
- जन्मदिन पर विशेष
भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। मैं मप्र को देश का सबसे विकसित राज्य बनाना चाहता था। इसके लिए मैंने 15 माह के दौरान वह सब किया जो भाजपा 15 साल में नहीं कर पाई। यह कहना है मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ का। वाकई कमलनाथ ने अपने 15 माह के शासन काल के दौरान मप्र में विकास की नई गाथा लिखी। आज कमलनाथ जी का 75 वां जन्मदिन है।
केंद्र में मंत्री रहते कमलनाथ ने प्रदेश के विकास के लिए अपने विभागों से वह सबकुछ किया जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती है। कमलनाथ ने मप्र के 31वें मुख्यमंत्री के रूप में 1,90,000 करोड़ रूपए के कर्ज में डूबे प्रदेश की बागडोर संभाली थी। लेकिन अपनी सधी नीति, सतर्कता , समर्पण, सदभाव से कमलनाथ ने मप्र के लोगों में विकास का भाव भी भर दिया। मैग्नीफिसेंट मप्र, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनोमी (सीएमआईई) और झाबुआ उपचुनाव की जीत ने इसे पुख्ता किया। बकौल कमलनाथ कर्ज और आर्थिक बदहाली के दौर से गुजर रहे प्रदेश को पटरी पर लाने के लिए हमने जो प्रयास किए थे उसी का परिणाम है कि कोरोना संक्रमण के दौर में भी मप्र खड़ा रहा। मैग्नीफिसेंट एमपी के तहत देशी निवेशकों का दिल जीतने के साथ कमलनाथ सरकार ने विदेशी निवेश को भी प्राथमिकता पर रखा। विदेशी निवेश के करीब 4385 करोड़ के प्रस्ताव मिले। कमलनाथ कहते हैं कि कांग्रेस शासनकाल में बेरोजगारी दूर करने के लिए हमने कई कदम उठाए थे। उसके असर भी देखने को मिले थे।
हमने अपने 9 माह के कार्यकाल में वह कर दिखाया जो भाजपा सरकार अपने 15 साल के शासनकाल में नहीं कर सकी। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) की रिपोर्ट के अनुसार, दिसंबर, 2018 में मध्य प्रदेश में बेरोजगारी दर 7 प्रतिशत थी, जो कि सितंबर, 2019 के अंत में गिरकर 4.2 प्रतिशत पर आ गई थी। वहीं पूरे देश की बात करें तो सीएमआईई की रिपोर्ट के अनुसार, देश में बेरोजगारी दर 8.1 प्रतिशत तक पहुंच गई थी। रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी 2019 से लेकर अगस्त 2019 तक ग्रामीण और शहरी इलाकों में रोजगार को लेकर बड़े बदलाव हुए थे। यह मध्य प्रदेश सरकार के लिए बड़ी उपलब्धि थी। पूर्व मुख्यमंत्री कहते हैं कि कांग्रेस के 15 महीने के शासनकाल की तुलना शिवराज सिंह चौहान के 15 साल के शासन से की जाए तो एक बात बिल्कुल साफ हो जाएगी कि दोनों की कथनी-करनी में बहुत फर्क है। शिवराज ने पिछले 15 साल में जहां हर वर्ग के संतुष्टि फामूर्ले से जनता को दिग्भ्रमित बनाए रखा, तो वहीं हमने अपने छोटे से कार्यकाल में जो कहा-सो कर दिखाया। दरअसल दोनों की कार्यशैली में एक बड़ा फर्क यह भी रहा है कि शिवराज ने जो घोषणाएं की, उनमें से ज्यादातर या तो सरकारी हीला-हवाली में ठंडे बस्ते में समा गईं, या फिर जो शुरू भी हुई तो अफसरों की बुरी नजर की भेंट चढ़ गर्ई। जबकि कमलनाथ ने खजाना खाली होने के बावजूद अपने वचनों को पूरा करने का वादा निभाया। शिवराज को लेकर यह जुमला चलता था कि वह जितनी जल्दी घोषणा करते हैं, उससे जल्दी उसे भूल जाते हैं। कोई घोषणा करते थे, उन्हें इस बात का ख्याल नहीं रहता था कि इससे सरकार के खजाने पर कितना आर्थिक बोझ आएगा और इससे किस वर्ग में नाराजगी बढ़ेगी। शिवराज 13 साल मुख्यमंत्री रहे। उन्होंने 12 हजार लोक-लुभावन घोषणाएं कीं। इनमें 11 हजार 800 योजनाएं हवा-हवाई साबित हुईं। इसके उलट, कमलनाथ ने रोजाना 15-15 घंटे सीएम सचिवालय में बैठकर भाजपा शासन में बिगड़ी व्यवस्था को न केवल नए सिरे से परिभाषित और स्थापित किया बल्कि नई कार्य-संस्कृति के पैरोकार बनकर अपने स्पष्ट लाइन आफॅ एक्शन से यह बताया कि जनता के प्रति एक जवाबदार-जिम्मेदार सरकार कैसे चलाई जाती है। वे अनुभवी और उन नेताओं में से एक है, जो विकास और विजन की पहली सीढ़ी से चढ़कर अंतिम सीढ़ी तक जाना जानते हैं।
लेकिन यह मप्र का दुर्भाग्य है कि वे मात्र 15 माह की मुख्यमंत्री रहे। कमलनाथ का जन्म 18 नवंबर 1946 को कानपुर के एक बिजनेस फैमिली स्व. महेन्द्र नाथ और स्व. लीला नाथ के घर में हुआ था। उन्होंने स्कूल की पढ़ाई देश के एक प्रतिष्ठित दून स्कूल में की और कालेज की पढ़ाई सेंट जेवियर कॉलेज कोलकाता से की। दून स्कूल में पढ़ते वक्त इनकी मुलाकात संजय गांधी से हुई और वे दोनों करीबी दोस्त बन गए। बाद में संजय गांधी राजनीति में आ गए । जब इंदिरा गांधी के समय कांग्रेस आपातकाल की वजह से पहली बार सत्ता से बाहर हुई तो संजय गांधी के कहने के बाद कमलनाथ राजनीति में आ गए।
चुनाव लड़ने के लिए छिंदवाड़ा चुना
उत्तर प्रदेश में जन्में कमलनाथ पंजाबी खत्री हैं। मध्यप्रदेश के सबसे बड़े जिले छिंदवाड़ा में पंजाबी समुदाय के लोग बड़ी संख्या में हैं। इसीलिए कमलनाथ को यहां पर लोकसभा का चुनाव लड़ाया गया। पहली बार कमलनाथ ने 1980 में लोकसभा का चुनाव लड़कर सांसद बने और इसके साथ ही इंदिरा गांधी की सत्ता वापसी भी हुई। जब कमलनाथ पहली बार सांसद बने तो उस समय एक नारा चलने लगा था। जिसमें कहा जाता था, इंदिरा के दो हाथ, संजय गांधी और कमलनाथ। इस चुनाव प्रचार के लिए इंदिरा गांधी छिंदवाड़ा आयी थीं। यहां उन्होंने कमलनाथ को अपना तीसरा बेटा कहा था। इंदिरा ने कहा था कि, कमलनाथ मेरे तीसरे बेटे हैं, मैं अपने बेटे के लिए वोट मांगने आई हूं। कमलनाथ पहली बार 1991 में केन्द्रीय मंत्री बनाए गए उन्हें पर्यावरण मंत्री का विभाग दिया गया। इसके बाद वे 1995 से 96 तक केन्द्रीय कपड़ा मंत्री रहे। 2004 से 2008 तक केन्द्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री रहे। 2009 से 2011 तक केन्द्रीय सड़क व परिवहन मंत्री और 2012 से 2014 तक शहरी विकास मंत्री पद पर रहे।
1996 में पहली बार सुंदरलाल पटवा से हारे
1996 में हवाला केस में नाम आने के कारण कांग्रेस ने उनकी जगह उनकी पत्नी अलका नाथ को चुनाव मैदान में उतारा था। उनके द्वारा कुछ समय बाद ही सासंद पद से इस्तीफा दे दिया और यहां उपचुनाव हुए। इसके बाद उन्होंने छिंदवाड़ा से ही सुंदरलाल पटवा के खिलाफ लोकसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन वे हार गए। ये कमलनाथ के जीवन की एक मात्र हार थी। कमलनाथ ने पहली बार 1980 में छिंदवाड़ा से लोकसभा का चुनाव जीता। इसके बाद वे 1984, 1990, 1991, 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 में लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। कमलनाथ ने 1968 में युवा कांग्रेस में प्रवेश किया। इसके बाद इन्हें 1976 में उत्तर प्रदेश युवा कांग्रेस का प्रभार मिला। 1970 से 81 तक वे अखिल भारतीय युवा कांग्रेस की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य रहे, 1979 में युवा कांग्रेस की ओर से महाराष्ट्र के पर्यवेक्षक रहे, 2000 से 2018 तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव रहे और वर्तमान में मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद पर हैं। वह एक उद्योगपति हैं। उनके पास 23 कंपनियां हैं, जो उनके बेटे चलाते हैं।