था, जिसकी वजह से यह मामला अटका
हुआ है।
निगम प्रशासन नहीं दिखा रहा सख्ती
इस मामले में निगम प्रशासन भी कोई सख्ती नहीं दिखा रहा है जिसकी वजह से इस मामले में प्रक्रिया आगे ही नहीं बढ़ पा रही है। हालत यह है कि शहर के गली कूचों तक में अवैध अस्पतालों की बाढ़ सी आयी हुई है। हालत यह है कि अरेरा कॉलोनी में संचालित बड़े नर्सिंग होम समेत तीन-चार संचालकों ने हाल में नियमितीकरण के लिए तय शुल्क जमा किया है, लेकिन बाकी नर्सिंग होम फीस भरने के लिए तैयार ही नहीं हैं। इसकी वजह से यह प्रक्रिया अटकी हुई है।
10 फीसदी की जा चुकी है कटौती
टीएंडसीपी ने मास्टर प्लान 2005 में आवासीय लैंडयूज पर न्यूनतम 372 वर्गमीटर में बने नर्सिंग होम को वैध करने के लिए नियम-कायदे बनाए गए थे। इसके लिए चार साल पहले सितंबर 2018 में संशोधन किया जा चुका है। इन्हें वैध करने की फीस तय करने का अधिकार नगर निगम को दिया गया है। शुरूआत में संबंधित क्षेत्र में आवासीय व  कॉमर्शियल गाइडलाइन के अंतर की 25 फीसदी राशि फीस के तौर पर तय की गई थी। संचालकों के विरोध के बाद इसमें 10 फीसदी की राहत देते हुए उसक कम कर 15 फीसदी किया जा चुका है। इसके बाद भी नर्सिंग होम, अस्पतालों के संचलक इसे और कम करने की मांग पर अड़े हुए हैं।
यह तय है शर्तेंअस्पतालों के लिए तय मापदंडो में अस्पतालों का निर्माण न्यूनतम 4000 वर्गफीट पर ही किया जा सकता है। इसके लिए सामने की सड़क की न्यूनतम चौड़ाई 12 मीटर तय की गई है। इसी तरह से अस्पताल प्रबंधन को पार्किंग की व्यवस्था करना अनिवार्य किया गया है। यदि उनके पास पार्किंग नहीं है तो नगर निगम की पार्किंग का पैसा देना होगा। यह रकम कलेक्टर गाइडलाइन के हिसाब से होगी। रिहायशी क्षेत्र में अस्पताल चलाने के लिए एकमुश्त के साथ सालाना अधिभोग शुल्क भी देना होगा। इसके अलावा हर वर्ष फीस का भी भुगतान करना होगा। 

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