- गौरव चौहान
जहां एक तरफ केंद्र और प्रदेश सरकार हर गरीब के सिर पर छत देने का प्रयास कर रही हैं तो वहीं,दूसरी तरफ हितग्राही मकान के लिए मिलने वाली राशि को अन्यत्र खर्च कर रहे हैं। इस कारण प्रदेश में मकान के लिए पहली किश्त लेकर व्यक्तिगत कार्य और शौक पूरा करने वालों की संख्या 10,000 से अधिक हो गई है। यानी इन डिफॉल्टर हितग्राहियों ने हाउसिंग फॉर ऑल में दस अरब का गड़बड़झाला कर दिया है। भारत सरकार ने भारतीयों को अपना घर बनाने में मदद करने के उद्देश्य से 2015 में हाउसिंग फॉर ऑल मिशन शुरू किया था। इस मिशन के तहत, जिसे प्रधानमंत्री आवास योजना के नाम से जाना जाता है, आप अपने घरेलू आय वर्ग और अन्य मानदंडों के आधार पर अपने होम लोन पर ब्याज सब्सिडी प्राप्त कर सकते हैं। नगरीय विकास एवं आवास विभाग के अफसरों के मुताबिक कई नगरीय निकायों में हितग्राहियों ने पहली किश्त मकान बनाने की बजाय कहीं और खर्च कर दी। व्यक्तिगत कार्य और शौक पूरा करने में इसका उपयोग कर लिया। बताया जा रहा है डिफॉल्टर हितग्राहियों की संख्या दस हजार से अधिक है। ऐसे में प्रति हितग्राही एक लाख के हिसाब से यह राशि दस अरब रुपए के पार पहुंच जाती है। हालांकि कमिश्नर नगरीय प्रशासन भरत यादव का कहना है कि यह नहीं कह सकते हैं कि राशि खर्च कर दी। इसके लिए एक-एक प्रकरण देखना होगा। यह सही है कि कई लोगों ने मकानों का निर्माण शुरू नहीं किया है। कुछ को पट्टे नहीं मिले, कुछ लोग नहीं मिल रहे जैसे कारण हो सकते हैं। कलेक्टर सूची का अनुमोदन करते हैं। ऐसे में कलेक्टरों को लिखा है कि मकानों का निर्माण शुरू कराएं या फिर संबंधित हितग्राही से वसूली करें। कहीं और खर्च कर दी…गौरतलब है कि हाउसिंग फॉर ऑल या पीएमएवाय योजना के चार घटक है। पहला पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप से रीडेवलपमेंट और दूसरा अफोर्डेबल हाउसिंग प्रोजेक्ट है। फिर क्रेडिट लिंक सब्सिडी स्कीम (सीएलएसएस) और आखिरी बेनिफिशियरी लेड इंडिविजुल हाउस कंस्ट्रक्शन (बीएलसी) है। बीएलसी में कमजोर आय वर्ग यानी ईडब्ल्यूएस तबके के लोगों को मकान निर्माण या इसके विस्तार के लिए 2.50 लाख रुपए की राशि केंद्र व राज्य की ओर से दी जाती है। बीएलसी घटक में मकान का निर्माण शुरू करने के लिए पहली किश्त के तौर पर एक लाख रुपए तक दिए जाते हैं। फिर मकान की प्रगति के आधार पर बाकी राशि जारी की जाती है। इसके लिए उनकी जियो टैगिंग की जाती है। नगरीय विकास एवं आवास विभाग के अफसरों के मुताबिक कई नगरीय निकायों में हितग्राहियों ने पहली किश्त मकान बनाने की बजाय कहीं और खर्च कर दी। व्यक्तिगत कार्य और शौक पूरा करने में इसका उपयोग कर लिया। बताया जा रहा है डिफॉल्टर हितग्राहियों की संख्या दस हजार से अधिक है। ऐसे में प्रति हितग्राही एक लाख के हिसाब से यह राशि दस अरब रुपए के पार पहुंच जाती है।अधिकारियों की लापरवाही भीप्रधानमंत्री आवास योजना के तहत गरीबों को छत मुहैया कराने के लिए सरकार पूरी तरह प्रतिबद्ध है। तीन माह के भीतर चयनित लाभार्थियों का आवास पूरा कराने का लक्ष्य दिया गया था, लेकिन पिछले पांच सालों के आंकड़ों को देखा जाए तो प्रधानमंत्री आवास योजना वाले घर अधूरे पड़े हैं, जिनको समय रहते ही पूरा कर दिया जाना चाहिए था। विभागीय अधिकारियों की लापरवाही और उदासीनता के चलते अभी भी ढेर सारे आवास ऐसे हैं जो अधूरे पड़े हैं। वहीं हजारों हितग्राही तो ऐसे भी हैं ,जिन्होंने पहली किश्त लेने के बाद दूसरी किश्त के लिए आवेदन ही नहीं किया है। जब इसकी पड़ताल की गई तो यह तथ्य सामने आया कि उन्होंने पहली किश्त को मकान बनाने की जगह दूसरी जगह उपयोग कर लिया है। अब उनसे यह राशि वसूल करने की तैयारी की जा रही है।अब वसूली में लगा विभागदरअसल, मकान बनाने के लिए मिले पैसे हजारों हितग्राहियों ने कहीं और खर्च कर दिए। किसी ने बाइक खरीद ली तो किसी ने शादी में उड़ा दिए। अब इनको तलाशने और फिर वसूली करने के लिए अफसर परेशान हो रहे हैं। ऐसे में नगरीय प्रशासन संचालनालय ने कलेक्टरों को डिफॉल्टर्स से रिकवरी के लिए लिखा गया है। प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) में मप्र के लिए 11 लाख से अधिक आवासहीन चिन्हांकित किए गए थे। मौजूदा स्थिति में ईडब्ल्यूएस, एलआईजी, एमआईजी, एचआईजी टाइप के लगभग नौ लाख मकान बन चुके हैं। इसमें से अधिकांश हितग्राहियों को आवंटित हो चुके हैं। दो लाख से अधिक मकान अभी नहीं बन पाए हैं। भोपाल के लिए योजना का एक्शन प्लान वर्ष 2015 में मंजूर हुआ था। इसमें पीपीपी से रीडेवलपमेंट के जरिए 62,383 और अफोर्डेबल हाउसिंग प्रोजेक्ट में 63,646 मकान मंजूर हुए थे। सीएलएसएस घटक में 13383 और बीएलसी में भी इतने ही आवासो का निर्माण प्रस्तावित था। इस तरह कुल 1, 52, 795 मकानों के निर्माण का टारगेट था। भोपाल में पीपीपी और बीएलसी घटक में एक भी आवास का निर्माण नहीं किया गया। ऐसे में राजधानी में बीएलसी घटक में कोई भी डिफॉल्टर हितग्राही नहीं है। वहीं कई निगमों में पहली किश्त लेकर कही और खर्च कर देने वालों की संख्या सैकडों में है।