
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। राजधानी में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू हुए एक महीने से ज्यादा का वक्त हो गया है, लेकिन व्यवस्था में तार्किक बदलाव नहीं आया है। इसका भान पुलिस अफसरों को भी है। इसीलिए वे भोपाल में बड़े बदलाव करने जा रहे हैं। ताकि लोगों को कानून-व्यवस्था का एहसास हो सके। इसके लिए अब व्यवस्था में नीचे तक बदलाव लाने की कोशिशें तेज हो गई हैं। नई व्यवस्था में सामूहिक नहीं, सबकी अलग-अलग जिम्मेदारी तय होगी। सिपाही तक को बीट का प्रभारी बनाया जाएगा। मोबाइल और वायरलेस सेट के जरिए आला अफसर अपने बीट प्रभारी के सीधे संपर्क में रहेंगे। जुआ-सट्टा और अवैध शराब पर अंकुश लगाने के लिए बीट व्यवस्था को प्रभावी बनाया जाएगा। अपराधियों पर अंकुश लगाने के लिए बाउंड ओवर और जिला बदर की कार्रवाई में तेजी आएगी। सबकुछ ठीक-ठाक रहा, तो यह व्यवस्था जल्दी लागू हो जाएगी। व्यवस्था में बदलाव के तहत पहला काम सिपाही तक की जिम्मेदारी तय करने का है। अब सिपाही को भी बीट का प्रभारी बनाया जाएगा। अभी बीट प्रभारी एसआई अथवा एएसआई होते हैं। आधा दर्जन सिपाही और हवलदार बीट में उनके नीचे काम करते हैं। बीट का क्षेत्र बड़ा होता है। एक बीट प्रभारी के अधीन दो-तीन वार्ड आते हैं। ग्रामीण इलाके में दस से अधिक गांव एक बीट प्रभारी के अधीन होते हैं। अब बीट का क्षेत्रफल छोटा होगा। सबकी बीट अलग-अलग होगी। पूरे वार्ड की जगह कालोनियों को बीट बनाया जाएगा। देहात में भी एक पुलिसकर्मी को एक से तीन गांव ही दिए जाएंगे। उसकी बीट में क्या अच्छा और बुरा हो रहा है, पूरी जिम्मेदारी उसकी होगी।
उज्जैन फार्मूले को लागू करने की कवायद
अभी बीट में एक घटना होने पर एसआई से लेकर सिपाही तक यानी पांच से आठ पुलिसकर्मी निलंबित हो जाते हैं। छोटी बीट बनाने का फायदा यह होगा कि पुलिसकर्मी लोगों के नियमित संपर्क में रहेंगे। उनका सूचना तंत्र मजबूत रहेगा। जिम्मेदारी उनकी होगी, लिहाजा जुआ-सट्टा और अवैध शराब पर भी नियंत्रण लगेगा। जिस पुलिसकर्मी की बीट में किसी दूसरे थाने अथवा क्राइम ब्रांच की टीम कार्रवाई करती है, तो इसके लिए बीट प्रभारी जिम्मेदार होगा और उस पर कार्रवाई होगी। उज्जैन में एसपी रहते हुए सचिन अतुलकर (अब एडीशनल पुलिस कमिश्नर भोपाल) ने इसे लागू किया था और यह सिस्टम प्रभावी था। वे कहते हैं, सिपाही-हवलदार थाना प्रभारी तक की मना कर देते थे कि हम अपने इलाके में अवैध गतिविधियां नहीं चलने देंगे, क्योंकि सजा मुझे मिलनी है। तय यह भी किया गया है कि अधिकारी बीट प्रभारी के सीधे संपर्क में रहेंगे।
मैदान में पुलिसकर्मियों की उपस्थिति दिखेगी
अब मैदान में पुलिसकर्मियों को सक्रिय रखने की कोशिश की जा रही है। अभी वारंट तामीली और मुल्जिम पेशी के नाम पर पुलिसकर्मी पूरा दिन गुजार देते हैं। अब वारंट तामीली के लिए जाने से पहले उन्हें बताना होगा कि किसे पकड़ने के लिए कहां जा रहे हैं। अदालत में मुल्जिम को पेश किया, तो पेशी से कब छूटे हैं। अगर ढाई बजे पेशी हो गई, तो तीन बजे तक थाने पहुंचना होगा। घटना का मौका मुआयना करने और मुल्जिम को मेडिकल कराने के लिए ले जाने पर भी यही फार्मूला लागू होगा। बीट में रहने के दौरान बताना होगा, ताकि अफसर जरूरत पर उन्हें चेक कर पाएं। पांच स्थानों के अलावा पुलिसकर्मियों को थाने में रहना होगा। चेकिंग में नहीं पाए गए, तो कार्रवाई होगी। थाने में रखने की व्यवस्था इसलिए बनाई जा रही है, ताकि कानून व्यवस्था की स्थिति निर्मित होने पर उन्हें तत्काल मौके पर भेजा जा सके। इसे सख्ती से लागू किया जाएगा। तीसरा काम अपराधियों पर अंकुश लगाने का है। इसके लिए जिला बदर और बाउंड ओवर कराने की कार्रवाई में तेजी लाई जाएगी। बाउंड ओवर कराने की कार्रवाई छह माह से दो साल की होती है। बाउंड ओवर के बाद अपराधी वारदात करता है, तो दोनों की सजा अलग-अलग होगी। दो साल के लिए बाउंड ओवर कराने पर अगर वह चार महीने बाद अपराध करता है, तो बचे हुए एक साल आठ महीने उसे जेल में गुजारने होंगे। अपराध की धारा की सजा अलग होगी। यानी बाउंड ओवर रहने के दौरान अपराध करने पर दोहरी सजा मिलेगी।