
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मध्य प्रदेश के पास भले ही टाइगर स्टेट का दर्जा हो , लेकिन बाघों का कॉरिडोर एक भी नहीं है। यह स्थिति तब है जबकि प्रदेश में लगभग एक दर्जन ऐसे टाइगर रिजर्व हैं जिनमें बाघ कॉरिडोर बनाया जा सकता है।
दरअसल मप्र ऐसा राज्य है जहां पर इन दिनों सात सौ अधिक बाघ मौजूद हैं। यह संख्या तो वह है तो गणना के पहले चरण में सामने आयी है। बाघों की संख्या इससे अधिक होने की संभावना है। फिलहाल प्रदेश के वनों में इतने ही बाघों के रहने की क्षमता है। अब बाघों की संख्या बढ़ना तय है , ऐसे में अब प्रदेश में मौजूद टाइगर रिजर्व के बीच कॉरिडोर बनाए जाने की जरूरत मानी जा रही है। माना जा रहा है कि अगर अब प्रदेश में विभिन्न टाइगर रिजर्व के बीच यदि कारिडोर विकसित नहीं किए गए तो आने वाले समय में बाघों के बीच संघर्ष तो होगा ही साथ ही वे आबादी वाले इलाकों में भी निकल सकते हैं, जिसकी वजह से उनकी मौत का आंकड़ा भी बढ़ सकता है। दरअसल कॉरीडोर की कवायद अभी से शुरू करने पर उसके विकसित होने में करीब डेढ़ दशक का समय लग सकता है। इसकी वजह है कारिडोर विकसित करने के लिए तमाम टाइगर रिजर्व को आपस में जोड़ने वाले रास्तों के खेतों व मैदानों में जंगल विकसित करना होगा। अगर सरकार अभी से इस मामले में नहीं चेती तो आने वाले समय में टाइगरों को बचाना मुश्किल हो जाएगा। इसकी वजह है अब तक प्रदेश में ऐसा कोई कॉरिडोर ही नहीं है, जो बगैर मानवीय दखल के एक से दूसरे संरक्षित क्षेत्र को जोड़ता हो। यही वजह है कि प्रदेश में अन्य राज्यों की तुलना में सर्वाधिक बाघों की मौत होती है। अगर हाल ही में समाप्त साल की बात की जाए तो प्रदेश में 46 बाघों की मौत हुई थी। तीन साल पहले वर्ष 2018 के बाघ आंकलन में मध्य प्रदेश में 526 बाघ मिले थे। इसके बाद भी मप्र को बाघों के रहवास के लिए उनकी मौतों की वजह से अच्छा नहीं माना जाता है। बाघों की संख्या बढ़ना प्रदेश के गौरव और पर्यटन के लिहाज से बहुत अच्छा माना जाता है , लेकिन इसके बाद भी उनके रहवास स्थानों में वृद्वि न होने की वजह से सरकार के प्रयासों पर सवाल खड़ा होता है।
प्रदेश में बन सकते हैं 11 कारिडोर
वन विभाग और वन विशेषज्ञों के मुताबिक प्रदेश में 11 कारीडोर बनाए जा सकते हैं। इनमें कान्हा से पेंच टाइगर रिजर्व, पेंच से सतपुड़ा टाइगर रिजर्व,सतपुड़ा से मेलघाट (महाराष्ट्र) टाइगर रिजर्व, बांधवगढ़ से संजय दुबरी (सीधी) टाइगर रिजर्व, पन्ना टाइगर रिजर्व से रातापानी अभयारण्य, संजय दुबरी से घासीदार होते हुए झारखंड का पलामू पार्क, पन्ना टाइगर रिजर्व से रानीपुर (उत्तर प्रदेश) नेशनल पार्क,रातापानी से ओंकारेश्वर अभयारण्य,पन्ना से माधव टाइगर रिजर्व शिवपुरी,माधव टाइगर रिजर्व से कूनो पालपुर नेशनल पार्क श्योपुर और कूनो पालपुर से रणथंभौर (राजस्थान) टाइगर रिजर्व के बीच कारीडोर बन सकते हैं।
क्षमता से दो गुने तक रह रहे बाघ
अगर सरकारी आंकड़ों को देखें तो अभी प्रदेश के संरक्षित क्षेत्रों में क्षमता से डेढ़ से दो गुना तक बाघ रहने को मजबूर हैं। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व की क्षमता 75 बाघ की है, पर यहां 124 बाघ (2018 की गणना के आधार पर ) हैं। इसी तरह से कान्हा टाइगर रिजर्व की क्षमता 70 के मुकाबले यहां 108 बाघ हैं। यही स्थिति पेंच की भी बनी हुई है। यहां पर 82 और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में 50 बाघ हैं। प्रदेश में एक मात्र संजय दुबरी टाइगर रिजर्व सीधी ही ऐसा है, जहां महज आधा दर्जन ही बाघ हैं। प्रदेश में बढ़ते बाघों की वजह है पीछे बीते चार सालों में पैदा हुए शावक। पिछली गणना के समय जो शावक छह से 11 माह के थे। वे इस बार की गणना में शामिल हो गए हैं। इन चार सालों में करीब डेढ़ सौ शावक पैदा हुए हैं। हालांकि वन विभाग का दावा है कि प्रदेश में मौजूदा जंगलों में अभी करीब दो सैकड़ा बाघों के रहने की क्षमता बची हुई है। विभाग का कहना है कि प्रदेश में कारिडोर पर काम शुरू कर दिया गया है।