- प्रणव बजाज
फिर बदले-बदले नजर आए श्रीमंत
ग्वालिय -चंबल तो ठीक प्रदेश की राजनीति में एक समय भाजपा के हिन्दुवादी नेता जयभान सिंह पवैया को महल का सबसे बड़ा विरोधी नेता माना जाता था , लेकिन करीब दो साल पहले श्रीमंत भाजपा में आए तो भी पवैया के मन में जारी कटुता समाप्त नहीं हुई थी , जिसकी वजह से उनके द्वारा श्रीमंत के भाजपा में प्रवेश का विरोध सार्वजनिक रुप से किया जाता रहा है। इसकी वजह से पार्टी के नेताओं तक को हस्तक्षेप करना पड़ गया था। अब समय के साथ दोनों नेताओं के बीच रिश्ते सुधरते दिख रहे हैं। कई मौकों पर दोनों ही नेताओं को एक साथ देखा गया हैं। अब ताजा मामला चुनावी मीडिया सेंटर के उद्घाटन का है। इसमें बतौर मुख्यअतिथी श्रीमंत मौजूद थे , लेकिन अपनी तरफ से पहले करते हुए कार्यक्रम में मौजूद श्रीमंत ने पवैया का न केवल हाथ पकड़ा बल्कि उनसे दीपक भी जलवाया। इसके बाद दोनों नेताओं ने एक दूसरे की तारीफ भी की। वैसे भी श्रीमंत भाजपा में आने के बाद पूरी तरह से बदले हुए नजर आने लगे हैं।
मानसून सत्र की अवधि तीन सप्ताह करने की मांग
मप्र विधानसभा का मानसून सत्र 25 जुलाई से शुरू होगा। पांच दिवसीय सत्र 29 जुलाई तक चलेगा। विधानसभा सचिवालय ने मंगलवार को इस संबंध में अधिसूचना जारी कर दी है। मप्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के इस निर्णय का विरोध करते हुए कहा कि विधानसभा का मानसून सत्र कम से कम तीन सप्ताह का रखा जाए, ताकि मानसून सत्र में जनहित के मुद्दों पर चर्चा की जा सके। उन्होंने विधानसभा का मानसून सत्र महज पांच दिन रखे जाने पर आपत्ति व्यक्त करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री ने तानाशाही रवैया अपनाते हुए विपक्ष और जनता की आवाज को दबाने का काम किया है। डॉ. सिंह ने कहा कि पूर्व में भी मुख्यमंत्री को एक पत्र भेजकर विधानसभा के मानसून सत्र की तिथि पंचायत एवं नगरीय निकाय चुनाव प्रक्रिया संपन्न होने के बाद निर्धारित किए जाने एवं सत्र की बैठक कम से कम 20 दिवस रखे जाने की मांग की गई थी, ताकि प्रदेश की जन समस्याओं एवं ज्वलंत मुद्दों पर विस्तृत चर्चा सदन में हो सके। डॉ. सिंह ने मुख्यमंत्री से मांग की है कि सत्र की अवधि बढ़ाई जाए। यदि अवधि नहीं बढ़ाई जाती है, तो कांग्रेस मुख्यमंत्री के इस तानाशाही रवैये का पुरजोर विरोध करेगी।
तबादलों की शिकायतों से परेशान चुनाव आयोग
प्रदेश में हो रहे त्रिस्तरीय पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव को लेकर अभ्यर्थियों की ओर से शिकवा – शिकायतों का सिलसिला जारी है। पंचायत और निकाय चुनाव की घोषणा से लेकर अब तक प्रदेश भर से राज्य निर्वाचन आयोग के पास 1042 शिकायतें पहुंची हैं। इनमें आधी से अधिक यानी कि 550 शिकायतें कर्मचारियों के ट्रांसफर से संबंधित हैं। इन शिकायतों में कहा गया है कि कई कर्मचारी वर्षों से एक स्थान पर पदस्थ हैं। राज्य निर्वाचन आयोग के निर्देशों के बाद भी इनका तबादला नहीं किया जा रहा है। ये कर्मचारी चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं, इसलिए इनका तत्काल अन्यत्र तबादला किया जाए। इसके अलावा गलत तरीके से नामांकन निरस्त किए जाने, शराब की अवैध बिक्री आदि की शिकायतें राज्य निर्वाचन आयोग के पास पहुंची हैं। आयोग ने संबंधित विभागों और जिलों को शिकायतें भेजकर जांच करने के बाद प्रतिवेदन भेजने को कहा है। करीब 100 शिकायतों की जांच के बाद आयोग को प्रतिवेदन भेजे जा चुके हैं। कर्मचारियों के ट्रांसफर संबंधी शिकायतों को लेकर उन्हें चुनाव होने तक दूसरी जगह अटैच करने की बात कही गई है।
रावतपुरा की मर्जी पड़ सकती है कांग्रेस को भारी
टीकमगढ़ जिले के रावतपुरा सरकार को वैसे तो भाजपा समर्थक संत के रुप में जाना जाता है। उनका भाजपा नेताओं पर अपना प्रभाव भी हैं, लेकिन उनके द्वारा अपने एक परिजन को कांग्रेस की सूची जारी होने के बाद भी टिकट दिलाना कांगे्रस में भी प्रभाव को दर्शाता है। पार्टी के जिला उपाध्यक्ष अनिल बड़कुल को प्रत्याशी बनाया गया था, लेकिन बीते रोज रावतपुरा सरकार ने अपने भाई को बड़कुल की जगह प्रत्याशी बनाने के लिए फोन किया और प्रत्याशी बदल दिया गया। इसके बाद से शहर की बहुसंख्यक जैन आबादी के साथ ही पूर्व मंत्री यादवेन्द्र सिंह भी नाराज हो गए हैं। दरअसल बड़कुल को यादवेन्द्र की पसंद के चलते ही प्रत्याशी बनाया गया था और उन्हें नगर पालिका अध्यक्ष का बेहद मजबूत दावेदार भी माना जा रहा था। इसकी वजह से अब पार्टी को बड़ा नुकसान होने का अनुमान लगाया जा रहा है।