राज-काज/’मदिरा प्रदेश’ को लेकर ‘रार’ कितनी जायज

  • दिनेश निगम त्यागी

‘मदिरा प्रदेश’ को लेकर ‘रार’ कितनी जायज
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के बीच दो मुद्दों को लेकर जुबानी जंग तेज है। पहला, एक दूसरे से पूछे जा रहे सवाल हैं और दूसरा, ‘मदिरा प्रदेश’ को लेकर छिड़ी रार है। घोषणा पत्र में किए वादों को लेकर सवाल पूछना सामान्य बात है लेकिन ‘मदिरा प्रदेश’ के मसले पर दोनों दल कटघरे में हैं। राज्य सरकार ने जैसे ही अपनी नई आबकारी नीति घोषित की, कमलनाथ ने आरोप जड़ दिया कि प्रदेश की भाजपा सरकार मप्र को ‘मदिरा प्रदेश’ बनाने में तुली है। भाजपा जिस तरह मुद्दों को लपकती है, मुख्यमंत्री शिवराज ने यही किया। उन्होंने आरोप लगाया कि कमलनाथ ‘मदिरा प्रदेश’ कह कर मप्र को बदनाम कर रहे हैं। जवाब में कमलनाथ ने शिवराज को उस समय के अभियान की याद दिला दी जब प्रदेश में कमलनाथ सरकार थी और शिवराज ने खुद कांग्रेस सरकार पर मप्र को ‘मदिरा प्रदेश’ बनाने का आरोप लगाया था। उन्होंने इसके लिए एक वाट्सएप नंबर जारी कर अभियान चलाया था। साफ है कि विपक्ष में रहने के दौरान दोनों नेताओं का रुख एक जैसा था। प्रदेश के आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में सुरा प्रेमी लगतार बढ़ रहे हैं। प्रदेश में 26 फीसदी महिलाएं भी शराब पीने लगी हैं। कॉश! ये दल एक दूसरे पर आरोप लगाने की बजाय सुरा पान को हतोत्साहित करने की दिशा में ध्यान देते।

घात-प्रतिघात में सलूजा पर भारी पड़ते बबेले
प्रदेश की राजनीति में जैसा घात-प्रतिघात मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के बीच चल रहा है, इससे कहीं ज्यादा मजा लोगों को कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए प्रवक्ता नरेंद्र सलूजा और कमलनाथ के मीडिया सलाहकार पीयूष बबेले के बीच के ट्वीट को पढ़ कर आ रहा है। प्रारंभ में लगा था कि कमलनाथ के लिए सलूजा की कमी शायद पूरी न हो पाए, लेकिन बबेले ने जिस कुशलता से मोर्चा संभाला, इस तरह के सारे भ्रम टूट गए। दोनों के ट्वीट देखकर लगता है कि बबेले, सलूजा की तुलना में किसी भी दृष्टि से कमतर नहीं, बल्कि उन पर भारी पड़ रहे हैं। संभवत: इसकी वजह यह भी है कि बबेले का अनुभव ज्यादा है और वे अच्छे पत्रकार रहे हैं। हालांकि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि राजनीतिक दल बदलने के बाद भी सलूजा का अंदाज नहीं बदला। वे भाजपा में सेट हो गए हैं। कमलनाथ के लिए वे जैसा काम कर रहे थे, लगभग वैसी ही भूमिका भाजपा के पक्ष में निभा रहे हैं। इस लिहाज से भाजपा में जो कमी थी, सलूजा के आने से उसकी पूर्ति हो गई है। पहले वे जैसे तंज भाजपा पर कसते थे, अब कांग्रेस पर कस रहे हैं। आरोप-प्रत्यारोप के सिलसिले में भाजपा- कांग्रेस अब बराबरी पर हैं। बबेले और सलूजा के सामने दोनों पार्टियों के शेष प्रवक्ता फीके दिख रहे हैं।

मुखिया जैसा बड़प्पन दिखा सकते थे कमलनाथ
एआईसीसी डेलीगेट्स की सूची जारी होने के बाद प्रदेश कांग्रेस के अंदर असंतोष देखने को मिल रहा है। नाराजगी इतनी कि कुछ नेता विरोध दर्ज कराने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के बंगले पहुंच गए। यह बात अलग है कि नेताओं की कमलनाथ से मुलाकात नहीं को सकी। यह सच है कि ऐसे मसलों में पूरी पार्टी को संतुष्ट नहीं किया जा सकता, लेकिन पार्टी के मुखिया के नाते कमलनाथ बड़प्पन दिखा कर असंतोष कुछ कम कर सकते थे। पहले तो सूची में भाई भतीजावाद और परिवादवाद की झलक दिखना नहीं चाहिए थी। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस इसी से उबरने की कोशिश कर रही है। फिर भी इस सूची में परिवारवाद को बढ़ावा देते हुए एक परिवार के दिग्विजय सिंह, भाई लक्ष्मण सिंह और बेटे जयवर्धन सिंह, कमलनाथ और उनके बेटे नकुलनाथ के साथ कांतिलाल भूरिया और उनके बेटे विक्रांत भूरिया को शामिल कर लिया लेकिन अरुण यादव के साथ उनके भाई सचिन यादव को सूची में जगह नहीं मिली। सीधा मैसेज गया कि अरुण की कमलनाथ के साथ पटरी नहीं बैठती, इस कारण जानबूझ कर उनका पत्ता काटा गया। इसी प्रकार मानक अग्रवाल और राजकुमार पटेल जैसे वरिष्ठ नेता लगातार एआईसीसी डेलीगेट्स रहे हैं, व्यक्तिगत पसंद-नापसंद के कारण इन्हें भी नजरअंदाज नहीं किया जाना था। दोनों पार्टी में प्रदेश पदाधिकारी भी हैं।

दिग्विजय के भाई लक्ष्मण ने खड़ी की मुसीबत
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह एवं उनके अनुज विधायक लक्ष्मण सिंह कई मसलों पर खरी-खरी कहने के लिए जाने जाते हैं। उनका यह रुख कई बार कांग्रेस के लिए मुसीबत का कारण बन जाता है। कांग्रेस के अधिवेशन से पहले जारी हुई एआईसीसी डेलीगेट्स की सूची में भाई-भतीजावाद और अपनों को ही ध्यान रखते की शिकायतें तो थी हीं, लक्ष्मण सिंह ने आदिवासी वर्ग की उपेक्षा का मुद्दा अलग ढंग से उठा दिया। उन्होंने कहा कि सूची में आदिवासी नेता कम हंै। मैं चाहता हूं कि मेरे स्थान पर कांग्रेस विधायक डॉ हीरालाल अलावा को कांग्रेस अधिवेशन में ले जाया जाए। लक्ष्मण ने कहा हीरालाल बड़े आदिवासी नेता हैं। इस बयान ने विरोधियों को कांग्रेस को घेरने का एक और मौका दे दिया। मजेदार बात यह है कि कांग्रेस नेतृत्व ने लक्ष्मण की बात को तवज्जो दी और कांग्रेस आलाकमान की ओर से हीरालाल अलावा को कांग्रेस अधिवेशन में शामिल होने के लिए आमंत्रण आ गया। इस तरह जितना विरोधियों के कारण आदिवासी वर्ग की उपेक्षा का मुद्दा तूल नहीं पकड़ा था, उतना लक्ष्मण के ट्वीट से उछल गया।

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