बा खबर असरदार/रिटायर्ड अफसर के कमरे पर नजर

  • हरीश फतेह चंदानी
रिटायर्ड अफसर

रिटायर्ड अफसर के कमरे पर नजर
राज्य मंत्रालय में कुछ विभागों के कुछ कमरे लगभग फिक्स हैं। यानी जब उक्त कमरे में बैठने वाले अफसर का तबादला होता है तो उसकी जगह जो आता है, वह उसी कमरे में बैठता है। लेकिन एक प्रमुख विभाग के अपर मुख्य सचिव अपने लिए तय कमरे में बैठने की बजाय दूसरे कमरे में बैठ रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि साहब की नजर हाल ही में रिटायर हुए 1988 बैच के एक आईएएस अधिकारी के उस कमरे पर है, जिसमें वे बैठते थे। इस कारण साहब के लिए जो कक्ष आवंटित है, उसमें ताला लगा हुआ है। जब साहब से मिलने कोई पहुंचता है तो पता चलता है, साहब अब इस कक्ष में नहीं बल्कि दूसरे कक्ष में बैठ रहे हैं। जब इस बारे में पड़ताल की गई तो पता चला कि 1989 बैच के ये साहब अपने ही राज्य के उस अफसर के कक्ष पर नजर गड़ाए हुए हैं, जो हाल ही में रिटायर हुए हैं। यहां बता दें कि ये दोनों अफसर एक ही राज्य के हैं।

गजब मैनेजमेंट है साहब का
कहा जाता है कि उम्र के साथ लोगों को साधने का भी अनुभव आ जाता है। शायद यही वजह है कि 2013 बैच के एक आईएएस अधिकारी मैनेजमेंट में इस कदर पारंगत हो गए हैं कि हर कोई उनके मैनेजमेंट को दाद देता है। पूर्व में विंध्य क्षेत्र के एक जिले की कलेक्टरी करने वाले साहब इन दिनों राजधानी के पड़ोस के एक जिले में कलेक्टर हैं। प्रदेश में जब कांग्रेस की सरकार थी तो साहब कांग्रेसियों के प्रिय पात्र थे और अब भाजपाइयों के। स्थिति यह है कि उन्होंने कांग्रेस के एक विधायक का तो फोन उठाना ही बंद कर दिया है। परेशान विधायक मुख्यमंत्री के सामने यह कहकर अपना दुखड़ा रो चुके हैं कि मैं उन्हें निजी काम से नहीं जनता से जुड़े मुद्दों के लिए कॉल करता हूं। अब साहब राजधानी के पड़ोस के जिले में हैं और सरकार के चहेते बने हुए हैं। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि विगत दिनों जब जिले में एक बड़ा हंगामा हुआ था और सत्तारूढ़ दल के नेता आपस में उलझ गए थे, तब भी साहब का बाल बांका नहीं हो सका।  

कहां से आ रहे पत्र
संस्कारधानी में इन दिनों फर्जी पत्रों का मामला गमार्या हुआ है। दरअसल, यहां के जवाहरलाल नेहरु कृषि विश्वविद्यालय के प्रशासनिक पत्रों की प्रमाणिकता पर संदेह खड़ा हो गया है। एक-एक कर सामने आ रहे फर्जी प्रशासनिक पत्रों ने विश्वविद्यालय से लेकर कृषि विभाग तक हड़कंप मचा दिया है। हाल ही में विश्वविद्यालय की बोर्ड बैठक को लेकर कृषि विभाग के अपर मुख्य सचिव अजीत केसरी का फर्जी पत्र जारी हुआ। इस पत्र के आधार पर विवि प्रशासन ने भोपाल में बोर्ड की बैठक कर ली। बैठक में प्रदेशभर से बोर्ड के सदस्य, विवि के कुलपति और कुलसचिव शामिल हुए, लेकिन किसी को इस पत्र के फर्जीवाड़े की भनक तक नहीं लगी। भोपाल में बोर्ड बैठक कराने जारी किए गण् फर्जी पत्र की हकीकत उस वक्त सामने आई, जब विवि के कुलसचिव ने बैठक के कुछ दिन बाद कृषि विभाग के अपर मुख्य सचिव अजीत केसरी से बोर्ड बैठक के मिनट्स को लेकर चर्चा की । गौरतलब है कि पूर्व में वेतनवृद्धि के लिए सांसद का फर्जी पत्र भी विवि में आ चुका है।

ठाकुर साहब को याद आया धर्म
प्रदेश की राजनीति में कद्दावर हैसियत रखने वाले ग्वालियर-चंबल अंचल के वरिष्ठ नेता डॉ. गोविंद सिंह धर्म के रंग में रंगे नजर आ रहे हैं। अभी तक धर्म की राजनीति से दूर रहने वाले नेताजी बड़े-बड़े साधु-संतों से पंगा लेने के लिए सुर्खियों में रहते थे। लेकिन अब वे अपने क्षेत्र में भागवत कथा कराने जा रहे हैं। ऐसे में प्रदेश की राजनीतिक वीथिका में यह चर्चा जोरों पर है कि आखिर नेताजी को धर्म की याद कैसे आ गई। यहां बता दें कि उक्त नेता ठाठ, बाट और जाति से ठाकुर हैं। उनकी ठाकुर शाही का क्षेत्रीय राजनीति में जमकर डंका बजता है। लेकिन उम्र के 70 वसंत पार कर चुके ठाकुर साहब शायद अब धार्मिक हो गए हैं। वहीं उनके करीबियों का कहना है कि वक्त के साथ राजनीति में आए बदलाव के कारण उन्होंने भागवत कथा का सहारा लिया है। अब तक उन्होंने चुनावी राजनीति में कभी भी धर्म या कर्मकांड का सहारा नहीं लिया है, लेकिन इस बार अपने पुश्तैनी आयोजन को ढाल बनाया है। और अपने विधानसभा क्षेत्र में भागवत कथा करा रहे हैं।

दो अफसरों की यारी चर्चा में
प्रदेश की प्रशासनिक वीथिका में इन दिनों एक आईएएस और एक आईपीएस अफसर की यारी चर्चा में है। आईएएस 2011 बैच के प्रमोटी अफसर हैं, वहीं आईपीएस 2012 बैच के हैं। ये दोनों साहब एक ही जिले में पदस्थ हैं। एक साहब जिले के कलेक्टर हैं तो दूसरे एसपी। मालवा के एक जिले में पदस्थ इन अफसरों के बारे में कहा जाता है कि दिनभर अपने-अपने काम की वजह से ये भले ही अलग-अलग रहते हों, लेकिन शाम ढलते ही दोनों की यारी परवान चढ़ने लगती है। अक्सर दोनों अफसरों की पार्टी एसपी साहब के बंगले पर ही सजती है। इसकी वजह यह है कि एसपी साहब अकेले रहते हैं। वहीं कलेक्टर साहब का भरा-पूरा परिवार है। लेकिन खाने-पीने के शौकीन दोनों अफसर लगभग हर शाम हम प्याला और हम निवाला होने का मौका नहीं चूकते हैं। सूत्रों का कहना है कि अकेले होने के कारण एसपी साहब को रोकने और टोकने वाला तो कोई है नहीं, लेकिन कलेक्टर साहब को रोजाना प्रशासनिक बैठकों या कार्यों का बहाना बनाकर घर से निकलना पड़ता है। अब साहब के परिजनों को इस बात की जानकारी है कि नहीं यह तो हम नहीं जानते, लेकिन इसकी चर्चा राजधानी में जरूर हो रही है।

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