
- अवधेश बजाज कहिन…
क्या वह समय आ गया है कि देश का इतिहास नए सिरे से लिख दिया जाए? स्वतंत्रता आंदोलन में एक-दूसरे से इत्तेफाक न रखने के बावजूद देश के लिए संघर्ष करने वालों की नयी तस्वीरें बनाने का हुक्म जारी कर दिया जाए? वो तस्वीरें जिनमें चरखा नहीं होगा। ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ वाली तख्तियां नहीं दिखेंगी। ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ नजर नहीं आएगा। मुल्क के लिए फांसी के फंदों को चूम लेने वाले नहीं होंगे। इन सबकी जगह दिखेगा तो एक कटोरा। अंग्रेजों से भीख मांगने वाला कटोरा। सुनने में अजीब लगता है। लेकिन माहौल तो ऐसा ही कुछ बनाया जा रहा है। पद्मश्री को श्रीहीन कर दिया गया है। इससे सम्मानित कंगना रनौत समूचे स्वतंत्रता संग्राम को अपमानित कर गुजरी हैं। बेशक आप स्वतंत्रता प्राप्ति के तरीकों को लेकर बहस कर सकते हैं। इस पर मतभेद भी हैं। लेकिन आजादी मिलने को भला किस तरह से भीख कहा जा सकता है? कंगना के मुंह से निकले इस जहर ने झांसी की रानी से लेकर महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और इन जैसे असंख्य ज्ञात-अज्ञात उन लोगों की तौहीन की है, जो अपनी-अपनी तरह से देश की स्वतंत्रता के लिए विदेशी हुकूमत से लड़े थे। ये एक वाक्य नहीं है। इसके पीछे एक खास किस्म का एजेंडा दिखता है। एक विघटनकारी और देशद्रोही फितरत वाला प्रयोग। जो षड्यंत्रकारी दिमाग इसके पीछे हैं, वे अब कुछ दिनों तक नजर रखेंगे कि कंगना के कहे को कितना समर्थन मिलता है। यदि जरा भी माहौल उनके पक्ष में बना तो फिर वह दिन दूर नहीं, जब किसी 15 अगस्त पर राष्ट्रीय भीख दिवस मनाने की भी शुरुआत कर दी जाए। निश्चित ही यह बात हाइपोथेटिकल लगती है, लेकिन आज की तारीख वाले जिन बेहद शक्तिशाली लोगों के संरक्षण में कंगना ने ऐसा कहा है, वे लोग अपना हित साधने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। शायद ऐसा सब इसलिए किया जा रहा है कि सच को दबाया जा सके। सोशल मीडिया पर स-प्रमाण ये बातें थोकबंद तरीके से आ रही हैं कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का स्वतंत्रता के आंदोलन में कोई सहयोग नहीं था। इससे जुड़े व्यक्ति और संगठन अंग्रेजों के पिट्ठू भर थे। इसलिए आसान तरीका यह है कि जिन्होंने आजादी के लिए संघर्ष किया, उन्हें एक सिरे से भिखारी की श्रेणी में ला खड़ा कर दिया जाए। ताकि आने वाली पीढ़ी के दिमाग में यह बैठाया जा सके कि आजादी के लिए यदि हम नहीं लड़ सके तो बाकी भी किसी भी तरह की लड़ाई में शामिल नहीं थे। वह महज भीख मांगने की प्रक्रिया थी।
जो कुछ हो रहा है, उसके नेपथ्य में कोई तो खिचड़ी पक रही है। क्या कंगना के रूप में भविष्य की स्मृति को प्रमोट किया जा रहा है? या ये हो रहा है कि किरण खेर से लेकर हेमा मालिनी वाली भाजपा इनकी जगह कंगना को अपना चेहरा बनाना चाह रही है? यदि ऐसा नहीं है तो फिर कैसा है? कोई ये तर्क दे कि कंगना को देश तथा समाज के प्रति उनके योगदान के चलते पद्मश्री दिया गया है तो फिर सहज रूप से राखी सावंत और पायल रोहतगी भी इस सम्मान की हकदार हैं। तो क्या हम तैयार रहें पद्म पुरस्कारों के नाम पर कलंकित चेहरों को प्रमोट होता देखने के लिए? यह सोचकर ही सिहरन होती है। इसलिए यह मांग गलत नहीं लगती कि कंगना से पद्मश्री वापस लिया जाना चाहिए।
मेरी राय में ये पद्मश्री सम्मान के शुद्धिकरण का समय है। सामूहिक क्षमावाणी की जाना चाहिए उन सभी से जिन्हे कंगना से पहले तक यह सम्मान दिया गया। उनसे राष्ट्रीय माफी मांगी जाए कि जिस महान सम्मान को उन्होंने अपने विशिष्ट काम से अर्जित किया, वही सम्मान एक उथली सोच को भी दे दिया गया है। आखिर क्या हैं कंगना! देश की स्वतंत्रता का इतिहास तो पवित्र है, लेकिन कंगना का इतिहास देखें तो मन वितृष्णा से भर उठता है। आदित्य पंचोली, अध्ययन सुमन से लेकर रितिक रोशन के बीच और कई ढेर सारे ऐसे नाम हैं, जिनके साथ कंगना की नजदीकी को कम से कम खालिस प्रेम की संज्ञा नहीं दी जा सकती है। विकल्प यही बचता है कि आप हवस या तलब में से किसी एक का चयन कर रनौत की फितरत को समझने का प्रयास कर लें। साथ ही उनसे देश को बचाने का प्रयास भी कर लें, जो कंगना के रूप में घातक प्रतिमान स्थापित करने की फिराक में हैं। क्या उनकी यह मंशा भी है कि कंगना को नयी राष्ट्रमाता का मुकाम दिला दिया जाए? लगता तो ऐसा ही है।
सारे नाम लेना तो संभव नहीं है। कुछ का जिक्र ऊपर कर दिया। बाकी विनायक दामोदर सावरकर, खुदीराम बोस, चापेकर बंधू, लाल-बाल-पाल, उधम सिंह, अशफाक उल्ला खां, रामप्रसाद बिस्मिल, नाना साहब, मंगल पांडेय, कैप्टन लक्ष्मी सहगल, सरोजिनी नायडू तथा इन जैसे सभी स्वतंत्रता सेनानियों का जो अपमान कंगना ने किया है, उसे कभी भी माफ नहीं किया जा सकता। और हां, कंगना के इस बयान ने तौहीन तो बिरसा मुंडा की भी की है। वही बिरसा मुंडा जी, जो देश की स्वतंत्रता के लिए अपने बलिदान के चलते भगवान की तरह पूजे जाते हैं। इसी 15 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन्हीं मुंडा जी के सम्मान में आयोजित किये जा रह जनजातीय गौरव दिवस के लिए भोपाल आ रहे हैं। बिरसा मुंडा जी! इस भीख वाली मानसिकता के संरक्षकों के द्वारा आयोजित किये जा रहे इस आयोजन के लिए आपके प्रति मैं गहन शोक संवेदना व्यक्त करता हूं।