
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। भले ही सरकार का खजाना खाली हो या फिर विभाग के पास पैसे की कमी, लेकिन इससे आला अफसरों को कोई फर्क नहीं पड़ता है, उन्हें तो अपनी चिंता होती है। खास बात यह है कि जिस अफसर को जितनी अधिक सरकारी सुविधाएं मिलती हैं, उसे उससे अधिक सुविधाओं की जरुरत रहती है। ऐसा ही मामला है प्रदेश के आईएफएस अफसरों का। ऐसे कई आईएफएस अफसर हैं जिन्हें विभाग से अर्दली रखने की पात्रता नहीं है, लेकिन फिर भी वे अर्दली के नाम पर भत्ता लेते रहे हैं। इसके लिए विभाग के अफसरों ने रास्ता भी खोज लिया है। खास बात यह है कि प्रदेश में अखिल भारतीय सेवाओं के पदस्थ आईएएस, आईपीएस एवं आईएफएस अफसरों को अर्दली भत्ते के भुगतान का नियम ही नहीं है।
वित्त विभाग की जानकारी के मुताबिक उक्त तीनों श्रेणियों के अधिकारियों को कलेक्टर रेट पर अर्दली भत्ता भुगतान के संबंध में कोई नियम नहीं हैं और न ही ऐसा कोई प्रस्ताव विचाराधीन है। लेकिन इसके बावजूद आईएफएस अधिकारियों को अर्दली भत्ते का भुगतान किया जा रहा है। प्राप्त अधिकृत जानकारी के अनुसार जिन आईएफएस अफसरों ने इस तरह का भत्ता लिया है उनमें सुरेन्द्र सिंह राजपूत, सत्यानंद, सीमा शुक्ला , पीके सिंह, आर श्रीनिवास मूर्ति (अब रिटायर्ड ), विश्रामा सागर ,जसवीर सिंह चौहान, धर्मेन्द्र वर्मा , सुरेश कुमार मण्डल, अनिल कुमार श्रीवास्तव, एचयू खान, पुरुषोत्तम धीमान, भागवत सिंह, अतुल श्रीवास्तव, विवेक जैन एवं अनिल कुमार खरे शामिल हैं। इनमें खरे द्वारा जनवरी 2020 से जून 2021 तक 7900 रुपये से लेकर 8700 रुपये प्रति अर्दली के हिसाब से भत्ता प्राप्त किया। इन सभी अधिकारियों ने वन विभाग के अंतर्गत कार्यरत एमपी ईको पर्यटन बोर्ड, राज्य लघु वनोपज संघ तथा राज्य जैव विविधता बोर्ड में पदस्थी के समय यह अर्दली भत्ता लिया है। जबकि वन विभाग से इस संबंध में कोई आदेश ही नहीं हैं। हालांकि विभाग के आला अफसरों का इसको लेकर तर्क है कि विभाग में पदस्थ रहने के समय अर्दली भत्ते का कोई नियम नही है, लेकिन वनोपज संघ सहकारिता एक्ट या इको व जैव बोई सोसायटी एक्ट के तहत बने हुये है। इनमें पदस्थापना के समय संचालक मंडल की स्वीकृति से अर्र्दली भत्ता लिया जा सकता है।