
- 21500 मेगावाट की उपलब्धता के दावे के बावजूद नहीं मिल रही पर्याप्त बिजली…
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में 21500 मेगावाट बिजली की उपलब्धता के दावे किए जा रहे हैं, लेकिन संकट के समय जरुरत पड़ने पर बिजली नहीं मिलने की स्थिति बन रही है। इसकी वजह है निजी बिजली कंपनियों की मनमानी। दरअसल, बिजली का गोरखजाल ऐसा फैला है कि निजी बिजली कंपनियों का शिकंजा बढ़ता जा रहा है।
हालात ऐसी है कि प्रदेश में पर्याप्त बिजली की उपलब्धता के दावे के बावजूद बिजली की खपत घटाने की मजबूरी हो गई है। वजह ये कि संकट के समय जरुरत पड़ने पर भी बिजली नहीं मिलने की स्थिति बन रही है। वहीं दूसरी तरफ बिना बिजली लिए भी करोड़ों रुपए देना मजबूरी है।
जानकारी के अनुसार वर्तमान में 21500 मेगावाट बिजली की उपलब्धता का दावा है। इतना ही न हीं 2030 तक 36 हजार मेगावाट की उपलब्धता की कोशिश है, लेकिन बावजूद इसके बिजली की बढ़ती मांग को देखकर खपत घटाने की मजबूरी हो गई है।
कोयले की कमी के कारण आने वाले समय में सौर ऊर्जा और अन्य वैकल्पिक ऊर्जा का ही मुख्य सहारा रहेगा। इस कारण सौर ऊर्जा में 5000 मेगावाट की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने का रोडमैप तैयार किया जा रहा है। ऐसे समय में भी बीते साल अडानी गु्रप से कोरोना काल में थर्मल बिजली का एमओयू किया गया है। जबकि, कोयले की खदानें मिलने में ही दिक्कतें हैं।
सरकारी दफ्तरों को दस फीसदी खपत घटाने का लक्ष्य
गौरतलब है कि वर्तमान में अधिकतम 10-11 हजार मेगावाट बिजली की मांग है। 9 हजार मेगावाट सामान्य दिनों में औसत मांग होती है, जबकि 13 हजार मेगावाट दीपावली जैसे पीक पीरियड में मांग होती है। वहीं प्रदेश में 8 से 10 हजार मेगावाट तक कुल बिजली का उत्पादन हो रहा है। इसी कारण सरकारी दफ्तरों को दस फीसदी खपत घटाने का लक्ष्य दिया गया है। इतना ही नहीं मंत्रियों और अफसरों को भी अपने स्तर पर खपत कम करने के लिए कहा गया है। वजह ये कि जिस तेजी से खपत बढ़ रही है, उतनी तेजी से आपूर्ति में आने वाले समय में दिक्कत होगी। कारण ये कि कोयले का संकट लगातार देश में बढ़ रहा है। कोयले की कमी से थर्मल बिजली की आपूर्ति आगामी सालों में घटेगी। हालांकि अभी मध्यप्रदेश इस संकट से दूर है, लेकिन भविष्य की स्थिति देखकर अभी से खपत घटाने और सौर ऊर्जा बढ़ाने के कदम उठाए जाने लगे हैं। खपत घटाने के पीछे पर्यावरण की चिंता व ग्लोबल गाइडलाइन भी है, लेकिन देश में कोयले की कमी के कारण बन रहा परिदृश्य अभी बड़ी वजह है।
बिना बिजली 400 करोड़ का भुगतान
हाल ही में बिजली संकट के समय निजी बिजली कंपनियां मध्यप्रदेश को भी अतिरिक्त बिजली नहीं दे पाई थी। कोयला संकट के कारण निजी बिजली कंपनियां भी अतिरिक्त उत्पादन नहीं कर पाई। जबकि, मध्यप्रदेश ने 25-25 साल के करार ही इसलिए किए हैं कि जब भी संकट हो तो बिजली कंपनियों से अतिरिक्त बिजली मिल जाए। इसी आधार पर 21500 मेगावाट बिजली की उपलब्धता बताई जाती है। इस करार में बिजली न लेने पर भी न्यूनतम राशि देना होती है। यह करीब चार सौ करोड़ हो जाती है। कोयला संकट के समय जब निजी बिजली कंपनियां अतिरिक्त बिजली नहीं दे पाई, तब इन्हें डिफाल्टर करके करार रद्द करने के कदम उठाए जा सकते थे। लेकिन, ऐसा नहीं किया गया। बाकी सामान्य समय में इनके करार रद्द होने पर कंपनियां कोर्ट जा सकती है या प्रतिपूर्ति में भारी भरकम राशि देना पड़ सकती है। इस सबके बावजूद इन करार को खत्म करने पर कोई कदम नहीं उठाए गए हैं। पिछली कमलनाथ सरकार के समय इन एमओयू को खत्म करने के लिए कदम उठाना तय हुआ था, लेकिन तब भी कानूनी पेचीदगियों का हवाला देकर मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। तब भी बिजली कंपनियों की लॉबिंग को इसकी बड़ी वजह माना गया था।