
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। सूबे के मुखिया शिवराज सिंह चौहान को एक प्रयोगवादी नेता के रूप में जाना जाता है। इसकी वजह है उनके द्वारा समय-समय पर नए प्रयोग किए जाते रहते हैं, जिनमें वे सफल भी रहते हैं। अब उनके द्वारा प्रदेश में नया प्रयोग गाय व गोबर के रूप में शुरू किया जा रहा है। उनकी सरकार के इस प्रयोग को लेकर उनका कहना है कि गाय के गोबर और मूत्र से राज्य और देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में मदद की जा सकती है। उनके द्वारा गाय के गोबर और मूत्र को आर्थिक दृष्टिकोण से इस्तेमाल करने की सलाह देते हुए कहा गया है कि गाय और बैल के बिना काम नहीं चल सकता है। सरकार ने अभ्यारण्य और गोशालाएं बनाई हैं, लेकिन जब तक समाज नहीं जुड़ेगा, तब तक गोशाला से काम नहीं चलेगा। उनका कहना है कि हम मध्य प्रदेश में अलख जगाने की कोशिश कर रहे हैं। अब तो गाय के गोबर से उर्वरक और कीटनाशक भी बन रहे हैं। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि गाय से, गोबर से और गोमूत्र से अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकते हैं। देश को आर्थिक रूप से सक्षम बना सकते हैं। हम लोग कोशिश कर रहे हैं कि मध्य प्रदेश के श्मशान घाटों पर लकड़ी नहीं जले। उधर सरकार के इस कदम की कांग्रेस आलोचना कर रही है। कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शुमार पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ सरकार के इस फैसले की आलोचना कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पशु चिकित्सकों के कार्यक्रम में अपने इन नए प्रयोग की चर्चा करते हुए कहा कि प्रदेश सरकार अब गाय का गोबर खरीदेगी। इससे खाद समेत अन्य उत्पाद बनाने की दिशा में काम चल रहा है। उनका कहना है कि पशु उत्पादों के बेहतर उपयोग के लिए अलख जगाने का प्रयास हो रहा है। वहीं, एमपी स्टेट को-आॅपरेटिव डेयरी फेडरेशन जनजातीय क्षेत्रों में बकरी के दूध का संकलन करेगा। बकरी का दूध 15 नवंबर से मिलेगा। उनका कहना है कि सरकार का प्रयास है कि प्रदेश के शमशान घाट में लकड़ी न जले, गोबर से बनाई गई गोकाष्ट का उपयोग हो। इस दिशा में भी काम हो रहा है। कृषि और पशुपालन का चोली-दामन का साथ है। पशुपालन से आर्थिक स्थिति बेहतर की जा सकती है। सीएम ने कहा, राज्य सरकार ने गो अभ्यारण्य और आश्रय स्थल विकसित किए हैं, लेकिन बेहतर कामकाज के लिए उन्हें समाज की भागीदारी की जरूरत है। यही वजह है कि सरकार गौ-पालन को प्रोत्साहित करने के लिए श्रेष्ठ गाय रखने वाले को गो-पालन पुरस्कार भी देती है। उल्लेखनीय है कि हाल ही में दो दिन पहले ही सागर स्थित डॉ. हरी सिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय में भी गाय को लेकर देश का पहला ऐसा नवाचार की पहल की गई है , जिसके तहत इसके तहत इस विवि में में गायों का हॉस्टल खुलेगा। इसके लिए केंद्र सरकार और सेंट्रल यूनिवर्सिटी के बीच एमओयू किया जा चुका है। इस हॉस्टल में गायों की देखभाल की जाएगी। बतौर केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला का कहना है कि जिस तरह छात्र-छात्राओं के लिए हॉस्टल बनाए जाते हैं, वैसे ही हॉस्टल अब गायों के लिए बनेंगे। जो लोग गाय पाल नहीं सकते, वे लोग अपनी गायों को हॉस्टल में रख सकेंगे। इस तरह का पहला प्रयोग देश में सागर की सेंट्रल यूनिवर्सिटी में किया जा रहा है। इसका नाम कामधेनु पीठ होगा।
छग में चल रही एक साल से योजना
पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में 2020 से ही पशुपालकों से 2 रुपए प्रति किलो की दर से गोबर खरीदा जा रहा है। इसके लिए पिछले साल छत्तीसगढ़ में गोधन न्याय योजना शुरू की जा चुकी है। कांग्रेस ने छग के चुनावी घोषणापत्र में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के संकेत देते हुए नारा दिया था- छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी, नरवा गरुवा, घुरवा, बाड़ी, एला बचाना हे संगवारी। यानी गांवों के बारहमासी नाले, पशुधन, घर से निकलने वाला जैविक कचरा व गोबर की खाद और घरों से लगी हुई जमीन पर फलों व सब्जियों की बाड़ियां, छत्तीसगढ़ की पहचान हैं और इन्हें बचाना है। इनमें गांवों में 3 से 5 एकड़ में गाय-बैलों के रहने के लिए गौठान का निर्माण शुरू किया गया। इस योजना के तहत खरीदे गये गोबर से स्वसहायता समूहों द्वारा संचालित गोठान में ही केंचुआ खाद यानी वर्मी कम्पोस्ट और अन्य उत्पाद बनाने की योजना बनाई गई।
कई गोबर की योजनाएं हैं सालों पुरानी
गोबर से जुड़ी योजनाओं का यह सिलसिला नया नहीं है। 80 के दशक में भारत में गोबर गैस और बायो गैस संयंत्र लगाने का अभियान ग्रामीण स्तर पर शुरू हुआ था लेकिन गोबर की अनुपलब्धता और लागत की तुलना में कम उत्पादन ने लोगों का जल्दी ही मोहभंग कर दिया। इसी साल केंद्र सरकार के जलशक्ति मंत्रालय ने गोवर्धन योजना की शुरूआत की है। और भी कई योजनाओं की शुरूआत की गयी पर ये योजनाएं परवान नहीं चढ़ पाईं।
कांग्रेस कस रही है तंज
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने तंज कसते हुए कहा है कि शिवराज बोलते हैं कि गोबर से अर्थव्यवस्था सुधारेंगे, यह कह देना उनकी सोच का प्रमाण है। आज हमारी अर्थव्यवस्था क्या ऐसे सुधरेगी। जब तक निवेश न आए, जब तक नीतियां न बनें, तब तक आर्थिक गतिविधियां नहीं सुधर सकती, पर यह तो उनकी सोच का उदाहरण है।