मप्र में 23 फीसदी लड़कियां हो रहीं बाल विवाह का शिकार

 बाल विवाह

-कुपोषण के मामलों में सुधार तो शुगर की बीमारी ले रही गंभीर रुप

भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम।
मध्यप्रदेश में भले ही नाबालिग विवाह गैर कानूनी है, लेकिन इसके बाद भी प्रदेश में लगातार बाल विवाह हो रहे हैं। हालात यह हैं कि प्रदेश में लगभग 23 फीसद से अधिक लड़कियों की शादी बालिग होने से पहले कर दी जाती है। इस मामले में शहरी इलाकों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में हालात दोगुने खराब हैं।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की पांचवीं रिपोर्ट में किए गए खुलासे के मुताबिक गांवों की 26.6 और शहरी क्षेत्र की 13 फीसद नाबालिगों की शादियां की जाती हैं। इसकी वजह से 5 फीसदी से अधिक महिलाएं 15-19 वर्ष की उम्र में ही मां बन चुकी थीं। अगर एनएफएचएस चार की रिपोर्ट को देखें तो बाल विवाह का आंकड़ा 33 फीसद था। खास बात यह है कि इसी तरह से अगर लड़कों की बात की जाए तो 30.1 फीसद की शादी भी 21 वर्ष से पहले होना पाया गया था। उधर, अगर स्वास्थ्य की बात की जाए तो सर्वे के अनुसार मप्र में 15 साल से अधिक उम्र वालों में शुगर लेवल में वृद्धि देखी गई है। अच्छी बात यह है कि इस सर्वे में 5 साल तक की उम्र के बच्चों में कुपोषण कम पाया गया है। बीते चार सालों की तुलना में इस बार सर्वे में राष्ट्रीय सुधार प्रतिशत की तुलना में भी बेहतर स्थिति सामने आयी है। इस रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में अति गंभीर कुपोषण श्रेणी के प्रतिशत में 29.3 फीसदी की उल्लेखनीय कमी सामने आयी है। इसकी वजह से अन्य प्रांतों की तुलना में मध्य प्रदेश की स्थिति में 13 अंकों का सुधार हुआ है। इस वजह से मप्र 30वें स्थान से 17वें स्थान पर आ गया है। खास बात यह है कि इस रिपोर्ट की माने तो इस अवधि में जहां देश में अति गंभीर कुपोषण में करीब पौने तीन फीसद की वृद्धि हुई है, जिसकी तुलना में मप्र में 29.3 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। दुबलेपन वेस्टिंग के मामलों में भी प्रदेश में सुधार हुआ है जिससे मप्र तीसरे स्थान पर है। देश में 8.1 प्रतिशत की तुलना में मप्र में 26.4 प्रतिशत का सुधार हुआ है। इसकी वजह से प्रदेश एनएफएचएस-4 में मिले  33वें स्थान से अब 24वें स्थान पर आ गया है। इसी तरह से कम वजन की श्रेणी में सुधार के मामले में भी प्रदेश ने उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है। इसकी वजह से अब इस सुधार के मामले में मप्र देश में दूसरे स्थान पर आ गया है। इस मामले में भी मप्र ने देश के औसत को बेहद पीछे छोड़ दिया है। देश में सुधार का औसत जहां  10.3 प्रतिशत रहा है तो वहीं मप्र में यह औसत 22.9 प्रतिशत है। इसकी वजह से 33 वें स्थान पर रहने वाला मप्र अब 31वें स्थान पर आ गया है।

बच्चों में बढ़ रहा हाइपरटेंशन
15 साल और उससे ज्यादा उम्र की महिलाओं और पुरुषों दोनों में शुगर लेवल बढ़ा है। इनमें 9.8 फीसदी महिलाएं हैं जिनके शुगर को नियंत्रित करने को दवा लेनी पड़ रही है। पुरुषों में यह संख्या 12.2 फीसदी है। वहीं 15 साल तक के बच्चों में हाइपरटेंशन के मामले भी बढ़े हैं। इसमें 20.6 प्रतिशत लड़कियां और 20.6 लड़के ऐसे हैं जिनका ब्लडप्रेशर इस हद तक बढ़ा है कि उसे नियंत्रित करने को दवा दी जाती है।

इंदौर में बड़ा तो देवास-उज्जैन में घटा लिंगानुपात
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़ों की माने तो इंदौर में महिलाओं की संख्या प्रति एक हजार पुरुष पर 987 हो गई है। 2016 के सर्वे में यह 895 थी। यानी इसमें 92 बिंदुओं की बढ़त हुई है, जो मप्र में सबसे ज्यादा है। जन्म के समय शिशु लिंगानुपात भी पांच सालों में 849 से बढ़कर 996 हो गया है। विशेषज्ञों के अनुसार, इसकी सबसे बड़ी वजह गर्भ में शिशु के लिंग को पता करने पर लगी रोक और गर्भपात को लेकर सख्ती है। वहीं देवास में 5 साल में लिंगानुपात 964 से 946 पर व उज्जैन में 968 से 951 पर आ गया है। शिशु लिंगानुपात भी देवास में 961 से 885 तो उज्जैन में 1062 से 958 हो गया है।

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