- दिनेश निगम त्यागी
भाजपा-कांग्रेस में दिखेगा यह अजीब संयोग….
राजनीति भी अजीब है। पहले कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे कैलाशवासी माधवराव सिंधिया के पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोडक़र भाजपा में गए थे, अब भाजपा के संस्थापक सदस्य पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय कैलाश जोशी के बेटे दीपक जोशी कांग्रेस के हाथ के साथ हो लिए। मध्यप्रदेश में यह भी अजीब संयोग होगा कि सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद माधवराव सिंधिया को भाजपा कार्यालय में जगह मिलने लगी है और इधर दीपक के आने के बाद कांग्रेस कार्यालय में गांधी-नेहरू परिवार के बीच कैलाश जोशी होंगे। जिस तरह जन्म दिन और पुण्यतिथि पर माधवराव भाजपा और कांग्रेस में याद किए जाते हैं, अब उसी तरह दोनों दलों में कैलाश जोशी भी याद किए जाएंगे। ज्योतिरादित्य ने कांग्रेस छोड़ी थी तो पार्टी की सरकार भी चली गई थी, दीपक जोशी के आने के बाद भाजपा को कितना नुकसान होता है, यह समय बताएगा। क्योंकि जैसा समर्थन ज्योतिरादित्य के साथ है, दीपक जोशी के साथ नहीं है। ज्योतिरादित्य अपने समर्थक 19 विधायकों के साथ कांग्रेस में आए थे लेकिन दीपक जोशी के साथ कोई विधायक नहीं आया। साथ में जोशी के समर्थकों ने जरूर कांग्रेस ज्वाइन की है। दीपक जोशी की पूंजी सिर्फयह है कि वे राजनीति के संत कैलाश जोशी के बेटे हैं और खुद उन पर भी अब तक कोई दाग नहीं है।
भाजपा को उसी की शैली में जवाब देने की तैयारी….
राजनीति में ‘कभी नाव पानी में होती है तो कभी पानी नाव में।’ अब तक कांग्रेस का हर असंतुष्ट नेता भाजपा में जाने की तैयारी में रहता था, अब आबोहवा उलटी बहती दिख रही है। छत्तीसगढ़ में वरिष्ठ आदिवासी नेता नंदकुमार साय कांग्रेस में क्या गए, हर तरफ भाजपा को छोड़ कांग्रेस में जाने वाले नेताओं की चर्चा जोरों पर है। कांग्रेस भी भाजपा को उसी की शैली में जवाब देने की फिराक में है। फिलहाल पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय कैलाश जोशी के बेटे पूर्व मंत्री दीपक जोशी ने भाजपा छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया है, लेकिन कांग्रेस की तरकश में एक अकेला दीपक नहीं हैं, अन्य कई तीर भी हैं। भाजपा को उसके कई अन्य नेता तेवर दिखा रहे हैं। ये सभी बड़े नेता हैं। जैसे, प्रसिद्ध कवि इंदौर के सत्यनारायण सत्तन अपनी ही पार्टी के खिलाफ मुखर हैं। अपेक्स बैंक के पूर्व अध्यक्ष एवं पूर्व विधायक भवर सिंह शेखावत ने बागी तेवर अख्तियार कर रखे हैं। उधर पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा ने भी खुलकर नाराजगी जाहिर कर दी है। वरिष्ठ नेता रघुनंदन शर्मा लगातार नसीहत दे रहे हैं। इसीलिए कांग्रेस भाजपा को उसी की तर्ज पर मात देने की तैयारी में है। भाजपा ने कांग्रेस के विधायक तोडक़र सरकार बनाई थी, अब कांग्रेस भाजपा के नेता तोडक़र उसे पवेलियन लौटना चाहती है।
दिग्गजों को चुनौती देने ताल ठोंक रहे ये दमदार….
भाजपा के कुछ दिग्गजों की विधानसभा सीटें कांग्रेस के निशाने पर हैं। कांग्रेस के लिए कमजोर मानी जाने वाली इन सीटों की जवाबदारी वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह के कंधों पर है। इसके साथ मुकाबले के लिए कुछ दमदार चेहरे अभी से ताल ठोंक रहे हैं। दतिया में नरोत्तम मिश्रा के खिलाफ भाजपा के ही अवधेश नायक तो भोपाल के नरेला में विश्वास सारंग के खिलाफ मनोज शुक्ला ने दिन-रात एक कर रखा है। सुरखी में गोविंद राजपूत के खिलाफ भाजपा के ही राज कुमार धनौरा ने झंडा उठा रखा है। विजयराघौगढ़ में संजय पाठक के खिलाफ नीरज बघेल ताल ठोंक रहे हैं। सब योजना के मुताबिक चला तो बदनावर में राजवर्धन सिंह दत्तीगांव के मुकाबले भाजपा के भंवर सिंह शेखावत कांग्रेस उम्मीदवार हो सकते हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ दीपक जोशी ने चुनाव लडऩे की घोषणा की है। उनके खास भूपेंद्र सिंह के खिलाफ भी दमदार चेहरे की तलाश है। कांग्रेस के कई दावेदार लंबे समय से ऐसी मेहनत कर रहे हैं, जैसे उनका टिकट पक्का है। जय-पराजय अपनी जगह है लेकिन तैयारी से साफ है कि चुनाव में दिग्गजों की सीटों में भी मुकाबला रोचक होगा। कांग्रेस इस बार भाजपा नेताओं को पार्टी में शामिल कर यह वातावरण बनाने की कोशिश में है कि कांग्रेस फिर सत्ता में आने वाली है।
कांग्रेस नहीं, इस बार भाजपा में होगी दिल्ली दौड़..!
विधानसभा चुनाव के लिए इस बार उलटी बयार चलती दिख रही है। आमतौर पर हर चुनाव में कांग्रेस की टिकट के दावेदार हफ्तों-महीनों दिल्ली में डेरा डालने और लंबी मशक्कत के बाद टिकट पाते थे। टिकट की लड़ाई में ही थक हार चुके कांग्रेस के ये नेता भाजपा के दिग्गजों से मुकाबला करते थे। लेकिन इस बार राजनीतिक हालात कुछ अलग हैं। इस बार विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस की तस्वीर लगभग स्पष्ट है। अधिकांश टिकट प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ बाटेंगे और जो कमजोर सीटें दिग्विजय सिंह को सौंपी गई हैं, उनके लिए उनकी सिफारिश को तरजीह दी जाएगी। कहा जा रहा है कि इस चुनाव में टिकट के लिए कांग्रेस के किसी दावेदार को दिल्ली दौड़ नहीं लगानी पड़ेगी। दूसरी ओर भाजपा की स्थिति इसके उलट दिखाई पड़ती है। यहां टिकट संगठन और मुख्यमंत्री मिलकर भोपाल में तय करते थे। दिल्ली से इक्का-दुक्का परिवर्तनों को छोडक़र सूची जारी हो जाया करती थी, लेकिन भाजपा के अंदर जैसी सिर फुटौव्वल है और भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने जिस तरह मप्र पर फोकस किया है। इसे देखकर लगता है कि भाजपा में टिकट के ज्यादातर दावेदार इस बार दिल्ली दौड़ लगाएंगे।