
भोपाल/राघवेंद्र सिंह/बिच्छू डॉट कॉम। कोरोनाकाल फिर चरम पर आ रहा है। ऐसे में बेमौसम बारिश- ओले के साथ हाड़ कंपा देने वाले जाड़े ने सबको हिला कर रख दिया है। बर्बाद फसलों को देख रोने वाले किसानों के आंसू पोंछने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान निकले। उन्होंने बिलखते हुए किसानों को गले लगाया, ढांढस बंधाया और विश्वास दिलाया कि सरकार उनकी मदद में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। मुख्यमंत्री गांव गरीब का दुख समझते हैं, इसलिए जब भी कोरोना के कहर से लेकर कोई प्राकृतिक आपदा आती है तो वे जनता के बीच पहुंच जाते हैं। लेकिन देश की सबसे बड़ी प्रतियोगी परीक्षा संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) से आईएएस कलेक्टर – कमिश्नर बनने वाले पब्लिक सर्वेंट सीएम के जनता के बीच जाने के पहले और उसके बाद अपने चेम्बर से निकलना कम ही पसंद करते हैं। वरना पिछले दिनों राजगढ़ की एक सभा में सीएम शिवराज सिंह को मंच से ही जिला खाद्य आपूर्ति अधिकारी, खाद्य निरीक्षक आदि को माइक से सस्पेंड करने का ऐलान नहीं करना पड़ता। इस मौके पर वे कलेक्टर और कमिश्नर की भी खिंचाई करते हैं। उन्होंने मंच से कहा कि गरीबों का राशन चोरी करने वालों को छोड़ेंगे नहीं और उनकी जगह जेल में होनी चाहिए। इसके लिए वे एफआईआर दर्ज करने की बात भी कहते हैं। उन्होंने आम आदमी की नब्ज पर हाथ रखते हुए कलेक्टर-कमिश्नर से पूछा कि राशन बांटने में चोरी हो रही है तो इसकी निगरानी करना किसकी जिम्मेदारी है? सीएम शिवराज सिंह ने राशन वितरण में मिली गड़बड़ी की शिकायत के आधार पर दो अधिकारियों का निलंबन करते हुए कलेक्टर कमिश्नर की जो खिंचाई की उससे जनता से मिली तालियां बताती हैं कि नौकरशाही की मक्कारी समस्या की असली वजह है। असल में व्यवस्था गड़बड़ी और भ्रष्टाचार में डूबे अफसर इतने अहंकारी हो गए हैं (जो भले हैं उनसे माफी के साथ) कि मुख्यमंत्री को छोड़ किसी अन्य अर्थात विधायक और मंत्रियों को भी अहमियत नहीं देते। यही कारण है कि भाजपा और कैबिनेट की बैठकों से लेकर बाहर भी मंत्री विधायक और संगठन से जुड़े आला नेताओं द्वारा अफसरों की मनमानी के किस्से सुनाना राजनैतिक गलियारों में आम है। बहुत सामान्य सी बात है जब बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि हो रही है तो जाहिर है फसलों को नुकसान हुआ है लेकिन ढीट नौकरशाही मुख्यमंत्री के सड़क पर उतारने और निर्देश की प्रतीक्षा करती हुई नजर आती है। कई बार तो राहत राशि के मामले में सीएम के आदेश और निर्देश का उल्लंघन भी होते हुए देखा गया है।
एमपी में कोई दीपक रावत है…
जनता से जुड़े मामलों में उत्तराखंड के हरिद्वार कलेक्टर दीपक रावत की सक्रियता का जिक्र करना जरूरी है। वे गुड गवर्नेंस और जनता से जुड़ी समस्याओं के निराकरण के लिए खूब सक्रिय हैं। सोशल मीडिया में उनकी देशव्यापी लोकप्रियता के किस्से आम हैं। मध्य प्रदेश समेत अन्य राज्यों के नौकरशाहों के आगे यदि अहंकार आड़े न आए तो वे उनसे कुछ सीख सकते हैं। वैसे वे यूपीएससी की परीक्षा पास कर आईएएस अफसर बनते हैं तो उन्हें किसी से बुद्धि उधार लेने की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए। रावत राशन वितरण की दुकान का अचानक निरीक्षण करते हैं और गड़बड़ी पकड़कर दोषियों के खिलाफ कार्यवाही भी करते हैं। यात्री बसों के किराए में गड़बड़ी पकड़ने के लिए वे स्वयं बस स्टैंड पहुंच कर छापा मार कार्यवाही करते हैं। इस दौरान वे यात्रियों से बात करने के साथ बस संचालकों से भी चर्चा कर उन्हें गलती का अहसास कराते हैं और बेहिसाब किराया वसूलने में इस्तेमाल होने वाली बसों का संचालन भी रद्द कर देते हैं। इसी तरह एक सरकारी दफ्तर में रात को पहुंच कर उसकी सुरक्षा इंतजाम का भी जायजा लेते हैं। यहां उन्हें एक बुजुर्ग माली चौकीदारी करते हुए मिलता है। वे रात में ही अफसर से फोन पर बात कर अगले दिन से ही चौकीदारी कर रहे कर्मचारी के स्थान पर किसी होम गार्ड के जवान को तैनात करने का आदेश भी दे देते हैं। उनकी इस कार्य प्रणाली
से गड़बड़ी करने वालों में डर पैदा होता है और लोगों की मुश्किलें थोड़ी आसान होती हैं।
सीएम को चाहिए उनके जैसे मैदानी अफसर
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक ऐसे नेता हैं जो मंत्रालय में कम और मैदान में रहना ज्यादा पसंद करते हैं। जनता की समस्याओं को तुरंत दूर करने में उनकी दिलचस्पी अधिक रहती है। फील्ड में उनके साथ कदमताल करने वाले अफसर कम ही दिखते हैं। उनके ही कार्यकाल में चम्बल के जिले में कलेक्टर-एसपी ने नकल माफिया के खिलाफ सफल अभियान शुरू किया था। इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह भी कोरोना के कठिन दौर से लेकर सफाई अभियान में बेहतर काम कर रहे हैं। बड़े और महत्वपूर्ण जिलों में फील्ड मास्टर अफसरों की दरकार है जो सीएम की मंशा के मुताबिक काम कर सकें। हाल की बारिश और ओलावृष्टि की आपदा में जैसा सीएम चाहते हैं उतनी त्वरित गति से नुकसान के आंकलन और फिर राहत राशि के वितरण की जरूरत है क्योंकि मुख्यमंत्री तो हर गांव और जिले का दौरा नहीं कर सकते। देखना है राजगढ़ में सीएम के तीखे तेवरों से कलेक्टर- कमिश्नर फील्ड में कितने सक्रिय होते हैं। नहीं तो लोग पूछेंगे एमपी में कोई
दीपक रावत है….