पंचायत चुनाव: बीजेपी की माइक्रो नेटवर्क की होगी परीक्षा

पंचायत चुनाव

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। करीब दो साल देर से होने वाले पंचायत चुनावों को बीजेपी की माइक्रो नेटवर्क की परीक्षा के रुप में देखा जा रहा है। यही वजह है कि इन चुनावों की घोषणा के साथ ही संगठन व सत्ता दोनों पूरी तरह से चुनावी मोड में आ गए हैं। यह चुनाव भले ही गैरदलीय अधार पर होते हैं, लेकिन अप्रत्यक्ष रुप से कांग्रेस व भाजपा सहित अन्य दल अपने-अपने समर्थकों को चुनावी मैदान में उतारकर पार्टी की ग्रामीण इलाकों में पकड़ मजबूत करने का प्रयास करतीं हैं।
भाजपा ने प्रदेश में होने वाले अगले विधानसभा के आम चुनावों को लेकर अभी से अपना माइक्रो नेटवर्क तैयार किया हुआ है। त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में ग्रामीण इलाकों में तैयार किए गए इस नेटवर्क की असली परीक्षा होगी। दरअसल प्रदेश भाजपा संगठन द्वारा बीते लंबे समय से बूथ स्तर पर पार्टी को मजबूत करने के लिए काम किया जा रहा है। प्रदेश में यह पंचायत चुनाव ऐसे समय होने जा रहे हैं जब, विधानसभा चुनाव के लिए दो साल से कम का भी समय बचा है। भले ही प्रदेश में सरकार बनने के बाद हुए उपचुनावों में भाजपा को जीत मिली है, लेकिन अब तक ऐसा कोई चुनाव नहीं हुआ है जिससे की प्रदेशभर की ग्रामीण जनता के समर्थन का आंकलन किया जा सके। इसी तरह से माइक्रो स्थल यानि की बूथ स्तर तक की गई पार्टी की मजबूती की तैयारियों की वास्तविकता का भी इससे पता लग जाएगा। प्रदेश में बीते पौने दो साल की सरकार में यह चुनाव संगठन व सत्ता के लिए पहली बड़ी चुनावी परीक्षा होने जा रही है। यह बात अलग है कि इन चुनावों को कराने की तैयारी कांग्रेस की कमलनाथ सरकार में ही शुरू कर दी गई थीं। इस बीच नाथ सरकार गिर गई और उसके बाद भाजपा की शिव सरकार बनी, लेकिन तभी कोरोना संक्रमण की महामारी फैलने से यह चुनाव लगातार टलते रहे। पार्टी अब इन चुनावों के परिणामों के आधार पर अपनी मतदाताओं के बीच पकड़ का आंकलन करने जा रही है। पार्टी के रणनीतिकारों के अलावा राजनैतिक पंडितों का मानना है कि ग्राम पंचायत से लेकर जनपद और जिला पंचायत सदस्यों के चुनाव में पार्टी को मिलने वाले मत उसे इस बात का भी संकेत देंगे कि आगे विधानसभा चुनाव में उसकी क्या स्थिति रहने वाली है। यह बात अलग है कि पंचायत चुनाव भले ही पार्टी के सिंबल पर नहीं लड़े जाते हैं, लेकिन इसके बाद भी इन चुनावों में राजनीतिक दलों की पूरी तौर पर भागीदारी रहती है।  जनपद व जिला पंचायत के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष का नाम पार्टियों द्वारा ही तय किए जाते हैं। लिहाजा भाजपा संगठन इन चुनावों में आए परिणामों  के बाद खुद की कमियों को भी दूर करने के कदम उठाएगा। वैसे भी भाजपा समय- समय पर अपने कामकाज का खुद आंकलन करने के लिए स्वयं ही परीक्षा लेती रहती है। इन चुनावों से वह अपना लिटमस टेस्ट भी करना चाहती है।

इन चुनावों में भाजपा का यह भी मकसद
 प्रदेश में सरकार बने हुए लगभग पौने दो साल का समय होने के बाद भी भाजपा सरकार अब तक न तो निगम-मंडलों में नियुक्तियां कर पाई है और न ही  प्राधिकरण और आयोगों में। राजनीतिक रूप से इन्हें मर्सी पोस्टिंग माना जाता है पर इन्हीं के जरिए ही राजनैतिक दल अपने कार्यकर्ताओं को सत्ता में भागीदारी देकर उन्हें संतुष्ट करने का काम करती हैं। निगम मंडल में नियुक्तियां सरकार के आर्थिक हालातों के चलते जल्द हो पाएंगी इसकी संभावना कम है। यही वजह है कि भाजपा पंचायत चुनाव और इसके बाद नगरीय निकाय चुनाव कराकर अपने कार्यकर्ताओं को सत्ता में भागीदारी देना चाहती है। कहा तो यह भी जा रहा है कि यह चुनाव शीर्ष संगठन नेताओं से मशविरा के बाद कराने का फैसला किया गया है।

इन तैयारियों का हो जाएगा आंकलन
इन चुनावों से भाजपा को यह पता चल जाएगा कि केन्द्र और राज्य सरकार की कौन सी योजनाएं कितने निचले स्तर तक असरकारी हैं। संगठन की बूथ तक कितनी पकड़ है। एक बूथ ग्यारह यूथ का उसका अभियान क्या वाकई हर बूथ तक पहुंचा है। इन सबकी हकीकत से रूबरू होना चाहती है। संगठन के एक आला नेता का कहना है कि पंचायत चुनाव में  मिलने वाले मतों से तय हो जाएगा कि हम जो कर रहे हैं वह कितना कारगर है। इन चुनाव परिणामों के बाद हम अपनी कमियों को चिन्हित कर काम को नए सिरे से आगे बढ़ाएंगे। यह चुनाव हमें विपक्ष की ताकत और जनता के मूड का भी पता करने में मददगार साबित होंगे। भाजपा के साथ साथ कांग्रेस किन्तु-परन्तु के साथ ही सही इन चुनावों का स्वागत कर रही है पर भाजपा जैसे माइक्रो नेटवर्क संगठन के लेबल पर वह अब तक वह काम नहीं कर सकी है।  

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