
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। भोपाल। प्रदेश में सरकार के तमाम दावों और उपायों के बाद भी अफसर अपनी मनमानी करने से बाज नहीं आते हैं। अगर बात स्कूल शिक्षा विभाग की हो तो फिर बाताअलग ही हो जाती है। इस विभाग के अफसर चाहते हैं कि उनकी चहेती फर्म को स्कूलों के प्राचार्य उपकृत करें। यही वजह है कि प्राचार्यों पर विभाग के अफसर उनकी पंसदीदा फर्म से ही टेबलेट की खरीदी करने का लगातार दबाब बना रहे हैं।
दरअसल प्रदेश में सवा पच्चीस करोड़ से अधिक कीमत के 16895 टेबलेट खरीदे जाना हैं। इनकी खरीदी के लिए स्कूलों को बजट दिया जा चुका है। इसके बाद से ही बकायदा डीईओ आफिस से प्राचार्यों के पास फोन आना शुरू हो गए हैं कि वे संबंधित फर्म से ही इनकी खरीदी करें। इसकी वजह से अब प्राचार्य परेशान बने हुए हैं कि वे इनकी खरीदी तय नियमों के अनुसार खरीदें या फिर अफसरों की पसंद वाली फर्म से। इन टेबलेट के लिए विभाग द्वारा प्रति नग 15 हजार रुपए की कीमत तय की है। इसके अनुसार प्रदेश में 25 करोड़ 34 लाख 25 हजार रुपए की लागत से इन्हें खरीदा जाना है। दरअसल प्रदेश में करीब पौने आठ हजार स्कूलों में इन्हें खरीदा जाना है। जानकारी के अनुसार समग्र शिक्षा अभियान के अंतर्गत कोविड की परिस्थितियों को देखते हुए इन टेबलेट की खरीदी की जा रही है, जिससे की कोविड या फिर उस जैसे हालात में बच्चों की पढ़ाई प्रभावित न हो इसके लिए आॅनलाइन पढ़ाई कराई जा सके। आयुक्त लोक शिक्षण अभय वर्मा द्वारा इस संबध में जारी किए गए आदेश में कहा गया है कि टेबलेट की खरीदी स्कूल प्रबंधन समिति द्वारा की जाएगी। इसके लिए दस हजार रुपए की राशि राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान की मद व शेष राशि स्कूल मद से खर्च की जानी है। इसके बाद भी लेकिन अब स्कूलों के प्राचार्य पर विशेष फर्म के लोग दबाव बनाने पहुंच गए है। यह फर्म स्कूलों में जाकर प्राचार्यों से कह रही है कि ऊपर से आदेश है कि हमसे ही टेबलेट की खरीदी करनी है। इसके लिए हर जिले में बकायदा फोन भी किए जा रहे हैं। इन फोन की वजह से प्राचार्य हैरान परेशान हैं।
जिला स्तर से करवाए जा रहे फोन
दरअसल जिला शिक्षा अधिकारी प्राचार्यों के पास विशेष फार्म से खरीदी के लिए सिफारिश कर रहे हैं। इसके अलावा दिखावे के लिए एक पत्र भी भेजा गया है कि जरूरी नहीं है कि संबंधित फर्म से टेबलेट की खरीदी की जाए, बल्कि अन्य जगहों से भी खरीदी की जा सकती है। लेकिन अधिकारियों के फोन के बाद दबाव में प्राचार्य विशेष फर्म को ही खरीदी के लिए आर्डर देने को मजबूर बने हुए हैं।
पहले भी अनेकों बार सामने आ चुके हैं घोटाले
खास बात यह है कि बीते कई सालों में स्कूल शिक्षा विभाग में अनेक बार कंप्यूटर, लैपटॉप के मामलों में घोटाले के प्रकरण सामने आ चुके हैं। इस तरह के मामलों को विभाग के अफसर ठंडे बस्तों में डाल देते हैं , जिसकी वजह से यह काम लगातार जारी रहता है। इसके पहले हेड स्टार्ट योजना, राज्य शिक्षा केंद्र में लैपटॉप वितरण जैसी कई योजना में अनियमितता के आरोप लगते रहे हैं।
भगवान भरोसे है लोक शिक्षण संचालनालय
इन दिनों स्कूल शिक्षा विभाग का कोई भी अफसर धरी धोनी नहीं हैं। इसकी वजह से यह विभाग भगवान भरोसे बना हुआ है। इसकी वजह है प्रमुख सचिव स्कूल शिक्षा का छुट्टी पर होना। उनके बाद के अफसरों में आयुक्त लोक शिक्षण अभय वर्मा व अपर परियोजना संचालक मनीषा सेतिया दूसरे राज्यों में चुनाव की ड्यूटी पर हैं। इसके बाद भी इन अफसरों द्वारा कामकाज के लिए किसी अन्य अधीनस्थ अफसरों को चार्ज तक नहीं दिया गया है। इससे यह तो तय है कि विभाग में अफसरशाही की अराजकता की स्थिति बनी हुई है।