
- तरीका बदलकर पुलिस को पीछे छोड़ रहे हैं अपराधी
भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। साइबर अपराध कम करने में एमपी पुलिस फिसड्डी साबित हो रही है। साइबर ठगी के शिकार मामलों में राजधानी में रिकवरी रेट करीब एक प्रतिशत है। प्रदेश के दूसरे जिलों में भी रिकवरी रेट ना के बराबर है। पुलिस आरोपियों को पकड़ तो लेती है लेकिन उनसे ऐंठी हुई रकम नहीं निकलवा पा रही है। मप्र में आॅनलाइन ठगों का जाल तेजी से फैल रहा है। सायबर पुलिस एक अपराध का पर्दाफाश करती है तो आरोपी उससे भी आगे निकलकर नए तरीके से क्राइम कर जाते हैं। सायबर ठगी के अलग-अलग और नये-नये तरीकों को डिटेक्ट करने में पुलिस काफी पीछे है। इतना ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सायबर अपराधों की जांच करने के लिए एमपी में सिर्फ पांच एक्सपर्ट हैं। इसके अलावा अधिकांश अपराधों की जांच के लिए बाहर के सायबर एक्सपर्ट्स हायर करना पड़ता है। कुल मिलाकर सायबर ठग आगे-आगे और पुलिस पीछे रहती है। साइबर पुलिस अधिकारियों का कहना है अपराधों की जांच में देरी होने की वजह से ठगी गई रकम रिकवर नहीं हो पाती है।
रिकवरी के लिए पुलिस के प्रयास
सायबर क्राइम पुलिस ऑनलाइन ठगी की शिकार लोगों के लिए 24 घंटे हेल्पलाइन सेवा चला रही है। थाना स्तर पर पुलिसकर्मियों को सायबर अपराधों की जांच के लिए तैयार कर उन्हें इस प्रकार के अपराधों से निपटने के लिए ट्रेनिंग दी जा रही। नई-नई तरह की धोखाधड़ी के मामले सामने आने के बाद एडवाइजरी जारी की जाती है। सायबर सेल को क्राइम ब्रांच से अलग कर एक नई टीम तैयार की गई है। राज्य सायबर पुलिस के साथ प्रदेश के हर थाना स्तर पर सायबर अपराध की जांच की व्यवस्था की गई है। सायबर पुलिस का कहना है लोग जरा सा सावधान रहकर आॅनलाइन धोखाधड़ी से बच सकते हैं। पुलिस अपना काम करती है। लेकिन यदि जरा सी सावधानी बरती जाए तो किसी भी अपराध को टाला जा सकता है और उससे आसानी से बचा भी जा सकता है।
साइबर ठगी से बचाव के तरीके
ज्यादातर मामलों में ऑनलाइन एप से भुगतान के नाम पर ठगी हो रही है। इसलिए सावधानी बरतें। गोपनीय जानकारी जैसे आधार कार्ड का नंबर, जन्मतिथि, बैंक में रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर, एटीएम कार्ड नंबर, वैधता दिनांक आदि किसी भी अपरिचित से साझा न करें। किसी भी व्यक्ति से ओटीपी साझा नहीं करें। किसी अपरिचित के कहने पर रिमोट एक्सेस एप जैसे जैसे क्विक सपोर्ट, टीम विवार और एनीडेस्क के एप डाउनलोड बिल्कुल नहीं करें। किसी अनजान व्यक्ति द्वारा फोन पे, पेटीएम, आदि वॉलेट पैसे रिसीव करने के लिए लिंक या क्यूआर कोड आए तो लिंक को नहीं खोलना है। क्यूआर कोड को स्कैन नहीं करना है।
रिकवरी में पीछे एमपी पुलिस
भोपाल की बात की जाए तो 2019 और 2020 में सिर्फ 36 मामलों में साइबर पुलिस ने केस दर्ज किए थे। इस साल 2021 में अब तक 270 से ज्यादा सायबर ठगी के केस दर्ज हो चुके हैं। इन पौने तीन साल में राजधानी में करीब तीन सौ लोगों से 13 करोड़ की रकम चोरी की गई। सायबर क्राइम पुलिस इसमें से महज 85 लाख की रकम ही बरामद कर पायी। ठगी गई रकम बरामद करने में भोपाल जैसी स्थिति प्रदेश के दूसरे जिलों की भी है।