ओबीसी आरक्षण: अब भी प्रदेश में जारी है सियासी रार

ओबीसी आरक्षण

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण समाप्त होने के बाद अब सरकार द्वारा चुनाव निरस्त कराने के फैसले के बाद भी सियासी रार जारी है। अब यह पूरा मामला चुनाव आयोग से लेकर देश के विधि विशेषज्ञों के पाले में पहुंच चुका है। फिलहाल चुनाव पूरी तरह से निरस्त होना तय माना जा रहा है , लेकिन अभी तक इस मामले में चुनाव आयोग ने कोई फैसला नहीं किया है, जिसकी वजह से असमंजस की स्थिति बनी हुई है। हालात यह हैं कि अब भी भाजपा व कांग्रेस इस मामले में एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाने में पीछे नहीं रह रहे हैं। न्यायालय के आदेश के बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने ओबीसी के लिए आरक्षित पदों पर निर्वाचन रोक दिया था जिसके बाद तो सरकार ने कांग्रेस के मत्थे ठीकरा फोड़ना शुरू कर दिया। बीजेपी की तरफ से कहा जाने लगा कि कांग्रेस नहीं चाहती है कि ओबीसी को आरक्षण मिले। कांग्रेस की वजह से ही ओबीसी का हक मारा गया है। इसके बाद कांग्रेस ने कहा कि हमने रोटेशन प्रणाली पर सवाल उठाया था। ओबीसी आरक्षण के पक्ष में राज्य सरकार अपना पक्ष सही से नहीं रख पाई है। उधर इस मामले में अपनों के निशाने पर भी शिव सरकार आ गई थी। इसकी वजह से सरकार असहज हो गई थी।
सरकार के फैसले पर नगरीय विकास एवं आवास मंत्री भूपेंद्र सिंह का कहना है कि इस निर्णय के लिए कांग्रेस को तो भाजपा सरकार का अभिनंदन करना चाहिए। कांग्रेस तो ओबीसी वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के नाम पर केवल नौटंकी कर रही थी। भूपेंद्र सिंह ने कहा कि मुख्यमंत्री जी ने पंचायत चुनाव का आॅर्डिनेंस वापस लेने का बड़ा फैसला लिया है। उन्होंने ओबीसी वर्ग को पंचायत चुनाव में 27 प्रतिशत आरक्षण देने तथा इस वर्ग के हित के लिए एक तरह से अपनी सरकार को दांव पर लगा दिया। इससे बड़ा निर्णय और कोई हो ही नहीं सकता। उधर , पूर्व सीएम कमलनाथ का कहना है कि  देर आए, दुरुस्त आए। हम तो पहले दिन से ही कह रहे थे कि सरकार असंवैधानिक तरीके से प्रदेश में पंचायत के चुनाव कराने जा रही है, सरकार पंचायत चुनाव अधिनियम के तहत जारी अध्यादेश को तत्काल वापस ले, हम यही मांग पहले दिन से कर रहे थे। अगर सरकार यह निर्णय पहले दिन से ही ले लेती, तो न यह स्थिति बनती और न ही अन्य पिछड़ा वर्ग का हक छिनता। हम पहले दिन से कह रहे थे कि संवैधानिक प्रक्रियाओं का व पंचायती राज अधिनियम का पालन करते हुए प्रदेश में पंचायत चुनाव हो। ओबीसी को उसका हक मिले, रोटेशन का पालन हो, परिसीमन हो, लेकिन शिवराज सरकार ने अडिय़ल रवैया अपनाए रखा। इसको लेकर हमने पुरजोर ढंग से सड़क से लेकर सदन तक अपनी बात रखी, सरकार के इस निर्णय का विरोध किया और आखिर आज सत्य की जीत हुई। सत्य परेशान हो सकता है, लेकिन पराजित नही। अब हम उम्मीद करते हैं कि ओबीसी वर्ग के साथ न्याय होगा और उनको उनका हक मिलेगा।
सरकार ने रचा था चुनाव में ओबीसी आरक्षण खत्म कराने का षड्यंत्र
पूर्व मंत्री व विधायक जीतू पटवारी ने कहा कि संविधान के प्रति गहरा अविश्वास भाजपा का मौलिक चरित्र है। जो अध्यादेश राज्यपाल के जरिए लागू करवाया, उसी को निरस्त करवा दिया। शिवराज जी एक बार फिर साबित हो गया कि कांग्रेस व कमलनाथ जी सच थे। आप जनता को गुमराह करना बंद कीजिए। अब हम उम्मीद करते हैं कि ओबीसी वर्ग के साथ न्याय होगा और उनको उनका हक मिलेगा। इसी तरह से पूर्व मंत्री एवं विधायक कमलेश्वर पटेल ने कहा कि स्थगन का बहाना कोरोना महामारी को बनाया गया है, लेकिन सच्चाई यह है कि चुनाव की प्रक्रिया ही पूरी तरह असंवैधानिक थी।
देश के संविधान की रक्षा करना मेरा धर्म है
पंचायत राज संशोधन अध्यादेश वापस लेने के शिवराज सरकार के निर्णय पर राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा ने तंज कसा है। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि अगर यह समाचार सही है, तो ठीक कदम है। ऑर्डिनेंस को सरकार ने लैप्स होने दिया। मेरा तर्क यही तो था। इतनी सारी अनर्गल बातें मेरे बारे में बोलने की क्या जरूरत थी? संवाद सभ्य होना चाहिए। मतभेद को मनभेद मत बनाइए। उन्होंने कहा कि सत्य का साथ देता हूं और झूठ का विरोध करना मेरा स्वभाव है। आज सत्य की विजय हुई। प्रदेश की जनता की भलाई हमारा संकल्प है। तन्खा ने कहा कि न मैं पीछे हटूंगा नाहीं डरूंगा, मैं सत्य के साथ हूं और देश के संविधान की रक्षा करना मेरा धर्म है।
शिवराज खुद ले रहे राय
त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाई रोक को बहाल कराने के लिए शिवराज सरकार हर संभव प्रयास कर रही है। सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की जा चुकी है। इस पर तीन जनवरी को सुनवाई प्रस्तावित है। इसको लेकर मुख्यमंत्री ने रविवार को दिल्ली में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सहित विधि विशेषज्ञों के साथ बैठक की।
अपनों के निशाने पर आ गई थी सरकार
उमा भारती ने भी इसे लेकर सवाल उठाया था। केंद्रीय मंत्री प्रहलाद  पटेल ने भी शिवराज पर इशारों-इशारों में निशाना साधा है।  पटेल ने कहा है कि पिछड़ों को आग में ना झोकें तो अच्छा होगा। साथ ही जरूरी कदम नहीं उठाए जाने को लेकर भी सवाल उठाए गए थे। ऐसे में शिवराज सरकार की मुश्किलें बढ़ती जा रही थी। प्रदेश में सबसे ज्यादा ओबीसी की आबादी है। सीएम शिवराज सिंह चौहान खुद इसी वर्ग से आते हैं। आरक्षण के मुद्दे पर शिवराज सरकार किसी भी कीमत पर इस वर्ग को नाराज नहीं करना चाहता है। अंत में सरकार ने कैबिनेट की बैठक में पंचायत चुनाव को टालने का फैसला लिया है। सरकार की तरफ से कहा गया कि कैबिनेट ने प्रदेश में पंचायत राज अधिनियम 1993 की धारा 9 (क) के अंतर्गत होने वाले पंचायत चुनाव के अध्यादेश को निरस्त करने का प्रस्ताव पारित कर महामहिम राज्यपाल महोदय को भेजने का निर्णय लिया है।
इससे बड़ा कोई निर्णय नहीं हो सकता था
भूपेंद्र सिंह ने कहा कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पहले ही कहा था कि हम ओबीसी वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण के बगैर पंचायत चुनाव होने नहीं देंगे। हमने विधानसभा में भी यह बात कही थी। जिस पर आज अमल किया गया है। आर्डिनेंस वापस लेने के अलावा और कोई चारा नहीं था। ताकि ओबीसी के बगैर पंचायत चुनाव  न हों। सुप्रीम कोर्ट ने जिस विषय पर आपत्ति की, उस विषय के लिए हमने अपनी सरकार को दांव पर लगा दिया।  नगरीय विकास एवं आवास मंत्री ने कहा कि आज जिस ऑर्डिनेंस को वापस लेने का निर्णय हुआ है, उसमें हमने पंचायत चुनाव में ओबीसी वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान किया था। हमारे समय में पूर्व में हुए चुनावों में भी हमने यह आरक्षण प्रदान किया था। यदि कांग्रेस इस विषय पर अदालत में नहीं गई होती तो आरक्षण पर रोक लगने का सवाल ही नहीं उठता था। इसके लिए ओबीसी वर्ग कांग्रेस को कभी भी माफ नहीं करेगा।

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